गुरु की अनोखी परीक्षा (बोध कथा)

गुरु की अनोखी परीक्षा (बोध कथा)


बाबा मुक्तानंद जी से एक जिज्ञासु ने पूछा कि गुरू किस-2 प्रकार से शिष्य की परीक्षा करते हैं । बाबा ने कहा कि गुरू बहुत प्रकार से शिष्य की परीक्षा करते हैं गुरू की परीक्षा इतनी कठिन है कि गुरू को छोड़ लोग भाग जाते हैं । साधना पर लेक्चर देना, अच्छा खिलाना-पिलाना, अच्छा मीठा-2 बोलना, पैसा लूटना यह कोई बड़ी बात नहीं ।

इतना करने से गुरू शिष्य का संसार नहीं लूट सकते । हां ! डॉलर अवश्य लूट सकते हैं उसका संसार लूट सकता है केवल सच्चे सदगुरु के परीक्षण से, बाकी मस्का मारने वालों से शिष्य का संसार नहीं लूट सकता । गुरू का टेस्ट दवा से भी कठिन होता है, डॉक्टर लोग दवा देने से पहले टेस्ट करते हैं ।

एक बार मैं एक बहुत बड़े डॉक्टर के पास उनके क्लीनिक में गया, मेरा टेस्ट हुआ उन्होंने पांच बार सुई चुभाई पांच बार रक्त निकाला । सुबह से दोपहर तक खाना, चाय कुछ भी नहीं दिया, उसके बाद ही दवा दी । टेस्ट से दवा बहुत सुलभ है वैसे ही गुरू के अनुग्रह से भी टेस्ट बहुत कठिन होता है, अनुग्रह कठिन नहीं टेस्ट कठिन है ।

दृष्टांत के लिए एक हंसी की कहानी कहूंगा, एक बड़े गुरू का बड़ा आश्रम था एक आदमी कुछ मंत्र लेने के लिए आया, गुरू से अनुग्रह चाहता था वह आदमी बहुत बड़ा, बहुत प्रतिष्ठित था, हमारे आश्रम में भी ऐसे बहुत मान-प्रतिष्ठा वाले आते हैं । वे यह नहीं सोचते मान-प्रतिष्ठा काहे की ? इस शरीर की ।

आश्रम में मांस की कीमत क्या ? मांस का टुकड़ा लेकर आते हैं कि इसे प्रतिष्ठा मिल जाये मान मिल जाये । ऐसे ही एक बड़े आदमी ने मुझसे बड़े अभिमान से पूछा था कि आप मुझे क्या समझते हैं ? मैंने कहा बंबई में जैसे कपड़ा निकालने की बहुत सी फैक्टरियां हैं, वैसे ही मैं आपको मल निकालने की फैक्ट्री समझता हूं, इससे अधिक कुछ नहीं समझता, समझ गये ।

आश्रम में मानव ज्ञान पाने को आता है, गुरू की कृपा, उनका अनुग्रह पाने को आता है परन्तु वहां भी मान और प्रतिष्ठा ढूंढने लगता है उस प्रतिष्ठित आदमी ने उन गुरुजी से कहा कि हमें मंत्र दो । गुरू ने कहा तुम्हारे अंदर मंत्र प्रवेश के लिए जगह नहीं है पहले शुद्धि करके आओ ।

वह आदमी कुछ समय के बाद शुद्ध होकर आया, आश्रम में प्रवेश करते समय एक लड़की झाडू दे रही थी । गुरू ने लड़की से कह रख था कि वह बचकर ना निकले सब धुली उस पर उड़ा देना । आदमी सीधा आया, लड़की ने सब धुली उस पर उड़ा दिया । आकर बोला क्या गुरुजी ! हमको देख कर भी वह लड़की झाडू लगाती ही रही, हम पर सब धूल डाल दी।

गुरुजी बोले तुम्हारी देह में जो कई किलो मल है धूल उससे कुछ खराब नहीं, धूल तो दो-पांच सौ ग्राम है । तुम्हारे शरीर में उससे अधिक मल है । गुरुजी हमें मंत्र दो, गुरू जी ने कहा अभी तुम्हारी लायकी नहीं पहले शुद्ध होकर आओ । थोड़े दिन में फिर वह कुछ शुद्ध होकर आया,

गुरुजी ने इस बार भी एक लड़की को तैयार किया कहा अगर वह स्वयं रास्ता ना छोड़े तो सिर पर कचरे की टोकरी टकराकर सब उसी पर गिरा देना । वह बीच से ही आया, लड़की ने टकराकर सब कचरा उस पर डाल दिया, छी-छी दिखता नहीं सब कचरा हम पर ही डाल दिया ।

गुरू से भी कहा क्या गुरुजी कैसा काम करते हैं सब लोग आपके यहां, सब कचरा हम पर ही डाल दिया । गुरुजी ने कहा अभी भी मंत्र घुसेगा नहीं तुम्हारे अंदर जाओ शुद्ध होकर आओ । इस बार उसने बड़ी तपस्या की, गुरू के वाक्यों को समझने की कोशिश की, बहुत लोगों से मिला अपनी शुद्धि के उपाय के लिए ।

अंततः मनीषियों ने उसे यही सलाह दी कि जो तुम्हारे गुरू चाहते हैं जैसी उनकी सीख है उसके अनुरूप तुम ढल जाओ, यही सबसे बड़ी तपस्या है । उस व्यक्ति के दिमाग में बात बैठ गई कि गुरू ने क्या सीख दी है उसी का मनन और चिंतन करूं, उनके सिद्धांतों पर चलने का पूरा प्रयास करूं, तब शायद मेरी शुद्धि हो ।

व्यक्ति ने ऐसे ही किया कुछ माह उपरांत फिर चल पड़ा गुरू के पास, इस बार गुरू ने एक गर्म स्वभाव की लड़की को नियुक्त किया । बगल में एक तरफ से आये तो ठीक, बीच में से आने पर झाडू उसके मुंह पर मारना । वह फिर से आया मंत्र लेने, सीधा आने पर लड़की ने दो लगाये उसके मुंह पर झाडू से ।

इस बार सोच में पड़ गया कि क्या हमको विवेक नहीं, मेरे गुरुदेव ने क्या कहा है कि विवेक से काम लेना चाहिए । ये लोग आश्रम की सेवा करते हैं, हमने कुछ मदद तो की नहीं और तंग ही किया । बगल से ना जाकर सीधे सामने से गये, उसने उस लड़की को नमस्कार किया बोला देवी ! हमसे भूल गई, हमें क्षमा करना ।

जैसे ही गुरू के पास पहुंचा गुरू ने कहा अब लायकी हो गई है शुद्धि भी हुई अब मंत्र देंगें । इस प्रकार गुरू अनेक तरह से परीक्षण करते हैं, कुछ सावधान रहने से उसमें कुछ कठिन भी नहीं क्यूंकि गुरू ममता के स्वरूप हैं । परीक्षण तुम्हें भगाने के लिए नहीं करते, अपितु तुम्हें मजबूत बनाने के लिए करते हैं । ताकि तुममे जब ज्ञान का रस डालें तो तुम्हारा पात्र टूट ना जाए इसलिए परीक्षण होता है । नहीं तो वे जानते हैं कि तुममे कितनी लायकी है कितनी योग्यता है । परीक्षण से डरना नहीं चाहिए, अहो भाव से भरना चाहिए कि गुरुदेव हमारा परीक्षण कर रहे हैं गुरू में श्रद्धा रखकर कष्ट को सहना चाहिए । गुरू हमारे कल्याण के लिए ही करते हैं ऐसा समझना चाहिए ।

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