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अजामिल का पतन (भाग-3)


अजामिल के अन्तर्यामी गुरुदेव ने उसे रोकने का प्रयत्न किया लेकिन बीच मे मन कूद पड़ा कि अरे मूर्ख हो गया है क्या? अपना चिट्ठा खोल देगा तो खुद ही गुरुदेव की नज़रो में छोटा हो जाएगा।सोच ले क्या सोचेंगे तेरे बारे में, तू इतना विद्वान होकर भी यूँ नीच हरकते करने की सोचता है। अजामिल को मन की सीख जंच गई। अब शाम हो चली थी समय था कि अजामिल आश्रम से निकल रहा था, थोड़ी ही देर में वह ऐसे मोड़ पर पहुंच गया जहां से एक रास्ता नगर के भीतर जाता था और एक मार्ग नगर के बाहर जिससे वह सदा से जा रहा था।

अजामिल का दिल जोरों से धक- धक करने लगा परन्तु इस धड़कन में उसके आत्मा की आवाज कहीं दब गई और वह नगर के भीतर जाती सड़क पर बढ़ चला। आज अजामिल कदमो के नीचे सड़क की धूल नही बल्कि गुरु आज्ञा के सुंदर पुष्पों को कुचलता हुआ चल रहा था। उसके ये बढ़ते कदम उसे ले गए उन गलियो में जिन्हें बदनाम गलियां कहा जाता है। शाम तेजी से गहराती जा रही थी चौड़े बाज़ार की चौड़ी गलियो की ऊंची-ऊंची हवेलियां बिजली की चकाचौंध से जगमगाने लगी थी। हर हवेली दुल्हन की तरह सजी थी।

अजामिल के लिए इस नई सी दुनिया के नए से लोगों की उनकी तरफ उठते नई सी नज़रो ने उन्हें नई सी अनुभूति दी।अजामिल ने चारों ओर देखा तो हर तरफ रूप सी सुंदरियों की जैसे फसल लहरा रही थी। मोम जैसे अग्नि की ताप लगते ही अपना रूप खोकर पिघलने लगता है वैसे ही अजामिल का इतने वर्षों का तप उस अजीब से ताप से पिघलना सा जाने लगा। भय, संकोच, नासमझी के मिले-जुले भावो को लिए दबे दबे कदमो से अजामिल आगे बढ़ते गया और इस बाज़ार से बाहर निकल आया फिर तेज़ कदमो से चलकर वह अपने घर पहुंच गया परन्तु आज घर तो केवल अजामिल का तन पहुंचा था मन से तो वह अब भी उन्ही ऊंची-ऊंची हवेलियों के सामने घूम रहा था। वह सीधा अपने बिस्तर की ओर बढ़ गया परन्तु नींद तो जैसे उसके आंखों के लिए आज बनी ही नही थी। रह-रहकर उसे हर वह सुंदर चेहरा याद आ रहा था जो उसने देखा था। नही… जो उसके दिल मे छप गया था कैसी हालत कर दी थी उस माया नगरी की एक सैर ने उसकी यूंही पूरी रात अजामिल ने खुली आँखों से स्वप्न देखने मे बिता दी। सुबह सूरज ने आलस्य का दामन छोड़ अपनी निद्रा का त्याग किया उसीके साथ हर प्राणी भी नवीन ऊर्जा से भर अपने-अपने कार्यो में सलंग्न हो गया लेकिन अजामिल ही था जो रात भर जगी थकी आंखों से थके से शरीर के साथ बिस्तर का त्याग कर रहा था।

अब आश्रम जाने का समय हो गया था अजामिल को भय सा लग रहा था मैंने तो गुरुदेव की आज्ञा की अवहेलना कर दी है अब किस मुँह से मै उनके सामने जाऊंगा। वे तो अन्तर्यामी है सब जानते है कुछ छुपा भी तो नही पाऊंगा उसकी आत्मा उसे असलियत का आईना दिखा रही थी लेकिन मन फिर गरज बरसकर अजामिल को समझाने लगा ओ हो अजामिल! तू भी न बस शेर अभी आया नही कि बचाओ-बचाओ का शोर तू पहले ही करने लग गया। अरे पगले! तू आश्रम तो जा जो होगा सो देखा जाएगा तूने भला कोई पाप थोडे न किया है इस उम्र में तो ऐसी गलियो में सभी टहला करते है तूने प्रकृति से अलग भला क्या किया? थोड़ा बहुत तो चलता ही है इसलिए छोड़ अपनी फालतू की बाते और अपने नित्य क्रम में लग जा।

