मंगल, सर्वमंगल, सर्वसुमंगल-पूज्य बापू जी

मंगल, सर्वमंगल, सर्वसुमंगल-पूज्य बापू जी


मंगल उसे कहते हैं जो सुख, शांति, आनंद है लेकिन वह मंगल भी तीन प्रकार का होता है।

पहलाः पत्नी, पति अनुकूल है, काम धंधा ठीक है, घर में वैमनस्य नहीं है, मंगलमय जिंदगी है इसको सामान्य मंगल बोलते हैं।

दूसराः इससे बड़ा मंगल सबका मंगल और होता है जिसको सर्वमंगल कहते हैं। सबकी भलाई में अपनी भलाई, सबकी शांति में, सुख में अपना सुख। परस्पर सद्भाव, एक-दूसरे की भावनाओं को भगवान में लगाना और भक्तिरस में मददगार होना, सेवा में मददगार होना। एक-दूसरे की टाँग खींचने की दुष्ट वृत्ति से उपराम होना। यह सर्वमंगल है। सेवा के लिए मंगलभावना और मंगलमय भगवान के नाते काम करना यह सर्वमंगल है।

तीसरा मंगल होता है सर्वसुमंगल।

सर्वसुमंगल सुखस्वरूप परमात्मा में विश्रांति पाना। यह अपना और वातावरण में सुमंगल करेगा। पेड़-पौधे, पशु-पक्षियों को भी भगवान में शांत हुए व्यक्ति के आंदोलन से मदद मिलती है यह सर्वसुमंगल है। वे महापुरुष हयात होते हैं तो उनकी दृष्टि से सर्वसुमंगल, उनके वचनों से सर्वसुमंगल होता है। वे जहाँ रहते हैं उस भूमि से भी सर्वसुमंगल होता है।

जो सर्वसुमंगल में रत हैं ऐसे महापुरुषों का सम्पर्क, सर्वसुमंगलमय परमात्मा में विश्रांति, सर्वसुमंगलमय परमात्मा का नाम और ‘सब वासुदेव है’ ऐसी ‘सर्वसुमंगलमय’ की ज्ञानदृष्टि.… इससे अमंगल भी गहराई में मंगल ले आता है। ऐसी सूझबूझ सर्वसुमंगलमय में टिके हुए महापुरूषों को प्राप्त हो जाती है। उनके लोक-मांगल्य के दैवी कार्य में बुद्ध, अबुद्ध, विबुद्ध – सर्व का साथ सहकार हो जाता है सब भागीदार हो जाते हैं। सब प्रभु के प्रेमी हो जाते हैं, प्रभु में विश्रांति पाते हैं। अभिमान नहीं टिकता है, आत्मज्ञान टिकता है। मैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं यह ‘स्व’ मान टिकता है, अभिमान नहीं। नम्रता आती है, सहजता आती है। द्रव्यबल, जनबल, बुद्धिबल, शरीरबल – यह सच्चा नहीं है लेकिन भगवत्प्रेमबल, सर्वसुमंगलमय परमात्मा-बल सच्चा है। उसके आगे विषैले प्राणी भी अपना क्रूर स्वभाव भूल जाते हैं। सर्प विषैले प्यार से वश में बाबा तेरे आगे… यह सर्वसुमंगल की पहचान है। ऐसे सर्वसुमंगल के प्रति प्रेम, सेवा, स्नेह, समर्पण सहज में ही हो जाता है।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *