(भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज का प्राकट्य दिवसः 16 मार्च 2020)
उल्हासनगर
(महाराष्ट्र) की श्रीमती ईश्वरी नाथानी साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज के मधुर
संस्मरण बताते हुए कहती हैं- मेरे सद्गुरु श्री लीलाशाहजी महाराज सादगी की मूरत,
ज्ञान के सागर, भक्ति के भंडार, सच्चे निष्काम कर्मयोगी, संत शिरोमणि थे । मेरी
छोटी जुबान व कमजोर कलम में इतनी शक्ति कहाँ है कि उनकी महिमा का वर्णन कर सके !
स्वामी
जी के चेहरे पर आकर्षक तेज था, जिससे लाखो भक्त उनके चरणों में झुक जाते थे । वे
पहुँचे हुए संत-महापुरुष थे । गीता के 16वें अध्याय में जो दैवी सम्पदा के लक्षण
वर्णित हैं वे सभी उनमें मौजूद थे । उनकी कथनी और करनी एक थी । वे जो भी कहते थे,
अपने अनुभवों व लोगों की करने की क्षमता के अनुरूप कहते थे, तभी तो उनके
सत्संग-वचन श्रोताओं के हृदय में समा जाते थे ।
एक
सत्संग में बाबा जी (साँईं लीलाशाह जी) ने जो बात कही थी, वह सभी लोगों को अवश्य
ध्यान रखनी चाहिए । बाबा जी ने कहा था कि “सिनेमा सत्यानाश का घर
है । आजकल भाइयों-बहनों को बदचलन करने का प्रमुख कारण सिनेमा ही है । फिर भी हम
उँगली पकड़कर बच्चों को ले जा के सिनेमा दिखाते हैं । अगर हमारा यही हाल रहा तो
हमें उन बच्चों के बड़े-बुजुर्ग कहलवाने का क्या अधिकार है ? हम स्वयं उन्हें बुरी
आदतों की और घसीट रहे हैं ।
बच्चे
को कहते हैं, ‘बेटे ! दूसरों के सिर पर
कुल्हाड़ी चलाना अच्छी बात नहीं है’ परंतु स्वयं बेहद शौक
से मांस खाते हैं और कहते हैं कि ‘वाह ! क्या सब्जी बनी है !’
संतों
के लिए सारी सृष्टि के जीव-जंतु उनके बच्चों के समान होते हैं । उनके बेगुनाह
मासूमों को खायेंगे तो उन्हें कैसे अच्छे लगेंगे !”
दुबारा
बीमारी नहीं होगी
ब्रह्मज्ञानी
महापुरुषों द्वारा जो संकल्प हो जाता है या कभी वे सहज भाव में ही कुछ कह देते हैं
तो वह प्रकृति में अवश्य ही घटित होकर रहता है । सन् 1948 की बात है । मेरी माँ को
कोई बड़ी बीमारी हो गयी थी । डॉक्टरों ने कहा कि ‘ठीक नहीं होंगी और अगर
ठीक हो भी गयीं तो वर्षभर बाद वापस वही बीमारी हो जायेगी और फिर वे बच नहीं पायेंगी ।
मेरे
पिता जी ने पत्र के द्वारा स्वामी जी को पूरी जानकारी दी । स्वामी जी का पत्र आया,
जिसमें उन्होंने लिखा कि “वे बीमारी से बच जायेंगी
और फिर बीमारी नहीं होगी परंतु वे नमक का उपयोग कम करें ।”
और
हुआ भी ऐसा ही । मेरी माँ ठीक हो गयीं और उन्हें फिर वह बीमारी नहीं हुई ।
तुम्हें
टी.बी. नहीं है….
1995
की बात है । मेरे पिता जी खूब बीमार हो गये थे । अजमेर के विक्टोरिया अस्पताल में
एक्स रे आदि करवाये तो उनमें टी.बी. की बीमारी का पता चला । उसका इलाज शुरु कर
दिया और स्वामी जी को सूचित किया गया ।
स्वामी
जी का पत्र आया कि ‘तुम्हें टी.बी. नहीं है ।’
तभी
पिता जी का डॉक्टर मित्र, जो कि बाहर से आया हुआ था, उसने पिता जी को अच्छी तरह
जाँच करके कहा कि “टी.बी. नहीं है ।” उसने विक्टोरिया
अस्पताल के डॉक्टरों से बातचीत की । बाद में पता चला कि एक्स रे मशीन में कुछ
खराबी थी, इससे ऐसा नज़र आया था ।
जो
बात जानने के लिए विज्ञान को बड़ी-बड़ी जाँचें करनी पड़ती हैं और कई बार तो वे
जाँचें कुछ विपरीत ही दिखा देती हैं पर योग सामर्थ्य के धनी ब्रह्मवेत्ता महापुरुष
बिना प्रयास के ही क्षणभर में किसी भी देश, काल, परिस्थिति की बात को यथावत जान
लेते हैं क्योंकि वे एक ही शरीर में नहीं बल्कि अनंत-अनंत ब्रह्मांडों में व्याप्त
ब्रह्मस्वरूप होते हैं ।
उनसे
कुछ छुपा नहीं रह सकता
1965
की बात है मेरे पिता जी ने स्वामी जी के लिए घर में भोजन बनवाया । स्वामी जी ने
उन्हें पहले कह दिया था कि भोजन में नमक बिल्कुल मत डलवाना । पिता जी भोजन लेकर
पहुँचे तो स्वामी जी ने कहाः “मैं यह भोजन नहीं
लूँगा क्योंकि इसमें नमक है ।”
पिता
जीः “मैंने घर पर नमक डालने के लिए मना किया था, इसमें नमक
नहीं है ।”
“पहले घर जाकर पूछो ।”
पिता
जी वापस घर आये और पूछा तो उन्हें बताया गया कि ‘अपने कुल की मान्यता
के अनुसार बिना नमक का भोजन बनाना अपशकुन माना जाता है इसलिए नाममात्र नमक डाला
गया है ।’
जीवनमुक्त
महापुरुष साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज अपने आत्मानुभव की मस्ती को छोड़कर लोगों
को परमात्म-अमृत का पान कराने के लिए अथक प्रयास करते, लोगों की घर-गृहस्थी,
रोजगार-धंधे, स्वास्थ्य आदि की समस्याएँ भी सुलझाते तथा समाज के लिए और भी बहुत
कुछ करते थे । ऐसे सत्पुरुष के बारे में क्या कहा जाय ! बस, उनके अमृतवचनों
पर अमल करके आत्मज्ञान की ज्योति जगा लें – ऐसी उन्हीं के श्री चरणों में
प्रार्थना है !
स्रोतः
ऋषि प्रसाद, फरवरी 2020, पृष्ठ संख्या 25 अंक 326
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