कई शिष्यों के मन में दंश करते एक प्रश्न का पूज्य गुरु जी द्वारा संशय निवारण…

कई शिष्यों के मन में दंश करते एक प्रश्न का पूज्य गुरु जी द्वारा संशय निवारण…


पवित्र गुरु गीता का जो हर रोज अभ्यास करता है वही सच्चा विशुद्ध है। उसे ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो अपने गुरु के यश में आनंदित होता है और दूसरों के समक्ष अपने गुरु के यश का वर्णन करने में आनंद का अनुभव करता है उसे सचमुच गुरु कृपा प्राप्त होती है।

आपको अगर सचमुच ईश्वर साक्षात्कार की तड़प होगी तो अपनी आध्यात्मिक गुरु को आप अपने घर के द्वार पर खड़े पाएंगे। जो लोग नियमित रूप से सत्संग करते हैं उनमें ईश्वर और शास्त्रों में श्रद्धा,गुरु एवं ईश्वर के प्रति प्रेम तथा भक्ति का धीरे-धीरे विकास होता है।

गुरु के पास अभ्यास पूरा करने के बाद समग्र जीवन पर्यंत शिष्य को अपने आचार्य के प्रति कृतज्ञता का भाव बनाए रखना चाहिए।

शिष्य ने गुरुदेव से पूछा,

“गुरुदेव! मुझे दीक्षा लिए कई वर्ष हो गए तब से मैं आपकी आज्ञाओ में चलने की पूरी कोशिश कर रहा हूं। परंतु एक दुविधा है मुझे यह पता ही नहीं चल रहा है कि मै इस मार्ग पर कितना चल चुका हूं? और अभी कितना सफर बाकी है। कई बार तो लगता है कि मैं वही का वही खड़ा हूं । मेरे कोई प्रगति ही नहीं हुई। इस वजह से मन दुखी हो जाता है और मन में अनेक प्रकार के सशंय आने लगते हैं मैं क्या करूं?”

गुरुदेव ने कहा,

“आपने कभी गौर किया है कि गाय का बछड़ा जन्म लेने के कुछ समय बाद ही चलने फिरने और भागने लगता है। उसी तरह कुछ लोग दीक्षा लेते ही बड़ी गति से अध्यात्म मार्ग पर चलने लगते हैं। उनकी उन्नति उनके जीवन में साफ दिखाई भी देती है । लेकिन कुछ साधकों का अध्यात्मिक जन्म अंडे की तरह होता है ।

जब एक मुर्गी अंडे को सेती है तो उसे अंडे में कोई बदलाव होता नजर नहीं आता। फिर भी उसे विश्वास होता है। उसे न अंडा घटते हुए दिखता है न बढते हुए न ही उसका रूप व रंग बदलता है।

परंतु फिर अचानक एक दिन उसी अंडे में से एक बच्चा निकल आता है ।

अब सोचिए क्या बच्चा एकदम से बन गया। नही! बेशक बाहर से अंडे में कोई बदलाव होता नही दिखता परंतु भीतर ही भीतर उसका तरल पदार्थ बच्चे का रूप ले लेता है। ठीक इसी तरह जब आप सेवा करते हैं साधना करते हैं ज्ञान अग्नि में खुद को सेते है… अर्थात गुरू के सिद्धांत के संपर्क में रहते हैं तो आपके भीतर ही भीतर आपके अंतःकरण में कई बदलाव हो रहे होते है। आपके कर्म संस्कार जलते है, दूर भावनाएं, विकार नष्ट होते है। बेशक बाहर कोई बदलाव होता नजर नहीं आता परंतु अंदर से आप का निर्माण हो रहा होता है।

आप जितने सेवा साधना करते हैं उतना ही अध्यात्म मार्ग पर आगे बढ़ते हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। यदि आप में सशंय उठता है तो मुर्गी से सीख लो ।

एक मुर्गी पूरे विश्वास के साथ अपना कर्म करती है । अंडे को सेती रहती है इसी प्रकार आप भी ब्रह्मज्ञान पर पूरा विश्वास रखें। इस मार्ग पर पूरा विश्वास रखें। पूरी लगन व दृढ़ता से अपना सेवा साधना रूपी कर्म करें । समय आने पर आपको फल अवश्य मिलेगा। आपकी अध्यात्म पथ पर हुई उन्नति प्रकट होगी। इस मार्ग मे धैर्य अति आवश्यक है।

अपनी लगन बढ़ाएं और सतगुरु पर पूर्ण विश्वास रखकर इस मार्ग पर अग्रसर होते रहे…..।

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