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शक्तिपात की वह अनोखी घटना जो इतिहास में दर्ज हो गई


जीवन के परम तत्व रूपी वास्तविकता के संपर्क का रहस्य गुरुभक्ति है, सच्चे शिष्य के लिए तो गुरू वचन माने कानून, गुरू का दास बनना माने ईश्वर का सेवक बनना । स्वामी राम को समाधि करने की अनुभूति की बड़ी अभिलाषा थी, उनके गुरुदेव बंगाली बाबा थे ।

बाबा ने राम से कहा कि जब तक तुम चार घंटे स्थिर ना बैठो, तुम्हें समाधि की अनुभूति नहीं होगी । राम ने बाल्य अवस्था से ही स्थिर बैठने का अभ्यास किया व अपना सर्वाधिक समय बैठकर समाधि का अनुभव करने में लगाया, किंतु कुछ समय तक असफल ही रहे ।

कई ग्रंथों को पढ़ने के बाद राम अध्यापक बन गये, वे अध्यात्म विषयक शास्त्र पढ़ाते थे किन्तु मन में यह शंका सदा ही बनी रहती थी कि बिना साक्षात अनुभूति के पढ़ाना ठीक नहीं है । उन्होंने सोचा कि यह उचित नहीं है मुझे साक्षात अनुभूति नहीं है, बिना किसी अनुभूति के मैं वही पढ़ाता हूं जो कि मैंने स्वयं ग्रंथों में अथवा अध्यापकों से पढ़ा है । अतः एक दिन स्वामी राम ने बाबा से कहा कि आज मैं आपको अंतिम चेतावनी देने जा रहा हूं या तो आप मुझे समाधि देंगे या मैं आत्महत्या कर लूंगा ।

बंगाली बाबा ने कहा क्या तुम इस संकल्प पर अटल हो, यदि हां तो बेटे तुम आत्महत्या करके दिखा दो । राम को कभी भी यह आशा ना थी कि उनके गुरुदेव ऐसा कहेंगे । वे इतना कठोर बनकर मुझे आत्महत्या करने को भी कह देंगे,  किन्तु उस समय बाबा बड़े कठोर से बन गये और बोले कि रात्रि को सो जाने से समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता राम, दूसरे दिन तुम्हें उसका समाधान करना ही पड़ेगा । उसी तरह आत्महत्या करने से तुम्हारी वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता,

तुम्हें दूसरे जन्म में उनका सामना करना ही पड़ेगा । तुमने ग्रंथों में पढ़ा है और इन बातों को समझते हो, तथापि आत्महत्या करने की बात करते हो । यदि तुम सही में यही सोचते हो तो जाओ और आत्महत्या करके देख लो ।

स्वामी राम ने शक्ति-पात के विषय में बहुत सुन रखा था कि शक्ति-पात का अर्थ है शक्ति प्रदान करना या द्वीप को प्रकाशित करना । उन्होंने बाबा से कहा आपने कभी मेरे ऊपर शक्ति-पात नहीं किया, इसका मतलब है कि या तो आपके पास शक्ति नहीं है या आप करना नहीं चाहते, कितने दिनों से मैं आंख मूंद रहा हूं किन्तु सिर दर्द के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं होता । मैं अपना समय व्यर्थ में व्यतीत करता हूं आपके पास रहके । किसी भी प्रकार की आंनद अनुभूति नहीं होती, मैंने नियमित रूप से कठिन परिश्रम किया ।

आपने कहा कि चौदह वर्ष लगेंगे और साधना करते हुए सत्रहवां वर्ष चल रहा है । आपने जो कुछ भी कहा, मैंने वही किया, बाबा ने कहा क्या तुम सच बोल रहे हो ? मैंने जो बतलाया था क्या तुम सच में उसका पालन कर रहे हो ? तुम्हारी सत्रह वर्षों की साधना की यही परिपक्वता है, कि तुम आत्महत्या कर लो । जरा सोचो ! क्या तुम मेरे कहने में चल रहे हो, क्या तुम्हारी साधना का यही फल है कि गुरू का द्वार छोड़ कर तुम विपरीत अवस्था की ओर अग्रसर हो रहे हो । मेरी शिक्षाओं का क्या यही सार है कि तुम आत्महत्या करने जा रहे हो ।

अच्छा बताओ तुम आत्महत्या कब करोगे ? राम ने कहा अभी आत्महत्या करने से पूर्व मैं आपसे बताने आया था कि अब आप मेरे गुरू नहीं रह गये, मैंने अब सभी चीज़ों को त्याग दिया । मैं अब संसार के लिए किसी काम का नहीं हूं तथा आपके लिए भी किसी काम का नहीं हूं,

