अधिक धन होने से, अधिक शिक्षा से, उच्च पद मिलने से चरित्र की शुद्धि नहीं होती है। आज की उच्च शिक्षा पाकर लोग एक दूसरे पर कुर्सी चलाते हैं, गाली-गलौज करते हैं, एक दूसरे के विरूद्ध दुरालोचना छपवाते हैं क्योंकि आज शिक्षा में यह संस्कार नहीं रह गया है। जिस देह को लेकर मनुष्य यह सब अनर्थ करता है, वह थोड़े दिनों की है, ठीक वैसे ही जैसे होटल में किराये पर कमरा ले लिया जाता है।
कंकर चुनि चुनि महल बनाया लोग कहें घर मेरा।
ना घर मेरा ना घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा।।
इस जीवन के परे भी कुछ सत्य है। उस सत्य (परमात्मा) की खोज न करने से ही जीवन के सब पाप हैं। जिसके जीवन में जीवनोत्तरकालीन (जो मृत्यु के बाद भी, जन्म के पहले भी और सदा साथ रहता है, उस परमात्मा को पाने का) लक्ष्य है, वह जाने या अनजाने आने वाले धन, सुख-भोग अथवा पद-प्रतिष्ठा के लिए अपने चरित्र का विनाश नहीं कर सकता है।
तुझसे है सारा जग रोशन
ओ भारत के नौजवान !
संयम सदाचार को मत छोड़ना,
भले आयें लाखों तूफान।।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 19, अंक 297
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