ब्रह्मनिष्ठा स्वयं ही श्रेष्ठतम, अतुलनीय अद्वितीय ऊँचाई है । ब्रह्मनिष्ठा
के साथ यदि योग-सामर्थ्य भी हो तो दुग्ध-शर्करा योग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है
। ऐसा ही सुयोग देखने को मिलता है ब्रह्मवेत्ता पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू के
जीवन में । एक ओर जहाँ आपकी ब्रह्मनिष्ठा साधकों को सान्निध्यमात्र से परम आनंद,
दिव्य शांति में सराबोर कर देती है, वहीं दूसरी ओर आपकी करुणा-कृपा से मृत गाय को
जीवनदान मिलना, अकालग्रस्त स्थानों में वर्षा होना, वर्षों से निःसंतान रहे दम्पतियों
को संतान होना, रोगियों के असाध्य रोग सहज में दूर होना, निर्धनों को धन प्राप्त
होना, अविद्वानों को विद्वत्ता प्राप्त होना, घोर नास्तिकों के जीवन में भी
आस्तिकता का संचार होना – इस प्रकार की अनेक चमत्कारिक घटनाएँ आपके योग-सामर्थ्य
सम्पन्न होने का प्रमाण हैं ।
ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु पूजनीय संत श्री आशाराम जी बापू साधक-भक्तों को सत्संग,
ध्यान तथा कुंडलिनी शक्तिपात योग व नादानुसंधान योग आदि के प्रयोगों द्वारा हँसते,
खेलते, खाते पहनते सहज में ही मुक्तिमार्ग
की यात्रा करा रहे हैं । ‘श्री गुरु
ग्रंथ साहिब’ में आता हैः
नानक सतिगुरि भेटिऐ पूरी होवै जुगति ।।
हसंदिआ खेलंदिआ पैनंदिआ खावंदिआ विचे होवै मुकति ।।
जिज्ञासु अपनी जिज्ञासापूर्ति के लिए सत्शास्त्र तो पढ़ते
हैं लेकिन उनके गूढ़ रहस्य को न समझ पाने के कारण उनसे जीवन्मुक्ति का विलक्षण
आनंद नहीं प्राप्त कर पाते । यह तो तभी सम्भव है जब वेदांत के महावाक्य ‘अहं
ब्रह्मास्मि’ की अंतर में अनुभूति किये हुए ‘सुदुर्लभ’ सत्पुरुष
मिल जायें ।
पूज्य श्री से जो सौभाग्यशाली भक्त मंत्रदीक्षा लेते हैं व
ध्यान योग शिविरों में आते हैं उन्हें आपकी अहैतुकी करुणा-कृपा से कुंडलिनी जागृति
के दिव्य अनुभव होते हैं, जिससे चिंता-तनाव, हताशा-निराशा आदि पलायन कर जाते हैं
और जीवन की उलझी गुत्थियाँ सुलझने लगती हैं । उनका काम राम में बदलने लगता है,
ध्यान स्वाभाविक लगने लगता है और मन अंतरात्मा में आराम पाने लगता है । सामूहिक
कुंडलिनी शक्तिपात के द्वारा बड़े-बड़े योगियों को बारह-बारह साल की कठोर साधनाएँ,
तपस्याएँ करने के बाद भी अनुभूतियाँ नहीं होती है, सच्चा सुख, भगवदीय शांति नहीं
मिलती, वह हजारों सामान्य लोगों को शक्तिपात शिविर के 3-4 दिनों में महसूस होने
लगती है । परम पूज्य बापू जी लाखों संसारमार्गी जीवों को कलियुग के कलुषित वातावरण
से प्रभावित होने पर भी दिव्य शक्तिपात-वर्षा से सहज ध्यान में डुबाते हैं ।
शक्तिपात का इतना व्यापक प्रयोग इतिहास में कहीं भी देखा-सुना नहीं गया है ।
कृपासिंधु बापू जी का सत्संग-श्रवण करने मात्र से साधना में उन्नत होने की कुंजियाँ
मिल जाती हैं और शास्त्रों के रहस्य हृदय में प्रकट होने लगते हैं ।
पूज्य श्री कहते हैं- ″अपने देवत्व में जागो । एक
ही शरीर, मन, अंतःकरण को कब तक अपना मानते रहोगे ? अनंत-अनंत अंतःकरण,
अनंत-अनंत शरीर जिस सच्चिदानंद में भासमान हो रहे हैं, वह शिवस्वरूप तुम हो ।
फूलों में सुगन्ध तुम्हीं हो । वृक्षों में रस तुम्ही हो । पक्षियों में गीत
तुम्हीं हो । सूर्य और चाँद में चमक तुम्हारी है । अपने ‘सर्वोऽहम्’ स्वरूप को पहचान कर खुली आँख समाधिस्थ हो जाओ । देर न करो, काल कराल सिर पर है ।″
वर्तमान में पूज्य बापू जी के सान्निध्य के अभाव से विश्व
के आध्यात्मिक विकास में जो बाधा उत्पन्न हुई है उसकी क्षतिपूर्ति कोई नहीं कर
सकता ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2022, पृष्ठ संख्या 4 अंक 355
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