Gurubhaktiyog

पूज्य बापूजी व वन में रहने वाले साधु का एक रोचक प्रसंग….


साधक अगर श्रद्धा एवं भक्तिभाव से अपने गुरु की सेवा नही करेगा तो उसके तमाम व्रत,तप आदिक कच्चे घड़े में से पानी की तरह टपक कर बह जाएंगे। मन एवं इंद्रियों का संयम गुरु भगवान का ध्यान, गुरु की सेवा में धैर्य, सहनशक्ति, आचार्य के प्रति भक्तिभाव, संतोष, दया, स्वच्छता, सत्यवादिता, सरलता, गुरु की आज्ञा …

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पकवान के नहीं प्रेम के भूखे होते हैं भगवान


गुरूभक्तियोग के मूल सिद्धान्त गुरू में अखण्ड श्रद्धा गुरूभक्तियोग रूपी वृक्ष का मूल है। उत्तरोत्तर वर्धमान भक्तिभावना, नम्रता, आज्ञा-पालन आदि इस वृक्ष की शाखाएँ हैं। सेवा फूल है। गुरू को आत्मसमर्पण करना अमर फल है। अगर आपको गुरू के जीवनदायक चरणों में दृढ़ श्रद्धा एवं भक्तिभाव हो तो आपको गुरूभक्तियोग के अभ्यास में सफलता अवश्य …

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पूज्य बापूजी के नैनीताल का यह प्रसंग आपको भाव विभोर कर देगा….


जैसे कुंदन स्वर्ण को और उज्जवल बनाने के लिए सुनार भट्ठी में डालता है ऐसे ही सद्गुरु शिष्य को अधिक गुरु बनाने के लिए, अधिक उसको तेजस्वी बनाने के लिए उससे कभी-कभी कठोर व्यवहार करते है। जिसका मन कुछ सह नही सकता उसका मन गुरु से कुछ प्राप्त भी नही कर सकता इसलिए सहनशक्ति बढाने …

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