225 ऋषि प्रसादः सितम्बर 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

साक्षात्कार करना तो है लेकिन…


श्रीमद् आद्य शंकराचार्य जी कहते हैं- दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम्। मनुष्यतं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः।। ‘भगवत्कृपा ही जिनकी प्राप्ति का कारण है वे मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व (मुक्त होने की इच्छा) और महान पुरुषों का संश्रय (सान्निध्य) – ये तीनों दुर्लभ हैं।’ (विवेक चूड़ामणिः3) एक व्यक्ति ने किसी आध्यात्मिक ग्रंथ में पढ़ा कि मनुष्य जीवन ईश्वर-साक्षात्कार करने के लिए ही होता …

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अमूल्य औषधि


भगवन्नाम की महिमा का वर्णन करते हुए संत विनोबाजी भावे कहते हैं- “मेरी तो यह धारणा है कि सभी रोगों और कष्टों की अचूक दवा ईश्वर में श्रद्धा रखकर भक्तिभाव से उपासना में तल्लीन रहना ही है। यदि आसपास भगवद्भक्ति का वातावरण रहे, भगवान के भक्तों द्वारा भजन होता रहे, तब कुछ पूछना ही नहीं …

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