यह कहकर राम गंगाजी में डूब मरने के लिए चल पड़े । गंगाजी वहां से समीप थी, बाबा ने कहा तुम्हें तो तैरना आता है राम । अतः कहीं हाथ पैर मारकर तुम बाहर नहीं निकल जाओ । तुम कुछ ऐसा उपाय करो जिससे तुम सचमुच में डूब सको ।

यह अच्छा रहेगा कि तुम अपने शरीर में कुछ भारी पत्थर बांध कर कूदो ताकि ठीक से मर सको । राम ने कहा आपको हो क्या गया है ! आप मुझे इतना स्नेह किया करते थे और आज इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं । राम गंगाजी के पास में गये, और अपने शरीर में एक बड़ा पत्थर रस्सी से बांधा और गंगाजी में कूदने को तैयार हो गये । अंततः जब बाबा ने देखा कि राम वास्तव में ही कूदने को तैयार है तब उन्होंने राम को बुलाते हुए कहा रुको जहां खड़े हो वहीं पर बैठ जाओ ।

राम अपने ध्यान आसन में बैठ गये और बाबा ने आकर उनके मस्तक पर स्पर्श कर दिया । राम उसी आसन में नौ घंटे तक बैठे रहे तथा विचार की एक तरंग भी मन में ना उठी । जब राम सचेत हुये तो तीसरा प्रहर हो चुका था क्यूंकि समाधि में समय का भान नहीं रह जाता है,

इस समाधि से उठने पर सर्वप्रथम राम ने बाबा के पास जाकर क्षमा मांगी । बाबा ने उस स्पर्श से राम में अनेक अध्यात्मिक अनुभूति करा दी थी । राम का जीवन ही बिल्कुल बदल गया, उसके बाद वे जीवन को यथार्थ रूप में समझने लगे ।

बाद में जब राम ने बाबा से पूछा कि क्या ये मेरा प्रयास था या आपका ? बाबा ने उत्तर दिया कृपा । स्वामी राम कहते हैं कि समस्त प्रयत्नों की गति अवरुद्ध हो जाने के बाद पूर्णतया असहाय और निराश होकर भाव भक्ति की उच्चतम स्थिति में करुण क्रंदन करने पर उसका दिव्य भाव राज्य में प्रवेश हो जाता है गुरू की कृपा से ।

उसी को ईश्वर की कृपा या गुरू की कृपा या अनुग्रह कहते हैं, कृपा हमारे श्रद्धा और निष्ठा के साथ सतत्त प्रयत्नों का ही परिणाम है । यदि अनुभूति की तड़प नहीं तो साधक सत्रह वर्ष रहे या एक सौ सत्तर वर्ष, अंततः वह स्व को पूर्णता के शिखर से नीचे ही प्राप्त पायेगा ।

यहां दो रास्ते हैं या तो तड़प को जगाओ या तो गुरू की अनुभूति या उनका अनुग्रह स्वयं ही तुम्हारे पास आ जायेगा । या तो गुरू के वाक्यों को मानते हुये चलो तो भी गुरू का अनुग्रह, उनकी कृपा सहज ही प्राप्त हो जायेगी ।

गुरुगीता-पाठ और त्रिकाल संध्या-नियमों का प्रभाव


★ मैं आज से दो-ढाई वर्ष पूर्व संत श्री आसाराम जी बापू (Pujya Asaram Bapu Ji) के श्रीचरणों में आया तब से मुझे अनेक अनुभव हुये । मैंने अच्छा-खासा जीवन-परिवर्तन महसूस किया ।

गुरुगीता-पाठ और त्रिकाल संध्या-नियमों का प्रभाव ।

★ मैं आज से दो-ढाई वर्ष पूर्व संत श्री आसाराम जी बापू (Pujya Asaram Bapu Ji) के श्रीचरणों में आया तब से मुझे अनेक अनुभव हुये । मैंने अच्छा-खासा जीवन-परिवर्तन महसूस किया ।

★ मैंने अखण्डानंद आयुर्वेदिक कॉलेज में पाँच साल अभ्यास किया । परीक्षा-काल में अन्य छात्रों की भाँति मैं भी नकल करते हुये परीक्षाएँ उतीर्ण करता रहा परंतु जब से मैं पूज्य बापू के श्रीचरणों में आया तब से बिना किसी नकल के परीक्षाएँ उत्तीर्ण करता रहा और अंतिम वर्ष में तो प्रथम श्रेणी से सफलता हासिल की ।

★ जनवरी ‘९१ के उत्तरायण ध्यान-योग शिविर में पूज्य बापू से मंत्र-दीक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला । अंतिम दो महीनों में मैंने दो विलक्षण अनुभव किये ।

★ पूज्य बापू प्रत्येक साधक को त्रिकाल स्नध्या और गुरु गीता का पाठ करते रहने का विशेष आग्रह रखते हैं । यह नियम अखण्ड रीति से पालन करने वाले को आजीविका की चिंता नहीं रहती । मैं बापू के इन वचनों को आदरपूर्वक ग्रहण करके चलता रहा ।

