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षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश लिखनेवाले गद्दारों का पर्दाफाश-7


➡ खराब भोजन देना,,

कठिन सेवा देना,,

गाली गलौच करना,,

धमकाना,,

इस प्रकार से मानसिक प्रताड़ना दिया जाता है ।।

➡कईयों पर चोेरी का, हेराफेरी का, गलत इल्जाम लगाकर बदनाम किया जाता है ।।

एैसे में आश्रम के अंदर रह रहे साधकों में भय और डर का माहौल बन गया है ।।

जो समर्पित साधक होते है उनको हर प्रकार के कष्टों को फ़रियाद किये बिना सहना यह तितिक्षा का गुण है. अगर किसी साधक के साथ संचालकों के द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता हो तो वे साधक गुरुदेव को इस बात की सुचना दे सकते है. भय और डर के कारण पलायनवादी होना यह साधक का लक्षण नहीं है. मिलारेपा ने अनेक शारीरिक कष्ट और मानसिक यातनाओं को सहन करते हुए भी गुरुसेवा की तो उनको लक्ष्य की प्राप्ति हो गई. कच को असुरों ने दो बार मार डाला फिर भी उन्होंने कभी यह फ़रियाद नहीं की कि यहाँ भय और डर का माहौल बन गया है. और उनको तीसरी बार भी असुरोंने मार डाला तब न चाहते हुए भी शुक्राचार्य को उन्हें संजीवनी विद्या सिखानी पड़ी. ऐसे ही गुरु हर गोविन्द और गुरु गोविन्दसिंह के अनेक शिष्य मौत की भी परवाह किये बिना गुरुसेवा में लगे रहे और उनका परम कल्याण हो गया.

षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश लिखनेवाले गद्दारों का पर्दाफाश-6


तभी इनके ऊपर हमें संदेह हुआ और हम इनके सभी हरकतों पर नजर रखने लगे ।।

‘,, अच्छे समर्पित साधक अाश्रम छोड़कर घर लौट रहें है ।।

उनका कहना है ::- गुरु परिवार के एकनिष्ठ साधकों का मुंह बंद करवाने के

लिये,, सुरेशानंद जी के बारे में पूछने पर,, मैयाजी के पक्ष में बोलने

पर,, बंद कमरे में ले जा कर फिल्मी स्टाइल में ट्रीटमेंट किया जाता है ।।

एकनिष्ठ साधक की निष्ठा एक इष्ट में होनी चाहिए. अगर उनकी निष्ठा अपने गुरु में है तो वे गुरु परिवार में निष्ठा नहीं रख सकते. जो गुरुके आश्रम में रहते है उनकी एकनिष्ठा गुरु में होनी चाहिए, गुरु परिवार में नहीं.  जिनकी निष्ठा गुरु परिवार में है उनका मुंह बंद करने कोई नहीं जाता. सुरेशानंद या दुसरे जो भी पलायनवादी आश्रम छोड़कर भाग गए है उनके बारे में आश्रमवालों को पूछना मूर्खता है. जो गुरु के आश्रम के विरुद्ध कार्य करनेवालों का समर्थन करते हो उनके पक्ष में बोलना गुरुके एकनिष्ठ साधक को शोभा नहीं देता. ऐसे लोग अगर उपदेश से न सुधरे तो उनको दुसरे ढंग से भी सुधारना पड़ता है. 

षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश लिखनेवाले गद्दारों का पर्दाफाश-5


आप लोग सोचिये !!

बापूजी के सानिध्य में रहकर शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने वाले सच्चे

गुरुभक्त अपने गुरुमाता और गुरुपुत्री के साथ इस प्रकार द्वेष भावना रख

सकता है क्या ??

नहीं न !!

अगर सच्चे गुरु भक्त अपने गुरु के आश्रम के विरुद्ध प्रवृत्ति करनेवालों का दर्शन करने से रोकते है तो यह सच्चे गुरु भक्त का कर्तव्य निभाते है. यह द्वेष भावना नहीं है. गुरु से बढ़कर ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी नहीं हो सकते तो और कौन हो सकता है?