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Avataran Divas

जब भी होती धर्म की हानि, तब अवतार लेते ब्रह्मज्ञानी


जब-जब भगवान इस धरती पर अवतार लेते हैं तो पहले प्रायः उसकी भविष्यवाणी हो जाती है। एक त्रिकालज्ञानी संत ने पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू के अवतरण एवं जीवनकार्यों के बारे में इंगित करती हुई भविष्यवाणी की थी।

सैंकड़ों वर्ष पहले जूनागढ़ (गुज.) के पास एक गाँव में एक शिव उपासक निःसंतान ब्राह्मण दम्पत्ति रहते थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव ने ब्राह्मण को सपने में दर्शन दिये और बोलेः “भक्तराज ! मैं तुम्हारी मनोव्यथा को जानता हूँ। तुम्हारे भाग्य में संतान सुख नहीं है परन्तु मेरे आशीर्वाद से मेरा अंश तुम्हारे घर पुत्ररूप में पलेगा। कब सुबह मंदिर के फूलों में तुम्हें एक बालक मिलेगा। उसे ही अपनी संतान मानकर पालन-पोषण करना, वह बड़ा होकर त्रिकालज्ञानी बनेगा।

सुबह पति-पत्नी दोनों बड़ी प्रसन्नता से मंदिर में पूजा कर ही रहे थे कि इतने में किसी बालक के रोने की आवाज आयी। पास जाकर देखा तो फूलों के ढेर में एक नवजात शिशु लेटा है। ब्राह्मणी ने उस तेजस्वी बालक को तुरन्त गले से लगा लिया। सीने से लगाते ही माँ का वात्सल्य दूध बनकर फूट पड़ा। ब्राह्मण दम्पत्ति बच्चे को घर ले आये।

नामकरण की बात चली तो गाँव के मुखिया ने कहाः “यह तो देव का दिया हुआ है इसलिए इसका नाम ‘देवो’ ही रखो।” बालक संस्कृत के श्लोकों को सहज ही याद कर लेता था। उसकी  वाणी रहस्यमयी थी, कभी-कभी सुनने वालों को उसका रहस्य समझ में नहीं आता था। वही बालक बड़ा होकर ‘देवायत पंडित’ के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ। देवायत पंडित ने भजनों के माध्यम से कई सचोट भविष्यवाणियाँ की हैं। कई शताब्दियों पहले उन्होंने पहली भविष्यवाणी की थी, जिसके कुछ अंशों का भावार्थ इस प्रकार हैः

‘हमारे गुरु शोभा जी महाराज ने आगम (भविष्य) के बारे में बताया है। सदगुरु की वाणी झूठी नहीं होती। जैसा लिखा है, जैसा कहा है, वैसे दिन आयेंगे। पाप का दौर और धरती पापी जनों का भोग माँगेगी। उनमें कुछ परस्पर लड़ाई झगड़े करेंगे और उनका खड़ग से (आधुनिक शस्त्रों से) संहार होगा, कुछ लोग विविध प्रकार के रोगों से पीड़ित होकर मरेंगे।

पहले तेज हवाएँ चलेंगी, तूफान उठेंगे, अकाल से मनुष्य पीड़ित होंगे, नदियों का पानी सूख जायेगा। (इसमें प्राकृतिक आपदाओं का संकेत है और परमाणु बम विस्फोट के बाद भी ऐसा वातावरण बनता है इसलिए तीसरे विश्व युद्ध का भी संकेत है।)

हे देवलदे ! देवायत पंडित की धर्मपत्नी का नाम) ऐसे विकट समय में नर-नारी धर्म के आदेशों का पालन नहीं करेंगे। ‘धर्म ग्रंथ झूठे हैं और उनके आदेश झूठे हैं’ – ऐसा मानने लगेंगे।