★ दो महीने पहले सरकारी वैद्यों की रिक्त जगहें पूर्ति करने के लिए अहमदाबाद में ‘इंन्टरव्यू‘ के लिए बुलाया गया । अब तक इस पद के लिए पच्चीस तीस हजार रिश्वत देना आवश्यक माना जाता था । इस बार यह राशि बढकर पचास से सत्तर हजार तक पहुँच चुकी थी ।

★ मैं नित्यप्रति पूज्य बापू (Pujya Asaram Bapu Ji)के आदेशानुसार गुरुमंत्र और श्रीगुरुगीता(Shri Guru Gita) का पाठ तथा त्रिकाल-स्नध्या नियमित रूप से करता रहा, ‘इन्टरव्यू के दिन भी इस नियम का चुस्ती से पालन किया ।

★ ‘इन्टरव्यू के समय भी मन में गुरुमंत्र का जाप चलता रहा । ‘इंटरव्यू लेनेवाले अधिकारी पर मेरे इस गुरुमंत्र का ऐसा भी प्रभाव पडा कि एक भी दमडी दिये बिना एवम् किसी भी प्रकार की सिफारिश किये कराये बिना मुझे नौकरी प्राप्त हो गयी ।

★ मेरिट-सूची में मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ ।

आयुर्वेद में एम.डी. होने के लिए प्रवेश-परीक्षा का आयोजन हुआ करता है । इस परीक्षा में भी श्रीगुरुगीता (Shri Guru Gita)के पाठ तथा १०८ श्री आसारामायण-पाठ(Shri Asharamayan Path) तथा गुरुमंत्र-जाप की सहायता से मैं सफल हुआ ।

★ निश्चित ही, सच्चे सद्गुरु से सद्शिक्षा एवं मंत्रदीक्षा प्राप्त कर लेने के पश्चात् गुरु-आज्ञानुसार प्रचलित सत्पात्र साधक को नौकरी-धंधे की चिंता नहीं रहती ।

सचमुच गुरु है दीनदयाल,

सहज ही कर देते हैं निहाल ।

तथा एक सौ आठ जो पाठ करेंगे,

उनके सारे काज सरेंगे ।

श्री आसारामायण की इन पंक्तियों को मैंने अपने जीवन में घटते हुये देखा और अनुभव किया ।

-वैद्य विरल वी. शाह

३३, ज्ञानदा सोसायटी, जीवराज पार्क, अहमदाबाद-५१

त्रिकाल संध्या : शांति, प्रसन्नता,धन ऐश्वर्य की कामना है तो आज से ही सुरु कीजिये त्रिकाल संध्या


पूज्य बापूजी त्रिकाल संध्या (Trikal Sandhya)से होनेवाले लाभों को बताते हुए कहते हैं कि “त्रिकाल संध्या माने ह्रदय रुपी घर में तीन बार साफ-सफाई । इससे बहुत फायदा होता है ।

त्रिकाल संध्या(Trikal Sandhya) करने वाले को मिलते है यह अदभुत 15 लाभ :

१] अपमृत्यु आदि से रक्षा होती है और कुल में दुष्ट आत्माएँ, माता-पिता को सतानेवाली आत्माएँ नहीं आतीं ।

२] किसीके सामने हाथ फैलाने का दिन नहीं आता । रोजी – रोटी की चिंता नहीं सताती ।

३] व्यक्ति का चित्त शीघ्र निर्दोष एवं पवित्र हो जाता है | उसका तन तंदुरुस्त और मन प्रसन्न रहता है तथा उसमें मंद व तीव्र प्रारब्ध को परिवर्तित करने का सामर्थ्य आ जाता है । वह तरतीव्र प्रारब्ध के उपभोग में सम एवं प्रसन्न रहता है । उसको दुःख, शोक, ‘हाय-हाय’ या चिंता अधिक नहीं दबा सकती ।

४] त्रिकाल संध्या करनेवाली पुण्यशीला बहनें और पुण्यात्मा भाई अपने कुटुम्बियों एवं बच्चों को भी तेजस्विता प्रदान कर सकते हैं ।

५] त्रिकाल संध्या (Trikal Sandhya)करनेवाले माता – पिता के बच्चे दूसरे बच्चों की अपेक्षा कुछ विशेष योग्यतावाले होने की सम्भावना अधिक होती है ।

६] चित्त आसक्तियों में अधिक नहीं डूबता | उन भाग्यशालियों के संसार-बंधन ढीले पड़ने लगते हैं ।

