Tag Archives: Brahmcharya

Brahmcharya

भगवत्प्राप्ति के 14 विघ्न व 6 महत्त्वपूर्ण बातें – पूज्य बापू जी


भगवत्प्राप्ति में 14 प्रकार के विघ्न आते हैं-

स्वास्थ्य के प्रति लापरवाहीः यह बड़े-में-बड़ा विघ्न है। यदि मनुष्य अस्वस्थ है तो ध्यान भजन नहीं कर पाता। अतः यह जरूरी है कि शरीर स्वस्थ रहे लेकिन शरीर के स्वास्थ्य की चिंता व चिंतन न रहे यदि किसी कारण से स्वास्थ्य लाभ नहीं रहता तब भी अपने को भगवान में व भगवान को अपने में मानकर देह की ममता और सत्यता हिम्मत से हटाओ।

खानपान में अनियमितताः देर से खाना खाने से भी अस्वस्थता घेर लेगी और ध्यान भजन में अरुचि हो जायेगी।

साधन आदि में संदेहः यह संदेह कि ‘हम साधन करते हैं, ठीक है कि नहीं ? भगवान मिलेंगे कि नहीं ?’ अरे, अंतर्यामी भगवान जानते हैं कि आप भगवान के लिए साधन करते हैं, फिर क्यों संदेह करना ?

उलटा नाम जपत जगु जाना।

बालमीकि भय ब्रह्म समाना।। (श्री राम चरित. अयो. कां. 193.4)

सदगुरु का संग या सत्संग न मिलनाः जिसने सत्संग और सेवा का लाभ नहीं लिया, सदगुरु का महत्त्व नहीं समझा, वह सचमुच अभागा है। आत्मवेत्ताओं का सत्संग तो मनुष्य के उद्धार का सेतु है। सत्संग माने सत्यस्वरूप परमात्मा में विश्रांति। जिसके जीवन में सत्संग नहीं होगा वह कुसंग तो जरूर करेगा और एक बार कुसंग मिल गया तो समझ लो तबाही-ही-तबाही ! लेकिन अगर सत्संग मिल गया तो आपकी 21-21 पीढ़ियाँ निहाल हो जायेंगी। हजारों यज्ञों, तपों, दानों से भी आधी घड़ी का सत्संग श्रेष्ठ माना गया है, सदगुरु का सान्निध्य सर्वोपरि माना गया है क्योंकि सदगुरु का सत्संग-सान्निध्य जीव को जीवत्व से शिवत्व में आरूढ़ करता है। इतना ही नहीं, सत्संग से आपके जीवन को सही दिशा मिलती है, मन में शांति और बुद्धि में बुद्धिदाता का ज्ञान छलकता है।

नियमनिष्ठा न होनाः इससे भी साधना में बरकत नहीं आती। जिसके जीवन में कोई दृढ़ नियम नहीं है उसका मन उसे धोखा दे देता है। नियमनिष्ठा आदमी को बहुत ऊँचा उठाती है।

प्रसिद्धि की चाहः थोड़ी बहुत साधना करते हैं तो पुण्याई से प्रसिद्धि आदि होने लगती है। यदि व्यक्ति असावधान रहता है तो प्रसिद्धि के लिए कुछ-का-कुछ करने लग जाता है, फिर साधन नियम छूट जाता है।

कुतर्कः कुतर्क मतलब ‘भगवान हैं कि नहीं ? यह मंत्र सच्चा है कि नहीं ?’ अथवा विधर्मियों या ईश्वर से दूर ले जाने वाले व्यक्तियों के प्रभाव में आकर फिसल जाना।

प्राणायाम व जप का नियम छोड़नाः जो 10 प्राणायाम और 10 माला का छोटा सा नियम दीक्षा के समय बताते हैं, उसको छोड़ देना भी भगवत्प्राप्ति में बड़ा विघ्न है।

बाहरी सुख में ही संतुष्ट होनाः अल्प (सीमित) में ही संतोष हो जाये…. ‘चलो, घर है, नौकरी है… बस खुश हैं।’ नहीं-नहीं, बाहर के थोड़े से सुखों में आप संतुष्ट न हों, आपको तो परमात्मा का परम सुख पाना है। थोड़े से ज्ञान में आप रुको नहीं, आपको परमात्मा का ज्ञान पाना है।