अजामिल ने गुरुदेव से पहले स्वयं अपने आप को क्षमा कर लिया खैर स्नान कर अजामिल आश्रम की तरफ बढ़ा मन भले कितना ही हौसला दे रहा था लेकिन उसकी आत्मा बार बार घूर- घूरकर उसे उसकी भूल का एहसास करा रही थी मन और आत्मा की चक्की में पिसते हुए अजामिल ने आश्रम की दहलीज में कदम रखा ठीक सामने गुरुदेव आसन पर विराजमान थे उनकी दृष्टि पड़ते ही जहाँ अजामिल का रोम-रोम हर्षित हो जाय करता था आज उसकी रूह कांप गई उसकी नज़रे गुरुदेव का सामना नही कर पाई और जमीन पर जा गड़ी तभी गुरुदेव की प्रेम भरी वाणी उसके कानों में पड़ी- वत्स! अजामिल तुम आ गए आओ बैठो अपना आसन ग्रहण करो ताकि आगे के पाठ का आरम्भ करें।

अजामिल धीरे-धीरे आगे बढ़ा और नीची आंखे किये हुए ही आसन पर बैठ गया उसका दिल पूरे समय धक- धक करता रहा कि कहीं गुरुदेव कल के बारे में पूछ न ले पूरी कक्षा बीत गई गुरुदेव ने कोई प्रश्न नही किया वे तो रोजाना ही की तरह सामान्य थे यह देख अजामिल का मन फिर बलवान हो उठा देखा नाहक ही व्याकुल हो रहा था। सुबह से शाम हो चली है और गुरुदेव ने कुछ नही कहा मतलब की तू कुछ गलत कर ही नही रहा, समझा न पगला कहीं का। कक्षा समाप्त होने के बाद अजामिल ने गुरुदेव को प्रणाम किया और वापस घर जाने के लिए चलने लगा तो पीछे से गुरुदेव का कुछ स्वर उभरा- अजामिल! देखो तुम्हारी पादुका में कीचड़ लगा हुआ है लगता है कहीं कीचड़ में पैर रख गया होगा वत्स तनिक ध्यान से पथ का चयन किया करो। क्या रहस्य भरी गुरुदेव के इन वचनों को अजामिल समझ पायेगा या नही। इन शब्दों में गहरा अर्थ छुपा था गुरुदेव की अन्तर्यामीयता उनका स्नेह, उनका मार्गदर्शन, उनकी चेतावनी क्या कुछ नही थी गुरुदेव की इन थोड़ी सी पंक्तियों में परन्तु मूर्ख अजामिल समझ नही पाया। उसको लगा कि गुरुदेव कल के पूरे प्रकरण से अनभिज्ञ है वे तो बस पादुका के बारे में नसीहत दे रहे है उसका मैं ध्यान रखूंगा।यही भूल हम सब शिष्य कर बैठते है गुरुदेव प्रकृति के नियमो में बंधे होने के कारण साफ शब्दों में प्रकट नही करते कि उनकी दिव्य नज़रे हरपल अपने हर शिष्य का पीछा करते हैं वे प्रकृति के नियम को खंडित नही करना चाहते । परन्तु अन्तर्यामी गुरुदेव सब कुछ जानते है। वे जानते है हमारी हर त्रुटि को, हमारी हर खामी को लेकिन उसे प्रकट कर हमे शर्मिंदा करना उनका मकसद नही वे तो बस हमे सुधारना चाहते है इसके लिए वे हर सम्भव प्रयास करते है हर पल हमारा मार्गदर्शन करते है ढंके छुपे शब्दो मे हमे आगाह करते है परन्तु शायद हम इन संकेतों को समझ नही पाते।

