गुरूभक्तियोग में सब योग समाविष्ट हो जाते हैं। गुरूभक्तियोग के आश्रय के बिना अन्य कई योग, जिनका आचरण अति कठिन है, उनका सम्पूर्ण अभ्यास किसी से नहीं हो सकता।
गुरूभक्तियोग में आचार्य की उपासना के द्वारा गुरूकृपा की प्राप्ति को खूब महत्त्व दिया जाता है।
गुरूभक्तियोग वेद एवं उपनिषद के समय जितना प्राचीन है।
गुरूभक्तियोग जीवन के सब दुःख एवं दर्दों को दूर करने का मार्ग दिखाता है।
एक बार भगवान श्रीरामजी ने
लक्ष्मणजी से पूछा : “लक्ष्मण !
तुमने अयोध्या से लेकर लंका तक की यात्रा की, उस यात्रा में सबसे अधिक आनन्द तुम्हें कब आया ?”
लक्ष्मण जी : ” प्रभु ! मेरी सबसे बढ़िया यात्रा तो लंका में हुई और वह भी तब हुई जब मेघनाथ ने मुझे बाण मार दिया था।”
प्रभु ने हँसकर कहा : “लक्ष्मण !
तब तो तुम मूर्च्छित हो गए थे, उस समय तुम्हारी यात्रा कहाँ हुई थी?”
“महाराज ! उसी समय तो सर्वाधिक सुखद यात्रा हुई।”
लक्ष्मण जी का तात्पर्य कि अन्य जितनी भी यात्राएं हुई तो उन्हें चलकर पूरा किया लेकिन इस यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि मूर्छित होने के बाद हनुमानजी ने मुझे गोद में उठा लिया और आपकी गोद मे पहुँचा दिया।
प्रभु ! सन्त की गोद से लेकर ईश्वर की गोद तक की जो यात्रा थी, जिसमें रंचमात्र कोई पुरुषार्थ नही था, उस यात्रा में जितनी धन्यता की अनुभूति हुई वह तो सर्वथा वाणी से परे है।
लक्ष्मण जी ने कहा : ” प्रभु !
शेष के रूप में आपको सुलाने का सुख तो मैने देखा था परंतु आपकी गोदी में सोने का सुख तो सन्त की कृपा से ही मुझे प्राप्त हुआ । इसलिये सबसे महान यात्रा वही थी जो हनुमान जी की गोद से आपकी गोद तक हुई थी ।”
श्रीरामजी ने लक्ष्मण जी को हृदय से लगा लिया ।