299 ऋषि प्रसादः नवम्बर 2017

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

आत्मज्ञान का पूर्ण अधिकारी कौन ? – संत एकनाथ जी


भगवान श्रीकृष्ण उद्धवजी के कहते हैं- “हे उद्धव ! इस जगत में केवल दो ही अवस्थाएँ हैं। पहली विरक्ति और दूसरी विषयासक्ति। तीसरी कोई अवस्था ही नहीं। जहाँ विवेक से विषयों की आसक्ति क्षीण होती है वहाँ परिपूर्ण वैराग्य बढ़ता है और जहाँ विवेक क्षीण होने से वैराग्य भी क्षीण होने से वैराग्य भी क्षीण …

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अवर्णनीय है संत समागम का फल – पूज्य बापू जी


जब-जब व्यक्ति ईश्वर एवं सदगुरु की ओर खिंचता है, आकर्षित होता है, तब-तब मानो कोई न कोई सत्कर्म उसका साथ देता है और जब-जब वह दुष्कर्मों की ओर धकेला जाता है, तब-तब मानो उसके इस जन्म अथवा पूर्व जन्म के दूषित संस्कार अपना प्रभाव छोड़ते हैं। अब देखना यह है कि वह किसकी ओर जाता …

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अब मुझे इस दक्षिणा की जरूरत है ! – पूज्य बापू जी


दूरद्रष्टा पूज्य बापू जी द्वारा 13 वर्ष पहले ‘संस्कृति रक्षार्थ’ बताया गया सरल प्रयोग, जो साथ में देता है निरोगता स्वास्थ्य, प्रसन्नता, आत्मबल एव उज्जवल मंगलमय जीवन भी…. संत सताये तीनों जायें, तेज बल और वंश। ऐसे ऐसे कई गये, रावण कौरव और कंस।। भारत के सभी हितैषियों को एकजुट होना पड़ेगा। भले आपसी कोई …

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