हे संतो ! उत्तर दिशा से साहब (भगवान) आयेंगे (यह बात गुजरात में कही गयी है और सिंध प्रांत गुजरात के उत्तर में है।) साबरमती के तट पर यति (पूज्य बापू जी) और सती (पूजनीया माता जी) आसन जमायेंगे। वहाँ अच्छाई और बुराई के बीच संग्राम होगा (पूज्य बापू जी एवं उनके शिष्यों द्वारा देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए विरोधी शक्तियों के साथ पिछले कई दशकों से सतत संघर्ष किया जा रहा है)। वे सदा के लिए बुराई को मारकर निष्कलंक नाम धारण करेंगे। हे देवलदे ! ऐसा समय आयेगा कि सौ-सौ गाँव की सीमा में रहने वाले, शहर और गाँव के लोग एकमत हो जायेंगे (अहमदाबाद आश्रम में जो ‘ध्यानयोग शिविर’ लगते थे, उनमें देश के अनेक गाँवों और शहरों के लोग सम्मिलित होकर एक आत्मोन्नति के लिए सम्मत होते थे इस बात का संकेत है) और कांकरिया तालाब पर बड़े तम्बू तानकर रहेंगे। (उस समय अहमदाबाद का नाम ‘कर्णावती’ था पर वह नाम बाद में बदल जायेगा, यह बात जानकर देवायत  पंडित जी ने कर्णावती नगर के बदले ‘कांकरिया तालाब’ का नाम दिया है।) उस समय की वे घड़ियाँ बड़ी रमणीय होंगी। सूर्य अपनी 16 कलाओं से सम्पन्न तथा धरती खुशहाल होगी। कलियुग होगा फिर भी सत्य के आग्रही सच्चे संतों के तपोबल से सत्ययुग जैसा समय आयेगा। ऐसे भविष्य के लक्षण गुरुजी ने मुझे सुनाये हैं।’

सभी जानते हैं कि सनातन धर्म संस्कृति की रक्षा करने के लिए बापू जी 50 सालों से लगे हुए हैं। आज पाश्चात्य जगत की पाश्विक शक्तियाँ भारत की संस्कृति, संस्कार व परम्पराओं को नष्ट करने लगी हैं। पूज्य बापू अनेक प्रकार के झूठे आरोप सहकर भी संस्कृति की रक्षा में अपने करोड़ों साधकों को साथ लेकर लगे हुए हैं। वे तो कहते हैं कि ‘विश्वगुरु हो भारत प्यारा, ऐसा है संकल्प हमारा।’ अब निश्चित ही सुंदर सुहावना समय आयेगा। युग-परिवर्तन होकर सत्ययुग जैसा समय आयेगा। देवायत पंडित की भविष्यवाणी आज भी पत्थर पर शिलालेख के रूप में गुजराती भाषा में अंकित है।

सामुद्रिक शास्त्र के एक प्रसिद्ध विद्वान ने पूज्य बापू जी के श्रीचरणों और कर कमलों का अवलोकन करके पंचेड़ आश्रम (म.प्र.) में कहा था कि  “पूज्य बापू जी पहले 16 बार अवतार ले चुके हैं और अब 17वीं बार आये हैं।”

अगर किसी को त्रिकालज्ञानी महापुरुषों और भविष्यवेत्ताओं में श्रद्धा न हो तो उसे एक विश्वप्रसिद्ध आभा (ओरा) विशेषज्ञ डॉ. हीरा तापड़िया के तथ्यों पर तो विश्वास करना ही पड़ेगा क्योंकि यह एक वैज्ञानिक अध्ययन है जिसे नास्तिक लोगों को भी मानना पड़ता है। पूज्य श्री की आभा का अध्ययन करके उन्होंने कहाः “मैंने अब तक लगभग सात लाख से भी ज्यादा लोगों के आभा-चित्र लिये हैं, जिनमें एक हजार विशिष्ट व्यक्ति शामिल हैं, जैसे – बड़े संत, साध्वियाँ,  प्रमुख व्यक्ति आदि। आज तक जितने भी लोगों की आभायें मैंने ली हैं, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं उन्नत आभा संत श्री आशाराम जी बापू की पायी।

