योगी अरविन्द जी को षड्यंत्र के तहत वर्षभर जेल में रखा गया। जेल के एकांतवास में उन्हें भगवान के दर्शन हुए और भगवत्प्रेरणा से सनातन धर्म से सम्बंधित कई रहस्यों की अनुभूति हुई। जेल से रिहा होने के बाद 30 मई 1909 को उत्तरपाड़ा (प. बंगाल) में हुई एक सभा में उस अनुभूति को उन्होंने देशवासियों के सामने रखाः
जेल के एकांतवास में दिन प्रतिदिन भगवान ने अपने चमत्कार दिखाये और मुझे हिन्दू धर्म के वास्तविक सत्य का साक्षात्कार कराया। पहले मेरे अंदर अनेक प्रकार के संदेह थे। मेरा लालन-पालन इंग्लैंड में विदेशी भावों और सर्वथा विदेशी वातावरण में हुआ था। एक समय मैं हिन्दू धर्म की बहुत सी बातों को मात्र कल्पना समझता था, यह समझता था कि इसमें बहुत कुछ केवल स्वप्न, भ्रम या माया है परंतु अब दिन-प्रतिदिन मैंने हिन्दू धर्म के सत्य को अपने मन में, अपने प्राणों में और अपने शरीर में अनुभव किया। मेरे सामने ऐसी सब बातें प्रकट होने लगीं जिनके बारे में भौतिक विज्ञान कोई व्याख्या नहीं दे सकता। जब मैं पहले पहल भगवान के पास (शरण) गया तो पूरी तरह भक्तिभाव के साथ नहीं गया था।
मैं भगवान की ओर बढ़ा तो मुझे उन पर जीवंत श्रद्धा न थी। उस समय मैं नास्तिक था, संदेहवादी था और मुझे पूरी तरह विश्वास न था कि भगवान हैं भी। मैं उनकी उपस्थिति का अनुभव नहीं करता था, फिर भी कोई चीज थी जिसने मुझे वेद के सत्य की ओर, हिन्दू धर्म के सत्य की ओर आकर्षित किया। मुझे लगा कि वेदांत पर आधारित इस धर्म में कोई परम बलशाली सत्य अवश्य है। मैंने यह जानने का संकल्प किया कि ‘मेरी बात सच्ची है या नहीं ?’ तो मैंने भगवान से प्रार्थना कीः ‘हे भगवान ! यदि तुम हो तो तुम मेरे हृदय की हर बात जानते हो। मैं नहीं जानता कि कौन-सा काम करूँ और कैसे करूँ ! मुझे एक संदेश दो।’
मुझे संदेश आया (भगवद वाणी सुनाई दी)। वह इस प्रकार थाः ‘इस एक वर्ष के एकांतवास में तुम्हें वह चीज दिखायी गयी है जिसके बारे में तुम्हें संदेह था, वह है हिन्दू धर्म का सत्य। यही वह धर्म है जिसे मैंने ऋषि-मुनियों और अवतारों द्वारा विकसित किया और पूर्ण बनाया है। तुम्हारे अंदर जो नास्तिकता थी, जो संदेह था, उसका उत्तर दे दिया गया है क्योंकि मैंने अंदर और बाहर स्थूल और सूक्ष्म – सभी प्रमाण दे दिये हैं और उनसे तुम्हें संतोष हो गया है।
जब तुम बाहर निकलो तो सदा अपनी (सनातन हिन्दू धर्म की) जाति को यही वाणी सुनाना कि वे सनातन धर्म के लिए उठ रहे हैं, वे अपने लिए नहींह बल्कि संसार के लिए उठ रहे हैं। अतएव जब यह कहा जाता है कि भारतवर्ष ऊपर उठेगा तो उसका अर्थ होता है सनातन धर्म ऊपर उठेगा। जब कहा जाता है कि भारतवर्ष महान होगा तो उसका अर्थ होता है सनातन धर्म बढ़ेगा और संसार पर छा जायेगा। धर्म के लिए और धर्म के द्वारा ही भारत का अस्तित्व है। धर्म की महिमा बढ़ाने का अर्थ है देश की महिमा बढ़ाना।’
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 9 अंक 300
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