214 ऋषि प्रसादः अक्तूबर 2010

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

मधुर चिंतन


(आत्ममाधुर्य से ओतप्रोत बापू जी की अमृतवाणी) वशीभूत अंतःकरण वाला पुरुष राग-द्वेष से रहित और अपनी वशीभूत इन्द्रियों के द्वारा विषयों मे विचरण करता हुआ भी प्रसन्नता को प्राप्त होता है। वह उनमें लेपायमान नहीं होता, उसका पतन नहीं होता। जिसका चित्त और इन्द्रियाँ वश में नहीं हैं, वह चुप होकर बैठे तो भी संसार …

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लापरवाही नहीं तत्परता !


(पूज्य बापू जी की सत्संग सुधा) साधक के जीवन में, मनुष्यमात्र के जीवन में अपने लक्ष्य की स्मृति और तत्परता होनी ही चाहिए। संयम और तत्परता सफलता की कुंजी है, लापरवाही और संयम का अनादर विनाश का कारण है। जिस काम को करें, उसे ईश्वर का कार्य मानकर साधना का अंग बना लें। उस काम …

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क्यों देर करते हो ?


(पूज्य बापू जी की अमृतवाणी) हमारे देव केवल एक मंदिर में नहीं रह सकते, हालाँकि वे केवल एक मंदिर में ही थे ऐसी बात नहीं थी। हमारी बुद्धि छोटी थी तो हमने उनको मंदिर में मान रखा था। अब तो वे अनंत ब्रह्माण्डों में हैं, ऐसी हमारी मति हो रही है। हमारे देव अभी बड़े …

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