बापू की आभा में बैंगनी रंग है, जो यह दर्शाता है कि बापू जी आध्यात्मिकता के शिरोमणि हैं। यह सिद्ध ऋषि-मुनियों में ही पाया जाता है। बैंगनी रंग का मतलब है कि उनके आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र प्रबुद्ध हो गये हैं, खुल गये हैं, चार्ज हो गये हैं, वे (ऊर्ध्व लोकों से) शक्ति ले रहे हैं और (इस लोक में) शक्ति दे रहे हैं।

बापू की आभा में जो खास चीज है वह शक्ति देने की क्षमता। दूसरे लोग अन्य लोगों की शक्ति ग्रहण कर सकते हैं लेकिन बापू जी की आभा में यह प्रमुखता मैंने पायी कि वे सम्पर्क में आये व्यक्ति की ऋणात्मक ऊर्जा को ध्वस्त कर धनात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं।

बापू की आभा देखकर मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ क्योंकि लगातार पिछले कम-से-कम दस जन्मों से बापू जी समाज सेवा का यह पुनीत कार्य करते आ रहे हैं, लोगों पर शक्तिपात करके आध्यात्मिकता में लगाना, स्वस्थ करना, समाज की बुराइयों में दूर करना, ज्ञानामृत बाँटना, आनंद बरसाना आदि। मुझे पिछले दस जन्मों तक का ही पता चल पाया, उसके पहले का पढ़ने की क्षमता मशीन में नहीं थी।” (डॉ. हीरा तापड़िया के विडियो की लिंकः https://goo.gl/OoeHP5 )

संकलकः श्री इन्द्र सिंह राजपूत

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2016, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 281

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ईश्वर प्राप्ति की योजना बनाने का अवसर है वर्षगाँठ


(पूज्य बापू जी का 79वाँ अवतरण दिवसः 28 अप्रैल 2016)

पिछला वर्ष बीत गया, नया आने को है, उसके बीच खड़े रहने का नाम है वर्षगाँठ। इस दिन हिसाब कर लेना चाहिए कि ‘गत वर्ष में हमने कितना जप किया ? उससे ज्यादा कर सकते थे कि नहीं ? हमसे क्या-क्या गलतियाँ हो गयीं ? हमने कर्ताभाव में आकर क्या-क्या किया और अकर्ताभाव में आकर क्या होने दिया ?’ वर्षभर में जिन गलतियों से हम अपने ईश्वरीय स्वभाव से,  आत्मस्वभाव से अथवा साधक स्वभाव से नीचे आये, जिन गलतियों के कारण हम ईश्वर की या अपनी नजर में गिर गये वे गलतियाँ जिन कारणों से हुईं उनका विचार करके अब न करने का संकल्प करना – यह वर्षगाँठ है।

दूसरी बात, आने वाले वर्ष के लिए योजना बना लेना। योजना बनानी है कि ‘हम सम रहेंगे। सम रहने के लिए, आत्मनिष्ठा, ज्ञाननिष्ठा, भक्तिनिष्ठा, प्रेमनिष्ठा, सेवानिष्ठा को जीवन में महत्व देंगे।’ जिस वस्तु में महत्त्वबुद्धि होती है, उसमें पहुँचने का मन होता है। ईश्वर में, आत्मज्ञान में, गुरु में महत्त्वबुद्धि होने से हम उधर पहुँचते हैं। धन में महत्त्वबुद्धि होने से लोग छल-कपट करके भी धन कमाने लग जाते हैं। पद में महत्त्वबुद्धि होने से न जाने कितने-कितने दाँव-पेच करके भी पद पर पहुँच जाते हैं। अगर आत्मज्ञान में महत्त्वबुद्धि आ जाय तो बेड़ा पार हो जाये। तो वर्षगाँठ के दिन नये वर्ष की योजना बनानी चाहिए कि ‘हमें जितना प्रयत्न करना चाहिए उतना करेंगे, जितना होगा उतना नहीं। रेलगाड़ी या गाड़ी में बैठते हैं तो जितना किराया हम दे सकते हैं उतना देने से टिकट नहीं  मिलता बल्कि जितना किराया देना चाहिए उतना ही देना पड़ता है, ऐसे ही जितना यत्न करना चाहिए उतना यत्न करके आने वाले वर्ष में हम परमात्मनिष्ठा, परमात्मज्ञान, परमात्ममस्ती, परमात्मप्रेम, परमात्मरस में, परमात्म-स्थिति में रहेंगे।’