यही भूल अजामिल से भी हुई वह गुरुदेव के शब्दों के मर्म को समझ नही पाया चलते-चलते अजामिल फिर उसी पड़ाव पर जा पहुंचा। जहां से एक रास्ता कल वाला था या यू कह लो कि काल वाला था और एक रास्ता बाहर से घर की तरफ जाता था। आज अजामिल ने बिना किसी कश्मकश से कल वाला रास्ता घर जाने के लिए चुन लिया आज तो उसने आत्मा की आवाज को उठने तक का समय नही दिया, कदमो में भी अगर- अगर की कोई लड़खड़ाहट न थी तेजी से बढ़ते कदम उसे जल्द ही बाज़ार के बीच ले आये फिर वही रंगीन जगत ऊंची-ऊंची सुंदर हवेलियां उन हवेलियों की खिड़कियों से झांकती संगमरमर सी तराशी कामनिया उनकी अदाएं और हाव-भाव चारो तरफ से अजामिल को अपनी ओर खींच रही थी तभी अचानक पिछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा और कहा- क्यों देव! यू ही बस दूर-दूर से देखते रहोगे या हमारे गरीब खाने में हमें सेवा का अवसर भी दोगे।

अजामिल ने पलटकर देखा तो वहीं पत्थर सा हो गया क्योंकि उसके सामने जैसे स्वर्ग की कोई अप्सरा खड़ी थी उसे देख अजामिल अजामिल न रहा उसके वर्षो का तप उस गणिका के सौंदर्य की तपिश से मोम की तरह पिघलने लगा कुछ क्षण वहां ठहरकर गणिका मुस्कुराकर आगे बढ़ गई लेकिन दूर जाती गणिका मानो अजामिल का सारा सुख चैन लूटकर अपने साथ ले गई।

घर जाकर अजामिल की स्थिति गुजरी रात से भी बद्दतर हो गई। पिछली रात वह बिस्तर पर लेट तो गया था लेकिन आज तो उसकी पूरी रात बिस्तर पर बैठे-बैठे ही गुजर गई। सुबह हुई तो उसकी लाल सुर्ख आंखों ने जैसे शोर मचा दिया कि अजामिल पूरी रात सोया नही। पिता ने कारण पूछा तो उसने बहाना बनाकर टाल दिया परन्तु अब आश्रम न जाने का क्या बहाना बनाये उसे यह नही सूझ रहा था। मदिरा सेवन करने के बाद जैसे दूध पीने की इच्छा नही रहती वैसे ही उस गणिकापूरी की सैर के बाद अजामिल का मन आश्रम जाने का नही हो रहा था।यह उसकी जिंदगी का पहला ऐसा मनहूस दिन था जब उसे आश्रम जाना कांटे जैसा प्रतीत हो रहा था लेकिन घर मे क्या कहता सो उसे जाना ही पड़ा किंतु आश्रम की तरफ बढ़ते हुए उसके कदमो में न कोई उत्साह था और न ही उमंग,भीतर एक मायूसी छाई थी शायद उसका कुछ खो गया था परंतु क्या? यही सोचते विचारते कब वह आश्रम पहुंच गया उसे पता ही न लगा। आसन पर गुरुदेव विराजमान थे गम्भीर और एकदम मौन। अजामिल को लगा शायद गुरुदेव अपने अन्तर्यामी स्वरूप से मेरे कृत्य के बारे में जान चुके है तभी नाराज लग रहे है मुझे जल्द ही गुरुदेव से क्षमा मांग लेनी चाहिए लेकिन मन ने फिर पासा फेंका अरे ऐसा करेगा तो सबके सामने बेइज्जत हो जाएगा फिर दुबारा आश्रम में कदम कैसे रखेगा। सभी गुरुभाई तुझे हीन दृष्टि से देखेंगे और यह भी तो हो सकता है कि गुरुदेव किसी और विषय को लेकर गम्भीर हों और तू जबर्दस्ती ही आ बैल मुझे मार वाली बात कर रहा है।पहले जरा पूछ तो ले गुरुदेव ऐसे मौन और गम्भीर क्यों है?….

आगे की कहानी कल की पोस्ट में दी जाएगी…….

अजामिल का पतन (भाग-2)….


