इष्ठनिष्ठा, दृढ़ता व आत्मविश्रांति से सफलता
हनुमानजी श्रीरामजी की आज्ञा से दूत बनकर सीताजी के पास लंका जा रहे थे। रास्ते में देवताओं, गंधर्वों आदि ने उनके बल, पराक्रम व सेवानिष्ठा की परीक्षा के लिए नागमाता सुरसा को प्रेरित किया। तब सुरसा ने विकराल राक्षसी का रूप बनाया और समुद्र लाँघ रहे हनुमान जी को घेरकर अट्टहास करने लगीः “हाઽઽઽ….. हाઽઽઽ…. …