अंदर का रस प्रकट करो

शरीर के जन्मदिन को भी वर्षगाँठ बोलते हैं और गुरुदीक्षा जिस दिन मिली उस दिन से भी उम्र गिनी जाती है अथवा भगवान के जन्म दिन या गुरु के जन्म दिन से भी सेवाकार्य करने का संकल्प लेकर साधक लोग वर्षगाँठ मनाते हैं। गुरु व भगवान को मेवा-मिठाई, फूल-फलादि भेंट करते है लेकिन गुरु और भगवान तो इन चीजों की अपेक्षा जिन कार्यों से तुम्हारी उन्नति होती है उनसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं।

तो वर्षगाँठ के दिन हम लोग यह संकल्प कर लें कि बापू जी की वर्षगाँठ से लेकर गुरुपूनम तक हम इतने दिन मौन रखेंगे, 15 दिन में एक दिन उपवास रखेंगे।’ 15 दिन में एकाध उपवास से शरीर की शुद्धि होती है और ध्यान भजन में उन्नति होती है। ध्यान के द्वारा अदभुत शक्ति प्राप्त होती है। एकाग्रता से जो सत्संग सुनते हैं, उनमें मननशक्ति का प्राकट्य होता है, उनको निदिध्यासन शक्ति का लाभ मिलता है। उनकी भावनाएँ एवं ज्ञान विकसित होते हैं। उनके संकल्प में दृढ़ता, सत्यता व चित्त में प्रसन्नता आती है और उनकी बुद्धि में सत्संग के वचनों का अर्थ प्रकट होने लगता है। अपनी शक्तियाँ विकसित करने के लिए एकाग्रचित्त होकर सत्संग सुनना, मनन करना भी साधना है। हरिनाम लेकर नृत्य करना भी साधना है। हो सके तो रोज 5-15 मिनट कमरा बंद करके नाचो। जैसा भी नाचना आये नाचो। ‘हरि हरि बोल’ करके नाचो,  ‘राम राम करके नाचो, तबीयत ठीक होगी, अंदर का रस प्रकट होगा।

सुबह उठो तो मन-ही-मन भगवान या गुरु से या तो दोनों से हाथ मिलाओ। भावना करो कि ‘हम ठाकुर जी से हाथ मिला रहे हैं’ और हाथ ऐसा जोरों का दबाया है कि ‘आहाहा !….’ थोड़ी देर ‘हा हा…..’ करके उछलो-कूदो। तुम्हारे छुपे हुए ज्ञान को, प्रेम को, रस को प्रकटाओ।

आपकी दृष्टि कैसी है ?