कल हमने सुना कि गुरुदेव ने अजामिल को आज्ञा दी कि तुम्हे घर से आश्रम तक आने के लिए हमेशा बाहरी रास्ते का ही प्रयोग करना है नगर के भीतर का मार्ग का प्रयोग कभी मत करना। वर्ष बीत गए अजामिल बड़ा हो चला। एकदिन नगर के बाहर कुछ युवाओं ने अजामिल की मस्करी उड़ाई। अजामिल सोचता है क्यों न एकबार नगर के भीतर जाकर देख ही लूँ कि आखिर है क्या? तभी अजामिल के शुद्ध अंतःकरण ने उसे फटकार लगाई अजामिल यह फटकार सुनकर अंदर तक कांप गया उसे लगा कि जैसे वह अंधकूप में गिरते-गिरते बच गया वह तुरन्त ध्यान में बैठ गया ध्यान में ही कब नींद आई और कब सुबह हुई उसे पता ही न चला।

नित्य क्रिया से निर्वृत्त हो अजामिल आश्रम पहुंचा मन जो थोड़ा बहुत अब भी व्यथित था उसे सुकून मिला और गुरु आज्ञा में चलने का संकल्प उसने और दृढ़ किया शाम ढलने पर जब वह घर वापस जाने लगा तो उसने उस नगर के मार्ग की तरफ देखा तक नही इसीप्रकार दो तीन दिन बीत गए लेकिन तीसरे दिन अजामिल जब अपने रास्ते पर मुड़ने ही वाला था कि फिर वही नवयुवक उसे मिल गए इस बार तो उनमें से एक उसके पड़ोस जान पहचान वाला लड़का भी था।। उस पड़ोसी लड़के ने कहा- अरे अजामिल! घर जा रहा है क्या? अजामिल को पहचान की लिहाज रखते हुए रुकना पड़ा। उस पड़ोसी लड़के ने कहा- अरे यार दिन भर की सेवा से थक गया होगा चल तुझे दूसरी दुनिया की सैर करवा दें।

अजामिल ने कहा- दूसरी दुनिया? हां दूसरी दुनिया वहां केवल आनंद ही आनंद है मस्ती ही मस्ती है। ऐसा नहीं कि अजामिल को कुछ भी समझ नही आ रहा था उसे पता था कि कुछ न कुछ तो मायावी होगा ही। उसके मन मे तो यह दुविधा चल रही थी कि क्या ये मायावी लोग इतने प्रसन्न रहते हैं। इतने में ही उसके कंधे पर एक हाथ आया। देख अजामिल यही दिन है बहारों के, गन्ने के रस का आनंद दांत निकल जाने पर जैसे नही लिया जा सकता वैसे ही जो दिन कामनियो के संग रमन करने के हों उन्हें यूँ यज्ञ समिधाओं में खाक मत कर। इतना कहकर वे नवयुवक चलते बने। लेकिन अजामिल वहीं जड़ हो गया सोचने लगा अकारण ही वहां आकर्षण नही हो सकता, नगर के भीतर कुछ अलग तो जरूर है इसी तरह अजामिल फिर खोया- खोया सा घर पहुंचा। उस अनजान सड़क के अनजान लोगों के प्रति यह अनजान सा आकर्षण वह स्वयं भी समझ नही पा रहा था। रात फिर बीत गई और अजामिल फिर आश्रम समय से पहुंचकर सेवा रत हो गया। लेकिन केवल तन से मन से नही, मन तो द्वंद में था।

शाम को घर वापसी पर वे नवयुवक फिर से तो नही मिले लेकिन वह नगर की भीतरी सड़क अजामिल के आगे मानो पुकार करने लगी मानो अजामिल को नगर में प्रवेश करने का वह सड़क निमंत्रण दे रही हो। अजामिल का मन उसकी आत्मा पर हावी होने लगा बोला अरे एक बार देखने से कौन सा पहाड़ टूट रहा है मैने कौन सा वहीं पर अपना बसेरा करना है। आखिर देखूँ तो सही कि गुरुदेव मना क्यों करते हैं। फिर तो जीवन भर इस मार्ग की तरफ मुँह उठाकर देखूंगा भी नही। बेचारा अजामिल नही समझ पा रहा था कि गुरु आज्ञा की अवहेलना का यह पहला कदम ही तो होता है जो नही उठा तो नही उठा लेकिन एकबार उठ गया तो उसे एक से अनेक में दोहराने में समय नही लगता। हर शराबी पहली घूंट यही सोचकर पीता है कि मैंने कौन सी रोज पीनी है लेकिन समय के साथ वह एक पहली घूंट उसकी पूरी जिंदगी को सागर की तरह डुबो देती है परंतु अजामिल आज उस पहली घूंट को पीना चाहता था।

एक साधक के भटकते मन को इससे सुंदर उदाहरण विरला ही देखने को मिलता है। अजामिल के मन मे उठते इस झंझावात को थामने का ऐसा नही कि प्रयास नही हुआ उसकी आत्मा ने उसे फिर समझाया अजामिल पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में गिरने के लिए एक फिसलन ही काफी होती है, अंधा करने के लिए एक कण ही काफी है। गुरुआज्ञा पलको के वे पर्दे है जिनमे रहकर इन कणों से बचा जा सकता है।

अजामिल आत्मा की सब सीख सुन रहा था इसलिए एकबार फिर वह बाहरी रास्ते से ही घर पहुंच गया। कश्मकश में उलझा हुआ सो गया सुबह उठा तो मन मे यह विचार भी तरोताज़ा होकर उसके साथ ही उठा क्यों न आज आश्रम से वापस आते समय एक फेरी लगा ही ली जाय मैं अकारण ही डर रहा हूँ। अरे मैं कौन सा दूध पीता बालक हूँ जो कोई भी मुझे बहला फुसला लेगा। सो अजामिल आज पूरी तैयारी करके घर से निकला कि शाम को तो पक्का नगर के भीतरी रास्ते मे जाऊंगा। लेकिन जब आश्रम आया गुरुदेव के पावन चरणों मे प्रणाम किया तो उनसे निकलती पावन तरंगों ने एक बार फिर उसे चेताया नही अजामिल गुरु की आज्ञा की अवहेलना हरगिज़ उचित नही। अगर यह विकार तुझ पर हावी हो रहा है तो तुरन्त गुरुदेव के सामने बैठकर उसे कबूल कर ले गुरुदेव स्वयं ही कुछ करके तुझे सम्भाल लेंगे।

एकबार उनके सामने अपने मन की दुविधा रख तो सही। निःसन्देह यह अन्तर्यामी गुरुदेव की मौन भाषा मे अन्तरहृदय से उसके शुद्ध अंतःकरण से सीख मिली। लेकिन अजामिल का मन सब बिगड़ता देख तत्काल बीच मे कूद पड़ा अरे मूर्ख हो गया है क्या? अपना चिट्ठा खोल देगा तो खुद ही गुरुदेव के नज़रो में छोटा हो जाएगा गिर जाएगा सोच वे क्या सोचेंगे तेरे बारे में कि तू इतना बड़ा विद्वान होकर भी यूँ नीच हरकते करने की सोचता है मेरी मान बस चुप रह आज शाम तक की ही तो बात है एकबार देख ही लेते है कि क्या है नगर के भीतर? वरना गुरुदेव को बताने पर हो सकता है कि वे कोई ऐसा कड़ा प्रतिबंध लगा दे कि लेने के देने पड़ जाएं कुछ किया भी नही और खामखाह कलंक माथे ले बैठेंगे।

अजामिल ठिठक गया उसे अपने मन की सीख जंच गई और गुरुदेव के समाने होते हुए भी उसने उनसे कोई बात नही की हालांकि आज गुरुदेव ने जान बूझकर उसे दिन भर ऐसे कई मौक़े दिए जब वह और गुरुदेव अकेले थे अब शाम हो चली समय था कि अजामिल आश्रम से निकल रहा था।

आगे की कहानी जानने के लिए कल की पोस्ट अवश्य पढ़ें…..

अजामिल का पतन (भाग-1)….


सद्गुरु पैगम्बर और देवदूत है विश्व के मित्र और जगत के लिए कल्याणमय है। पीड़ित मानवजाति के ध्रुवतारक है,सच्चे गुरु शिष्य का प्रारब्ध बदल सकते है।

अजामिल ब्राह्मण कुल में जन्म लेने और राजपण्डित का पुत्र होने का सौभाग्य उसके माथे पर था। साथ ही उसकी स्वयं की मेधा शक्ति ऐसी थी कि सब देखते ही रह जाते थे। बाल्यावस्था में भी उसकी चंचलता शायद कहीं अज्ञात डगर पर खो सी गई थी। किसी महान ऋषि सी गम्भीरता उसमे सहज ही दिखती थी। 5 वर्ष की आयु में जब अजामिल के पिता उसे गुरुकुल में लेकर गए तो वह अन्य सामान्य बालको की तरह न तो रोया और न ही अपनी शिक्षा-दीक्षा हेतु अरुचि दिखाई। गुरुदेव को भी प्रथम दृष्टि में ही अजामिल ऐसा दीपक दिखा जो सही दिशा पाकर सूर्य बन सकता था। एक ऐसी नन्ही कली जो सुंदर फूल का रूप लेने को लालायित थी।

गुरुदेव ने उसे विकसित करने का प्रण ले तुरंत अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।उसी दिन से सनातन दीक्षा के साथ-साथ अजामिल की वैदिक शिक्षा प्रारम्भ हो गई। यूँ ही 12 वर्ष व्यतीत हो गए अजामिल ने इन 12 वर्षों में अन्य बालको की तुलना में 12 गुना अधिक शिक्षा व ज्ञान को अर्जित किया।

एक दिन गुरुदेव ने अजामिल को अपने पास बुलाकर कहा- अजामिल आजतक तुम्हे घर से आश्रम और आश्रम से वापस घर तक ले जाने तुम्हारे घर का चाकर आता था। लेकिन तुम्हारे पिता के कथनानुसार अब तुम अकेले ही आने जाने योग्य हो गए हो इसलिए अब मैं इस सम्बंध में जो आज्ञा देने वाला हूँ उसे तुम दिमाग मे ऐसे बिठा लेना जैसे एक सिक्के को एक बालक अपनी मुट्ठी में भींच कर रख लेता है और उसके गुम हो जाने के भय से उसकी तरफ हमेशा सजग रहता है। मेरे इस आज्ञा को केवल आज्ञा ही नही बल्कि सख्त निर्देश भी मानना।

अजामिल हाथ जोड़कर कहता है- गुरुदेव! ऐसी क्या आज्ञा है जिसे आप इतना महत्व दे रहे हैं। गुरुदेव ने आदेशात्मक स्वर में कहा- तुम्हे घर से आश्रम तक आने के लिए हमेशा बाहरी रास्ते का ही प्रयोग करना है नगर के भीतर के मार्ग का प्रयोग कभी मत करना यही मेरी आज्ञा है। अजामिल को यह आज्ञा बहुत ही साधारण व सहज लगी उसने प्रण कर लिया कि वह कभी भूल के भी इस आज्ञा का अवहेलना नही करेगा। इसी आज्ञा में गूथकर अजामिल का जीवन आगे बढ़ने लगा।

समय का पहिया दौड़ता रहा अब अजामिल 20 वर्ष का हो चला था। सुंदर नयन नक्ष, गठीला शरीर और भीम सी चौड़ी छाती वाला एक पक्के ब्रम्हचर्य और नेम धर्म की पालना करते-करते उसके चेहरे पर एक दिव्य तेज़ भी था, पीताम्बर धारण कर माथे पर त्रिपुंड सजा जब वह घर से निकलता था तो उसे देखने वाला हर व्यक्ति एकबार तो सोच में पड़ ही जाता कैसा दिव्य तेज़ व सुंदरता है इस बाँके जवान की। केवल बाहरी रूप ही नही बल्कि उसके ज्ञान की भी चर्चा दूर- दूर तक होने लगी थी।

आज भी जब घर जाने के लिए अजामिल गुरु आश्रम से निकला तो हमेशा ही की तरह उसने नगर के बाहर के रास्ते वाली ही डगर पकड़ी। परन्तु नगर के भीतर मार्ग से बाहर आते हुए कुछ युवा लड़को ने अजामिल पर व्यगात्मक टिप्पणी कसी.. अरे वो देखो तपस्वी श्रेष्ठ महामुनि बेचारे कपास के फीके फूलो को ही सबकुछ मान बैठा है।ओ भिक्षुकराज! तनिक नगर के भीतर भी तो जाकर देखो, देखो कैसे मन लुभावने गुलाब, गेंदा, गुलमोहर पुष्प है। वहां उन्हें सूंघते ही स्वर्ग का आनंद मुट्ठियों में आकर खेलेगा। क्यो आदरणीय श्रेष्ठ मुनिश्रेष्ठ चले फिर नगर के भीतर.. ऐसा कहते हुए युवा हंसने लगे।

इस तरह अजामिल का उपहास करके वे नवयुवक आगे बढ़ गए उनके शब्दो को सुनकर अजामिल को लगा कि शायद कोई सांसारिक ज्ञान ऐसा है जिससे वह अभी तक अछूता है, उसके मन मे सवाल उठने लगा ऐसा क्या है नगर के भीतरी मार्ग पर जो मैं बाहरी मार्ग पर अनुभव नही कर पाया और इन युवकों को नगर में ऐसा क्या मिल गया जो वे इतने तरंगित व ऊर्जावान थे। इन प्रश्नों में उलझा-उलझा सा अजामिल अपने घर पहुंच गया। लेकिन खाना खाते, उठते-बैठते उसके मन मे यही विचार आ रहे थे आखिर है क्या नगर के भीतर तभी उसे गुरु आज्ञा के वचन भी याद आये कि गुरुदेव ने कैसे उसे भीतरी रास्ते पर जाने से उसे सख्त मना किया था यह स्मरण होते ही उसकी जिज्ञासा कुतूहल में बदल गयी आखिर ऐसा है क्या नगर के भीतर रास्ते पर कि गुरुदेव ने भी मुझे वहां जाने के लिए यूँ कड़ा मना किया है। कुछ न कुछ हट के तो अवश्य है उसके मन मे यह संकल्प-विकल्प उठ ही रहे थे कि उसे जोर से किसी ने डांटा, डांटने की आवाज सुनाई दी अजामिल डर गया शायद कोई कमरे में था जिसने डांटा उसने चारो दिशाओं में घूमकर देखा लेकिन नही कमरे में तो कोई न था फिर यह आवाज…. यह आवाज कहीं बाहर से नही बल्कि अजामिल के भीतर से उसकी आत्मा की थी जो उसको फटकार रही थी।

मूर्ख! मति मारी गई है क्या तेरी वहां कुछ हटके है या नहीं यह प्रश्न तो तेरे जहन में उठने की कल्पना भी नही होनी चाहिए।याद है न तुझे उस मार्ग पर जाने से गुरुदेव ने तुझे सख्त मना किया है उनका आदेश है। फिर बता जिस रास्ते जाना ही नही तो उसके विषय मे चिंतन किस बात की। तुझे पता है न कि गुरु से विमुख होकर छुए गए फूल भी कांटे है याद रखना अजामिल अगर बाहरी रास्ते पर जहर रखा है और भीतरी रास्ते पर भले ही अमृत का कलश लेकिन तब भी तू जहर का ही चयन करना क्योंकि गुरुदेव ने तेरे लिए वही चुना है।

गुरुदेव का चयन ही अगर तेरा चयन होगा तो निःसन्देह ही वह जहर तेरे लिए अमृत का कार्य करेगा और गुरू विमुख होकर पिया गया अमृत भी तेरे लिए विष है इसलिए खबरदार अगर उस मार्ग पर जाने की सोची भी तो। अजामिल यह फटकार सुनकर अंदर तक कांप गया उसे लगा कि जैसे वह अंधकूप में गिरते-गिरते बच गया। वह तुरन्त ध्यान में बैठ गया ध्यान में कब नींद आ गई उसे पता न चला।

कल हम जानेगें कि क्या सच में अजामिल की अंतरआत्मा गुरु की आज्ञा मानेगा या नहीं……।