मधुर चिंतन
(आत्ममाधुर्य से ओतप्रोत बापू जी की अमृतवाणी) वशीभूत अंतःकरण वाला पुरुष राग-द्वेष से रहित और अपनी वशीभूत इन्द्रियों के द्वारा विषयों मे विचरण करता हुआ भी प्रसन्नता को प्राप्त होता है। वह उनमें लेपायमान नहीं होता, उसका पतन नहीं होता। जिसका चित्त और इन्द्रियाँ वश में नहीं हैं, वह चुप होकर बैठे तो भी संसार …