पूज्य बापूजी की यह चमत्कारिक लीला आपको आंनद रस में विभोर कर देगी घटना 1975 की..

पूज्य बापूजी की यह चमत्कारिक लीला आपको आंनद रस में विभोर कर देगी घटना 1975 की..


जो दैवीय गुरु के चरणों में आश्रय लेता है वह गुरु की कृपा से अध्यात्मिक मार्ग में आने वाले तमाम विघ्नों को पार कर जायेगा । योग के लिए श्रेष्ठ एकांत गुरु का निवास स्थान है । शिष्य के साथ गुरु रहते नहीं हों तो ऐसा एकांत सच्चा एकांत नहीं है । ऐसा एकांत काम और तमस का आश्रय स्थान बन जाता है । गुरु माने सच्चिदानंद माने परमात्मा । जिस शिष्य को अपने गुरु के प्रति भक्ति-भाव है, उसके लिए तो आदि से अंत तक गुरु सेवा मीठे शहद जैसी बन जाती है । गुरु के पवित्र मुख से बहते हुए अमृत का जो पान करता है वह मनुष्य धन्य है । जो सम्पूर्ण भाव से अपने गुरु की अथक सेवा करता है उसे दुनियादारी के विचार ही नहीं आते । इस दुनिया में वह सबसे अधिक भाग्यवान है । बस अपने गुरु की सेवा करो, सेवा करो, सेवा करो ! गुरुभक्ति विकसित करने का यह राजमार्ग है, अपने गुरु की महिमा का गुणगान, उनकी लीलाओं का ज्ञान और उनकी ही चर्चा हर सतशिष्य को हृदय गम्य होती है । सहज ही साधक के हृदय को पुलकित एवम् आनंदित कर देती है । आईये हम सुनते हैं पूज्य बापूजी के जीवन प्रेरक प्रसंग…..श्रीमती शारदा पटेल सन 1975 से बापूजी का सत्संग सानिध्य पाती रही हैं । वे बता रही हैं बापूजी के सानिध्य में उनके जीवन में हुए कुछ रोचक प्रसंग । मैंने शुरू से ही पूज्य बापूजी का बहुत ही सरल स्वभाव देखा है । सन 1975 में मैं पिताजी को लेकर आश्रम अाई थी । उनके पैर में काफी तकलीफ थी, उस समय आश्रम के चारों तरफ जंगल था । आश्रम तक आने के लिए यातायात का कोई साधन भी नहीं मिलता तो हम बड़ी मुश्किल से पैदल चलकर अाए । आश्रम पहुंचे तो एक ओजस्वी, तेजस्वी काली दाढ़ी वाले महाराज ने हमसे पूछा… आप लोग कहां से आए हैं ? मैं बोली ऊंझा, गुजरात से । किससे मिलना है ? बापू से, आशाराम बापू मिलेंगे । तब संस्कार नहीं थे तो हम ऐसा बोलते थे । हां मिलेंगे । आप लोग बैठो मैं उनको बताता हूं कि कोई आया है । थोड़ी देर बाद हमने देखा तो जिनसे हमारी बात हुई थी वे ही महाराज सत्संग मंडप में आकर व्यासपीठ पर बैठ गए और हमें बुलाया । हम गए तो वे बोले अभी देखा । मैंने पूछा आप आशाराम बापू हैं ? हां मैं आशाराम बापू हूं । पहले तो आपने बोला मैं भेजता हूं आशाराम बापू को । बापूजी मुस्कुराते हुए बोले यह तो ऐसे होता रहता है । मैं तो हैरान रह गई फिर बापूजी ने सत्संग किया । सत्संग में मैं थैला गोद में लेकर बैठी थी । पूज्यश्री बोले यह पोटला नीचे रखो, इसमें कोई सार नहीं, इसे छोड़ दो । मैंने थैला नीचे रखा । घुटने के दर्द का इलाज बताते हुए पूज्यश्री बोले गौझरन को मटके में भरकर तीन-चार सप्ताह तक गड्ढे में गाड़ देना । फिर उसको लगाकर मालिश करना । सत्संग के बाद बापूजी ने मेरे पिताजी को मोक्ष कुटीर में बुलाकर मंत्र दीक्षा दी । पिताजी को चलने में तकलीफ थी इसीलिए जब हम जाने लगे तो पूज्य श्री स्कूटर से सड़क तक छोड़ कर अाए । दूसरा प्रसंग बताते हुए वे कहती हैं कि ऊंझा में जब बापूजी पहली बार हमारे घर आए तो मुझे पता नहीं था कि कितने लोग आएंगे । मैंने बड़ी श्रद्धा व प्रेम से 14-15 लोगों की रसोई बनाई थी परन्तु 100 लोग आ गए । मैं तो घबरा गई, आश्रम के शंकर भाई को मैंने बोला इतने सारे लोगों को हम क्या खिलाएंगे । हमने तो 14-15 लोगों का भोजन बनाया है, अब 100 लोगों की रसोई तुरंत कैसे बना पाऊंगी । बापूजी को पता चला तो उन्होंने मुझसे पूछा तूने क्या बनाया है ? बापू दाल, भात, सब्जी, रोटी । अच्छा दिखाओ ढक्कन खोलकर दिखाया तो बापूजी ने सब्जी, दाल, चावल में चम्मच घुमाया फिर बोले परोसो नहीं खुटेगा । केवल 14-15 लोगों का भोजन था परन्तु आश्चर्य मैं परोसती गई और वह खुटा ही नहीं । सभी 100 लोगों के लिए पर्याप्त भोजन हो गया, कुछ भी कम नहीं पड़ा ।

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