साधक दृष्टिः यह है कि ‘जो बीत गया उसमें जो गलतियाँ हो गयीं, ऐसी गलतियाँ आने वाले वर्ष में न करेंगे’ और जो हो गयीं उनके लिए थोड़ा पश्चात्ताप व प्रायश्चित्त करके उनको भूल जायें और जो अच्छा हो गया उसको याद न करें।

भक्त दृष्टि है कि ‘जो अच्छा हो गया, भगवान की कृपा से हुआ और जो बुरा हुआ, मेरी गलती है। हे भगवान ! अब मैं गलतियों से बचूँ ऐसी कृपा करना।’

सिद्ध की दृष्टि है कि ‘जो कुछ हो गया वह प्रकृति में, माया में हो गया, मुझ नित्य शुद्ध-बुद्ध-निरंजन नारायणस्वरूप में कभी कुछ होता नहीं।’ असङ्गोह्यं पुरुषः…. नित्योऽहम्… शुद्धोऽहम्…. बुद्धोऽहम्…. करके अपने स्वभाव में रहते हैं सिद्ध पुरुष। कर्ता, भोक्ता भाव से बिल्कुल ऊपर उठे रहते हैं।

अगर आप सिद्ध पुरुष हैं, ब्रह्मज्ञानी हैं तो आप ऐसा सोचिये जैसा श्रीकृष्ण सोचते थे, जैसा जीवन्मुक्त सोचते हैं। अगर साधक हैं तो साधक के ढंग का सोचिये। कर्मी हैं तो कर्मी के ढंग का सोचिये कि ‘सालभर में इतने-इतने अच्छे कर्म किये। इनसे ज्यादा अच्छे कर्म कर सकता था कि नहीं ?’ जो बुरे कर्म हुए उनके लिए पश्चात्ताप कर लो और जो अच्छे हुए वे भगवान के चरणों में सौंप दो। इससे तुम्हारा अंतःकरण शुद्ध, सुखद होने लगेगा।

अवतरण दिवस का संदेश

वर्षगाँठ के दिन वर्षभर में जो आपने भले कार्य किये वे भूल जाओ, उनका ब्याज या बदला न चाहो, उन पर पोता फेर दो। जो बुरे कार्य किये, उनके लिए क्षमा माँग लो, आप ताजे-तवाने हो जाओगे। किसी ने बुराई की है तो उस पर पोता फेर दो। तुमने किसी से बुरा किया है तो वर्षगाँठ के दिन उस बुराई के आघात को प्रभावहीन करने के लिए जिससे बुरा किया है उसको जरा आश्वासन, स्नेह दे के, यथायोग्य करके उससे माफी करवा लो, छूटछाट करवा लो तो अंतःकरण निर्मल हो जायेगा, ज्ञान प्रकट होने लगेगा, प्रेम छलकने लगेगा, भाव रस निखरने लगेगा और भक्ति का संगीत तुम्हारी जिह्वा के द्वारा छिड़ जायेगा।

कोई भी कार्य करो तो उत्साह से करो, श्रद्धापूर्वक करो, अडिग धैर्य व तत्परता से करो, सफलता मिलेगी, मिलेगी और मिलेगी ! और आप अपने को अकेला, दुःखी, परिस्थितियों का गुलाम मत मानो। विघ्नबाधाएँ तुम्हारी छुपी हुई शक्तियाँ जगाने के लिए आती हैं। विरोध तुम्हारा विश्वास जगाने के लिए आता है।

जो बेचारे कमजोर हैं, हार गये हैं, थक गये हैं  बीमारी से या इससे कि ‘कोई नहीं हमारा….’, वे लोग वर्षगाँठ के दिन सुबह उठ के जोर से बोलें कि ‘मैं अकेला नहीं हूँ, मैं कमजोर या बीमार नहीं हूँ। हरि ॐ ॐ ॐ …..’ इससे भी शक्ति बढ़ेगी।

आप जैसा सोचते हैं वैसे बन जाते हैं। अपने भाग्य के आप विधाता हैं। तो अपने जन्मदिन पर यह संकल्प करना चाहिए कि मुझे मनुष्य जन्म मिला है, मैं हर परिस्थिति में सम रहूँगा, मैं सुख-दुःख को खिलवाड़ समझकर अपने जीवनदाता की तरफ यात्रा करता जाऊँगा-यह पक्की बात है ! हमारे अंदर आत्मा-परमात्मा का असीम बल व योग्यता छिपी है।’

ऐसा करके आगे बढ़ो। सफल हो जाओ तो अभिमान के ऊपर पोता फेर दो और विफल हो जाओ तो विषाद के ऊपर पोता फेर दो। तुम अपना हृदयपटल कोरा रखो और उस पर भगवान के, गुरु के धन्यवाद के हस्ताक्षर हो जाने दो।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2016, पृष्ठ संख्या 12, 13, 15 अंक 280

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प्राणिमात्र के कल्याण का हेतु होता है संत अवतरण – पूज्य बापू जी


पूज्य बापू जी का 75वाँ अवतरण दिवसः 10 अप्रैल
संतों को नित्य अवतार माना गया है। कभी-न-कभी, कहीं-न-कहीं संत होंगे और उनके हृदय में भगवान अवतरित होकर समाज में सही ज्ञान व सही आनंद का प्रकाश फैलाते हैं। उनके नाम पर, धर्म के नाम पर कहीं कितना भी, कुछ भी चलता रहता है फिर भी संत-अवतरण के कारण समाज में भगवत्सत्ता, भगवत्प्रीति, भगवद्ज्ञान, भगवद्-अर्पण बुद्धि के कर्मों का सिलसिला भगवान चलवाते रहते हैं।
तो आपके कर्म भी दिव्य हो जायेंगेः
साधारण आदमी अपने स्वार्थ से काम करता है, भगवान और महात्मा परहित के लिए काम करते हैं। महात्माओं का जन्मदिवस मनाने वाले साधक भी परहित के लिए काम कर रहे हैं तो साधकों के भी कर्म दिव्य हो गये।
इस दिवस पर जो भी सेवाकार्य करते हैं, वे करने का राग मिटाते हैं, भोगने का लालच मिटाते हैं और भगवान व गुरु के नाते परहित करते हैं। उन साधकों को जो आनंद आता होगा, जो कीर्तन में मस्ती आती होगी या गरीबों को भोजन कराने में जो संतोष का अनुभव होता होगा, विद्यार्थियों को नोटबुक बाँटने में तथा भिन्न-भिन्न सेवाकार्यों में जो आनंद आता होगा, वह सब दिव्य होगा। इस दिन के निमित्त प्रतिवर्ष गरीबों में लाखों टोपियाँ बँटती हैं, लाखों बच्चों को भोजन मिलता है और लाखों-लाखों कापियाँ बँटती हैं। औषधालयों में, अस्पतालों में, और जगहों पर – जिसको जहाँ भी सेवा मिलती है, वे सेवा ढूँढ लेते हैं। अपने स्वार्थ के लिए कर्म करते हैं तो उससे कर्मबंधन हो जाता है और परहित के लिए कर्म करते हैं तो कर्म दिव्य हो जाता है।
आपको जगाने के लिए क्या-क्या कर्म करते हैं
आप जिसका जन्मदिवस मना रहे हैं, वास्तव में वह मैं हूँ नहीं, था नहीं। फिर भी आप जन्म दिवस मना रहे हैं तो मैं इन्कार भी नहीं करता हूँ। आपने मुकुट पहना दिया तो पहन लिया, फूलों की चादर ओढ़ा दी तो ओढ़ ली। इस बहाने भी आपका जन्म-कर्म दिव्य हो जाये। वे महापुरुष हमें जगाने की न जाने क्या-क्या कलाएँ, क्या-क्या लीलाएँ करते रहते हैं ! नहीं तो ये टॉफी बाँटना, रंग छिड़कना, प्रसाद लेना-बाँटना – ये हमारी दुनिया के आगे बहुत-बहुत छोटी बात है। लेकिन करें तो करें क्या ? आध्यात्मिकता में जिनकी बचकानी समझ है, एक दो की नहीं लगभग सभी की है, उन्हें उठाना-जगाना है। यह अपने-आप में बहुत भारी तपस्या है। एकाग्रता के तप से भी ऊँचा तप है। वे महापुरुष नित्य नवीन रस अद्वैत ब्रह्म में हैं लेकिन नित्य द्वैत के व्यवहार में उतरते हुए हमको ऊपर उठाते हैं।
यह जो कुछ आँखों से दिखता है, जीभ से चखने में आता है, नाक से सूँघने में आता है, मन और बुद्धि से सोचने में आता है – ये सब वास्तव में हैं ही नहीं। जैसे स्वप्न में सब चीजें सच्ची लगती हैं, आँख खोली तो वास्तविकता में नहीं हैं, ऐसे ही ये सब सचमुच में, वास्तविकता में नहीं है।
आप भी इसका मजा लो
वास्तव में प्रकृति और चैतन्य परमात्मा है, बाकी कुछ भी ठोस नहीं है। सिर्फ लगता है यह ठोस है। 10 मिनट हररोज भावना करो कि ‘यह सब स्वप्न है, परिवर्तनशील है। इन सबके पीछे एक सूत्रधार चैतन्य है और अष्टधा प्रकृति है।’ यह याद रखो और स्वप्न का मजा लो तो उसकी गंदगी अथवा विशेषता से आप बंधायमान नहीं होंगे।
भगवान व गुरु भक्त का पक्ष लेते हैं
भगवान और गुरु के साथ एकतानता हो जाय तो भगवान और गुरु का अनुभव एक ही होता है। ब्रह्म-परमात्मा तटस्थ हैं, गुरु और भगवान पक्षपाती हैं। ब्रह्म-परमात्मा प्रकाश देते हैं, चेतना देते हैं, कोई कुछ भी करे …. लेकिन भगवान और गुरु भक्त का पक्ष लेते हैं। भक्त अच्छा करेगा तो प्रोत्साहित करेंगे, बुरा करेगा तो डाँटेंगे, बुराई से बचने में मदद करेंगे, भक्त की रक्षा करेंगे। ‘चतुर्भुजी नारायण भगवान नन्हें हो जाओ’ तो माता की प्रार्थना पर ‘उवाँ…..उवाँ……’ करते हुए रामजी बन गये, श्रीकृष्ण बन गये। भक्त के पश्र में वराह अवतार, मत्स्य अवतार, अंतर्यामी अवतार, प्रेरक अवतार ले लेते हैं।
जन्मदिवस मनाने का उद्देश्य क्या ?
यह जन्म दिवस मनाने के पीछे भी एक ऊँचा उद्देश्य है। ‘मैं कौन हूँ ?….. ‘ – ‘मैं फलाना हूँ….’ पर यह तो शरीर है, इसको जानने वाला मन है, निर्णय करने वाली बुद्धि है। ये सब तो बदलते हैं फिर भी जो नहीं बदलता है, वह मैं कौन हूँ ?’ – ऐसा खोजते-खोजते गुरु के संकेत से सदाचारी जीवन जिये तो ‘मैं कौन हूँ ?’ इसको जान लेना और जन्म दिव्य हो जायेगा। जन्म दिव्य होते ही कर्म दिव्य हो जायेंगे क्योंकि सुख पाने की लालसा नहीं है, दुःख से बचने का भय नहीं है और ‘जो है, बना रहे’ ऐसी उसकी नासमझी नहीं है।
मरने वाले शरीर का जन्मदिवस तो मनाओ पर उसी निमित्त मनाओ, जिससे सत्कर्म हो जायें, सदबुद्धि का विकास हो जाये। इस उत्सव में नाच कूद के बाहर की आपाधापी मिटाकर सदभाव जगा के फिर शांत हो जायें। श्रीमद् आद्यशंकराचार्यजी ने कहा हैः
मनोबुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहं….
‘मैं शरीर भी नहीं हूँ, मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त भी नहीं हूँ। तो फिर क्या हूँ?’ बस, डूब, जाओ, तड़पो….. प्रकट हो जायेगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 267
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