७] ईश्वर – प्रसाद पचाने का सामर्थ्य आ जाता है ।

८] मन पापों की ओर उन्मुख नहीं होता तथा पुण्यपुंज बढ़ते ही जाते हैं |

९] ह्रदय और फेफड़े स्वच्छ व शुद्ध होने लगते हैं ।

१०] ह्रदय में भगवन्नाम, भगवदभाव अनन्य भाव से प्रकट होता है तथा वह साधक सुलभता से अपने परमेश्वर को, सोऽहम् स्वभाव को, अपने आत्म-परमात्मरस को यही अनुभव कर लेता है ।

११] जैसे आत्मज्ञानी महापुरुष का चित्त आकाशवत व्यापक होता है, वैसे ही उत्तम प्रकार से त्रिकाल संध्या(Trikal Sandhya) और आत्मज्ञान का विचार करनेवाले साधक का चित्त विशाल होंते – होते सर्वव्यापी चिदाकाशमय होने लगता है |ऐसे महाभाग्यशाली साधक-साधिकाओं के प्राण लोक – लोकांतर में भटकने नहीं जाते | उनके प्राण तो समष्टि प्राण में मिल जाते हैं और वे विदेहमुक्त दशा का अनुभव करते हैं ।

१२] जैसे पापी मनुष्य को सर्वत्र अशांति और दुःख ही मिलता है, वैसे ही त्रिकाल संध्या करनेवाले साधक को सर्वत्र शांति, प्रसन्नता, प्रेम तथा आनंद का अनुभव होता है ।

१३] जैसे सूर्य को रात्रि की मुलाकात नहीं होती, वैसे ही त्रिकाल संध्या करनेवाले में दुश्चरित्रता टिक नहीं पाती ।

१४] जैसे गारुड़ मंत्र से सर्प भाग जाते हैं, वैसे ही गुरुमंत्र से पाप भाग जाते हैं और त्रिकाल संध्या करनेवाले शिष्य के जन्म-जन्मान्तर के कल्मष, पाप – ताप जलकर भस्म हो जाते हैं ।

आज के युग में हाथ में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देने से भी अच्छा साधन मानसिक संध्या करना है । इसलिए जहाँ भी रहें, तीनों समय थोड़े – से जल से आचमन करके त्रिबंध प्राणायाम करते हुए संध्या आरम्भ कर देनी चाहिए तथा प्राणायाम के दौरान अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जप करना चाहिए ।

१५] त्रिकाल संध्या व त्रिकाल प्राणायाम करने से थोड़े ही सप्ताह में अंत:करण शुद्ध हो जाता है | प्राणायाम, जप, ध्यान से जिनका अंत:करण शुद्ध हो जाता है उन्हींको ब्रह्मज्ञान का रंग जल्दी लगता है |

कैसे करें त्रिकाल संध्या :

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★ आप लोग जहाँ भी रहें, त्रिकाल संध्या के समय हाथ-पैर धोकर तीन चुल्लू पानी पी के ( आचमन करके ) संध्या में बैठे और त्रिबंध प्राणायाम करें ।

★ अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जप करें, २ – ५ मिनट शांत होकर फिर श्वासोच्छ्वास की गिनती करें और ध्यान करें तो बहुत अच्छा ।

★ त्रिकाल न कर सकें तो द्विकाल संध्या अवश्य करें ।

★ लम्बा श्वास लें और हरिनाम का गुंजन करें | खूब गहरा श्वास लें नाभि तक और भीतर करीब २० सेकंड रोक सकें तो अच्छा है, फिर ओऽऽ….म…. इस प्रकार दीर्घ प्रणव का जप करें ।

★ ऐसा १०-१५ मिनट करें ।

★ कम समय में जल्दी उपासना सफल हो, जल्दी आनंद उभरे, जल्दी आत्मानंद का रस आये और बाहर का आकर्षण मिटे, यह ऐसा प्रयोग है और कहीं भी कर सकते हो, सबके लिए है, बहुत लाभ होगा ।

★ अगर निश्चित समय पर निश्चित जगह पर करो तो अच्छा है, विशेष लाभ होगा ।

★ फिर बैठे हैं…..श्वास अंदर गया तो ॐ या राम, बाहर आया तो एक….. अंदर गया तो शांति या आनंद, बाहर आया तो दो….श्वास अंदर गया तो आरोग्यता, बाहर गया तो तीन….इस प्रकार

★ अगर ५० की गिनती बिना भूले रोज कर लो तो २ – ४ दिन में ही आपको फर्क महसूस होगा कि ‘हाँ, कुछ तो है |

★ ’ अगर ५० की गिनती में मन गलती कर दे तो फिर से शुरू से गिनो | मन को कहो, ’५० तक बिना गलती के गिनेगा तब उठने दूँगा |’ मन कुछ अंश में वश भी होने लगेगा,

★ फिर ६०, ७०…. बढ़ते हुए १०८ तक की गिनती का नियम बना लो | १ मिनट में १३ श्वास चलते