क्या आपने ईश्वर को देखा है? (सन्यासी का आध्यात्मिक सफर) भाग २

क्या आपने ईश्वर को देखा है? (सन्यासी का आध्यात्मिक सफर) भाग २


जब कोई व्यक्ति संसार मे सफलता हासिल करने निकलता है तो सभी रिश्तेदार उसका हौसला बढ़ाते हैं, जब तक किसी कला मे कुशल होने की कोशिश करता है तो सभी मित्र और शिक्षक उसे हिम्मत देते हैं, प्रोत्साहित करते हैं यदि आप मिस इंडिया या मिस यूनिवर्स बनने की कोशिश मे है तो आपके लिए बहुत सारे लोग तालियां बजाने को तैयार हो जाते है मगर ईश्वर की खोज करने के लिए कोई आपको प्रोत्साहित नहीं करता। ये मार्ग ऐसा है कि सतगुरु के अलावा इस मार्ग पर आपका हाथ पकड़कर और कोई चलाने मे सक्षम नहीं, स्वयं ईश्वर भी। इस समस्त संसार मे एक सतगुरु ही सच्चे आश्रय दाता है, सच्चे पथ प्रदर्शक है। इस मार्ग पर प्रारंभ मे आपको अकेले ही चलना होगा। नरेंद्र भी जब ईश्वर की खोज के लिए निकले तो शुरुआत मे सभी लोगो ने इसे उनका पागलपन ही समझा लेकिन उनके एक दूर के रिश्तेदार डॉ. रामचंद्र दत्त। जिनके साथ उनकी अच्छी मित्रता हो गई थी, उन्होंने इस मार्ग पर नरेंद्र को प्रोत्साहित किया क्यों कि वे नरेंद्र को अच्छी तरह समझते थे जब नरेंद्र ने बी. ए की परीक्षा दे दी तो घर मे उनके विवाह की बाते होने लगी, उनके पिता ने रिश्ते की बात आगे बढ़ानी चाही तो नरेंद्र ने साफ मना कर दिया क्योंकि बचपन से ही उन्हें शादी, ब्याह मे थोड़ी सी भी रुचि नहीं थी।

उन्हें तो जीवन के अंतिम सत्य की तलाश थी, नरेंद्र को यह तो चेतना थी कि मुझे अंतिम सत्य को पाना है परन्तु उन्हें सतगुरु के विषय मे कुछ ज्ञात न था, इस विषय पर नरेंद्र ने डॉ. रामचंद्र दत्त से अपने मन की बात कही, दादा मैं विवाह नहीं करना चाहता क्यों कि विवाह मेरी आवश्यकता नहीं है बल्कि यह तो मेरे लक्ष्य के बिल्कुल विपरीत है, रामचंद्र दत्त ध्यान से नरेंद्र की बात सुन रहे थे उन्होंने नरेंद्र को एक टक देखा और कहा तो क्या है तुम्हारा लक्ष्य? उच्च शिक्षा हासिल करना, पद प्रतिष्ठा प्राप्त करना, समाज सुधार करना या फिर देश को स्वतंत्र करना… क्या है?

नरेंद्र ने कहा- नहीं मेरा लक्ष्य तो सिर्फ ईश्वर की खोज करना है, मुझे अपने लिए कोई साथी नहीं बल्कि केवल एक ईश्वर का ही साथ चाहिए।

आप बाबा को समझा दे कि हर स्त्री मेरे लिए केवल मां समान है, मैं हर स्त्री को किसी और दृष्टि से देख ही नहीं सकता, नरेंद्र का जवाब सुनकर रामचंद्र दत्त आश्चर्यचकित हुए उन्होंने नरेंद्र को समझाते हुए कहा कि इतने सारे लोग ब्याह करते ही हैं उनके बाल बच्चे है उन्हें पालते है, पोसते है। वे भी तो मंदिर जाते है और ईश्वर की भक्ति करके पुण्य अर्जित करते हैं तो तुम भी विवाह कर को और ईश्वर की खोज को जारी रखो।

इस पर नरेंद्र ने कहा कि लोग मंदिर जाकर केवल प्रसाद चाहते हैं, ईश्वर नहीं पाते। मैं साक्षात ईश्वर पाना चाहता हूं मैं ईश्वर को वैसे ही पाना चाहता हूं जैसे पौराणिक कथाओं मे साधकों ने पाया है कृप्या आप मेरी भावनाओं को समझे और मेरे पक्ष मे बाबा से बात करे। रामचंद्र दत्त नरेंद्र को देखकर मुस्कराए और उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा यदि तुम अपनी इच्छा से सांसारिक बंधनों से पार रहकर ईश्वर को पाना चाहते हो तो दक्षिणेश्वर जाकर श्री रामकृष्ण की शरण मे जाओ, वे ही तुम्हे सही मार्ग दिखा पाएंगे। नरेंद्र ईश्वर के मार्ग पर एक सदगुरु ही सच्चे आश्रय दाता होते हैं। तुम उनकी शरण मे जाओ रामकृष्ण परमहंस सच्चे सदगुरु है। यह घटना नरेंद्र के जीवन को अलग ही मोड़ पर ले गई।

नरेंद्र के मन को रामकृष्ण परमहंस रूपी चित्रकार का स्पर्श हुआ तो उनके जीवन में व्यापक परिवर्तन हुआ, दरअसल लोग ईश्वर को तभी याद करते हैं जब उनके जीवन मे कोई समस्या आती हैं लेकिन नरेंद्र का जीवन तो सुख सुविधा से संपन्न था फिर भी उनके मन मे ईश्वर को पाने की लालसा थी प्रायः यह देखा जाता है कि साधक के पास कुछ धन आ जाता है तो उस धन से वह स्वयं का पतन कर लेता है अथवा तो साधक के पास बिल्कुल धन ना हो तो वह ईश्वर का मार्ग त्याग देता है लेकिन नरेंद्र ने ऐसा न किया। सत्य के खोजी के अंदर ये भावना जागनी चाहिए कि मुझे ये सत्य ही चाहिए, पहले मैं इससे बेखबर था मुझे पता न था अब जब सतगुरु की कृपा से,संतो की कृपा से खबर मिल गई है तो मैं क्यों रूकु? अब मुझे केवल परम सत्य पाना है, ऐसे पिपासा हर साधक मे होनी चाहिए अगर हमारे अंदर भी नरेंद्र की भांति ईश्वर को पाने की सच्ची प्यास है तो सत्य हमारे लिए बहुत सीधा और सहज और सरल होगा क्यों कि हम सभी के जीवन मे प्रारंभ से ही सतगुरु का आश्रय है, सतगुरु का वरद हस्त हम साधकों के सर पर है, परम सत्य जानने के लिए मात्र प्यास जागना सबसे मुख्य कदम होता है बल्कि तृषा निवारक के लिए तो सतगुरु पहले से ही अमृत कुंभ लेकर हमारे प्रत्यक्ष खड़े ही है, लेकिन जब तक किसी के सामने असली प्यास जाग्रत नहीं होती तब तक व्यक्ति तमाम बाहरी बातो मे ही उलझा रहता है, अध्यात्म का मार्ग ऐसा है कि यहां प्यासे के पास तृषा निवारक ईश्वर उसे भेट करने सतगुरु के रूप मे अवश्य आ जाते है।

एक क्षण का विलंब नहीं लगता, सतगुरु ही वो परम चेतना है, परम सत्ता है जो पिपासुओ को पूर्व सत्ता का अनुभव करा सकता है, नरेंद्र की तड़प ने उनकी मुलाक़ात ठाकुर रामकृष्ण देव से कराई और नरेंद्र ने अपना पूरा जीवन उनके श्री चरणों मे अर्पित कर दिया जिन्हें आज हम स्वामी विवेकानंद के नाम से जानते है।

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