लोभी धन का चिंतन करता है, मोही परिवार का, कामी कामिनी का, भक्त भगवान का चिंतन करता है किंतु ज्ञानवान महापुरुष ऐसे परम पद को पाये हुए होते हैं कि वे परमात्मा का भी चिंतन नहीं करते क्योंकि परमात्मस्वरूप के ज्ञान से वे परमात्ममय हो जाते हैं । उनके लिए परमात्मा निजस्वरूप से भिन्न नहीं होता । हाँ, वे यदि चिंतन करते हैं तो इस बात का कि सबका मंगल, सबका भला कैसे हो ।
वर्ष 2006 में सूरत में भीषण बाढ़ आयी थी, जिससे वहाँ कई गम्भीर बीमारियाँ फैल रही थीं । तब करुणासागर पूज्य बापू जी ने गूगल, देशी घी आदि हवनीय औषधियों के पैकेट बनवाये तथा अपने साधक-भक्तों को घर-घर जाकर धूप करने को कहा । साथ ही रोगाणुओं से रक्षा का मंत्र व भगवन्नाम-उच्चारण की विधि बतायी । विशाल साधक-समुदाय ने वैसा ही किया, जिससे सूरत में महामारियाँ व्यापक रूप नहीं ले पायीं ।
वहाँ कार्यरत प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी) के चिकित्सकों ने जब यह देखा तो कहा कि “शहर को महामारियों से बचाना असम्भव था लेकिन संत श्री आशाराम जी बापू ने यह छोटा-सा परंतु बहुत ही कारगर उपाय दिया, जिससे शहरवासियों की भयंकर महामारियों से सहज में ही सुरक्षा हो गयी ।”
पूज्य बापू जी अपने सत्संगों में वायुशुद्धि हेतु सुंदर युक्ति बताते हैं- “आप अपने घरों में देशी गाय के गोबर के कंडे पर अगर एक चम्मच मतलब 8-10 मि.ली. घी की बूँदें डालकर धूप करते हैं तो एक टन शक्तिशाली वायु बनती है । इससे मनुष्य तो क्या, कीट-पतंग और पशु-पक्षियों को भी फायदा होता है । ऐसा शक्तिशाली भोजन दुनिया की किसी चीज से नहीं बनता । वायु जितनी बलवान होगी, उतना बुद्धि, मन, स्वास्थ्य बलवान होंगे ।” (गौ-गोबर व विभिन्न जड़ी-बूटियों से बनी गौ-चंदन धूपबत्ती आश्रमों में व समितियों के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध है । उसे जलाकर उस पर देशी घाय के घी अथवा घानीवाले खाद्य तेल या नारियल तेल की बूँदें डाल के भी ऊर्जावान प्राणवायु बनायी जा सकती है ।)
पूज्य बापू जी की ऐसी अनेकानेक युक्तियों से लाभ उठाकर जनसमाज गम्भीर बीमारियों से बच के स्वास्थ्य-लाभ पा रहा है ।
अरबों रुपये लगा के भी जो समाजहित के कार्य नहीं किये जा सकते, वे कार्य ज्ञानवान संतों की प्रेरणा से सहज में ही हो जाते हैं । संतों-महापुरुषों की प्रत्येक चेष्टा लोक-मांगल्य के लिए होती है । धन्य है समाज के वे सुज्ञ-जन, जो ऐसे महापुरुष की लोकहितकारी सरल युक्तियों का, जीवनोद्धारक सत्संग का लाभ लेते व औरों को दिलाते हैं !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2021, पृष्ठ संख्या 15, अंक 342
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