भगवान को छोड़कर संसार की तुच्छ चीजों की कामना करनाः सांसारिक तुच्छ कामनाएँ न बढ़ायें। भगवान का भजन भी निष्काम भाव से करें। ‘यह मिल जाय….. वह मिल जाय…..’ ऐसा सोचकर भजन न करें बल्कि भगवान की प्रीति के लिए भगवान का भजन करें।

ब्रह्मचर्य का अभावः कामविकार में अपनी शक्ति का नाश हो जाता है तो फिर ध्यान भजन में बरकत नहीं आती है। तो ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ पुस्तक का अभ्यास करना और संयम रखना।

कुसंगः कुसंग में आने से भी अपना साधन-भक्ति का रस बिखर जाता है। जैसे तैसे व्यक्तियों के हाथों का बना खाने, जैसे-तैसे व्यक्तियों के सम्पर्क में आने और उनसे हाथ मिलाने से भी अपनी भक्ति क्षीण हो जाती है। उससे बचना चाहिए।

दोष दर्शनः दूसरों में दोष-दर्शन करने से वे दोष अपने में पुष्ट हो जाते हैं। हमारे मन में थोड़े दोष होते हैं तभी दूसरों में दोष दिखते हैं। इसलिए आप किसी के दोष देखकर अपने मन को दोषों का घर न बनाइये, उसकी गहराई में छुपे हुए अंतर्यामी परमात्मा को देख के अपने दिल में भगवद्भाव जगाइये।

साम्प्रदायिकताः ‘मैं फलाने धर्म का हूँ, फलाने मजहब का हूँ, ऐसा हूँ….।’ नहीं-नहीं, हम जो भी हैं, सब उस एक परमेश्वर के हैं।

इन 14 विघ्नों से बचने वाला व्यक्ति जल्दी से परमात्मा को पा लेता है।

भगवत्प्राप्ति की ले जाने वालीं 6 महत्त्वपूर्ण बातें

  1. जो साधना करें उससे ऊबे नहीं।

जन्म कोटि लगि रगर हमारी।

            बरऊँ संभु न त रहउँ कुआरी।। (श्रीरामचरित. बा. कां. 80.3)

‘पायेंगे तो परमात्मा का आनंद पायेंगे, परमात्मा का सुख, परमात्मा की सत्ता पायेंगे, बाहर की नश्वर सत्ता, नश्वर सुख पाकर रुक नहीं जायेंगे !’ ऐसा दृढ़ विचार करने वाला जल्दी ईश्वर-सुख को पाता है।

  1. अपना नियम और साधना निरंतर करना।
  2. सत्कारपूर्वक (आदरपूर्वक) और श्रद्धापूर्वक साधना करना।
  3. सभी से सज्जनता का व्यवहार करना।
  4. पाप करने से बचना।
  5. प्रभु में विश्वास और प्रीति करने वाले को जल्दी से जल्दी भगवत्प्राप्ति होती है।

स्रोतः ऋषि प्रसादः जून 2017, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 294

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अपना कर्तव्य मानकर बच्चे-बच्चियों की रक्षा करो


पूज्य बापू जी
(मातृ-पितृ पूजन दिवसः 14 फरवरी)
माँ-बाप का आदर करने वाले बच्चों की आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं लेकिन वेलेंटाइन डे के नाम पर लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे को फूल दें और गंदी चेष्टा करें तो इससे दिन दहाड़े रज-वीर्य का नाश होता है। इससे उनकी यादशक्ति कमजोर होती है, तबीयत और जीवन बिगड़ते हैं। जवानी के साथ खिलवाड़ होता है, भविष्य अंधकारमय हो जाता है। ईश्वर प्राप्ति का सत्त्व नाश हो गया बहू-बेटियों का तो फिर उनसे जो संतानें पैदा होंगी, वे कैसी होंगी ? विदेशों में लोग कितने अशांत हैं ! अमेरिका तथा और देशों का क्या हाल है !
जो बच्चे अपनी रक्षा नहीं कर सकते, कुकर्म करके खाली दिमाग हो जाते हैं, वे भविष्य में माँ-बाप की सेवा क्या करेंगे, देश की भी करेंगे और माँ-बाप की भी करेंगे। विदेशों में माँ-बाप बेचारे सरकारी वृद्धाश्रमों में पड़े रहते हैं। क्या आप चाहते हैं कि हमारे देश में भी माँ-बाप सरकारी वृद्धाश्रमों में पड़े रहते हैं। क्या आप चाहते हैं कि हमारे देश में भी माँ-बाप सरकारी वृद्धाश्रमों में, अस्पतालों में पड़े रहें ? नहीं। 14 फरवरी को बच्चे माँ-बाप का आदर करें तथा संयमी रहें और माँ-बाप अपने बच्चों को आशीर्वाद दें इसलिए मैंने (पिछले दस वर्षों से) यह ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ अभियान चलाया है। देश परदेश में लोग इस अभियान की प्रशंसा करते हैं और बहुत प्रसन्नता से सब जगह इस अभियान में जुड़ रहे हैं।
वेलेंटाइन डे जैसे डे मनाकर विदेशों में लोग परेशान हो रहे हैं। वह गंदगी हमारे भारत में आये, इससे पहले ही भारत की कन्याओं और किशोरों का कल्याण हो ऐसा वातावरण बनाना चाहिए।
इसकी क्या जरूरत है ?
कई देशों ने वेलेंटाइन डे मनाने पर बंदिश डाली है। हम तो चाहते हैं कि भारत सरकार को भी भगवान सूझबूझ दें। वह ऐसा कानून बनाये कि बालक-बालिकाओं की तबाही न हो, आने वाली संतति का भविष्य उज्जवल हो। यह सरकार का भी कर्तव्य है, आपका भी है और मेरा तो पहले ही है। मैंने तो शुरु कर दिया ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’। अब आप और सरकार इस कर्तव्य को अपना मानकर बच्चे-बच्चियों की रक्षा करो।
अब तो वेलेंटाइन डे भी मनाते हैं और वेलेंटाइन नाइट और वेलेंटाइन सप्ताह भई चालू कर दिया संस्कृति भक्षकों ने। इसमें चॉकलेट डे जैसे सात-सात डे मनाकर गंदे कल्चर में हमारे बच्चों को गिराने की साजिश है। ये सब डे मनाने की क्या जरूरत है ?
परम भला तो इससे होगा
मातृ-पितृ पूजन दिवस – यह सच्चा प्रेम दिवस है। मैं तो चाहता हूँ कि माता-पिता के हृदय में स्थित भगवान प्रसन्नता छलकायें बच्चों पर। इससे माता-पिताओं का भी कल्याण होगा और बच्चे-बच्चियों का परम कल्याण होगा। अतः 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाओ। संतानें कितनी भी बुरी हों लेकिन उन बेटे-बेटियों ने अगर तुम्हारा पूजन कर लिया तो तुम आज तक की उनकी गलतियाँ माफ करने में देर नहीं कर सकते हो और तुम्हारा दिलबर देवता उन पर प्रसन्न होने और आशीर्वाद बरसाने में देर नहीं करेगा, मैं गारंटी से कहता हूँ ! चाहे ईसाई के बच्चे हों, वे भी उन्नत हों, ईसाई माता-पिता संतुष्ट रहें। मुसलमान, पारसी, यहूदी…. सभी के माता-पिता संतुष्ट रहें। किसके माता-पिता इसमें संतुष्ट होंगे कि ‘हमारे बेटे-बेटियाँ विद्यार्थीकाल में एक दूसरे को फूल दें और ‘आई लव यू…’ कह के कुकर्म करें और यादशक्ति गँवा दें ?’ किसी के माँ-बाप ऐसा नहीं चाहेंगे।
यह मेरी नहीं मान्यता की बदनामी है
मैंने यह अभियान शुरू किया है। यह अभियान जिनको अच्छा नहीं लगता है वे कुछ का कुछ करवाकर मेरे को बदनाम करना चाहते हैं। यह मेरी बदनामी नहीं है, मानवता की बदनामी है भैया ! मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि मानवता के उत्थान में आप अड़चन मत बनो। आप तो सहभागी हो जाओ। वेलेंटाइन डे की जगह गणेश जी की तरह माता-पिता का पूजन ईसाईयत या किसी धर्म की खिलाफत नहीं है।
मातृ-पितृ पूजन गणेश जी ने किया था और शिव-पार्वती का परमेश्वर तत्त्व छलका था। ललाट के भ्रूमध्य में ‘शिवनेत्र’ है ऐसा हम लोग बोलते हैं, उसी को आधुनिक विज्ञान ‘पीनियल ग्रंथि’ बोलता है। गणेश जी के शिवनेत्र पर शिवजी का स्पर्श हो गया। केवल शिवजी ही शिवजी नहीं हैं, तुम्हारे अंदर भी शिव-आत्मसत्ता है। तुम्हारा भी स्पर्श अपने बच्चे के लिए शिवजी का ही वरदान समझ लेना। इससे बच्चों का भला होगा, होगा, होगा ही ! और बच्चों के माँ-बाप के हृदय का भगवान भी प्रसन्न होगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2016, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 277
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

क्या युवाधन की सुरक्षा गुनाह है ?


किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर होता है किंतु उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह गुमराह हो जाती है। वर्तमान में युवाओं में फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति, कुसंग, अभद्रता, चलचित्र-प्रेम आद बढ़ रहे हैं। इनसे दिनों दिन उनका पतन होता जा रहा है। आज विश्व के कई विकसित देशों में विद्यार्थियों को सही दिशा देने के लिए अरबों-खरबों डॉलर खर्च किये जाते हैं, फिर भी वहाँ के विद्यार्थियों में यौन अपराध, यौन रोग, आपराधिकता, हिंसा आदि बढ़ते ही जा रहे हैं। अमेरिका में किशोर-किशोरियों में यौन उच्छृंखलता के चलते प्रतिवर्ष लगभग 6 लाख किशोरियाँ गर्भवती हो जाती हैं। आँकड़े बताते हैं कि मात्र वर्ष 2013 में अमेरिका में 15 से 19 साल की किशोरियों ने 273000 शिशुओं को जन्म दिया। किशोरावस्था में यौन संबंधों से पैदा होने वाली शारीरिक और सामाजिक समस्याएँ जीवन को अत्यंत कष्टप्रद बना देती हैं, यह बात किसी से छुपी नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था UNICEF द्वारा प्रकाशित इन्नोसंटी रिपोर्ट कार्ड नम्बर 3 के अनुसार ‘अमेरिका के राजनैतिक और आम जनता के एक बड़े वर्ग का यह अभिप्राय बनता जा रहा है कि अविवाहित किशोरों के लिए यौन-संयम का संदेश ही यौन शिक्षा के लिए देना उचित है। अमेरिका के स्कूलों में यौन संयम की शिक्षा देने के लिए 1996 से 2001 के बीच सरकार ने 40 करोड़ से अधिक डॉलर केवल संयम की शिक्षा के अभियान में खर्च किये। अमेरिका के प्रत्येक 3 में से एक हाईस्कूल में इस अभियान के तहत यह शिक्षा दी जाती है।’ यह कार्य भारत में पूज्य बापू जी जैसे दूरदर्शी संतों द्वारा ‘युवाधन सुरक्षा अभियान’ के रूप में सफलतापूर्वक व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। उसमें अगर सरकार और मीडिया सहयोग न दे सकें तो कम-से-कम अवरोध पैदा न करें, इसी देश की भावी पीढ़ी का कल्याण है।
क्यों जरूरी है संयम का पालन ?
सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है। सिर्फ व्यक्तिगत लाभ के लिए ही नहीं अपितु सामाजिक स्वास्थ्य, पारिवारिक व्यवस्था के लिए और टीनेज प्रेग्नेंसी (किशोरावस्था में गर्भधारण) से पैदा होने वाली विराट समस्याओं से राष्ट्र की रक्षा करने के लिए भी ब्रह्मचर्य की अनिवार्य आवश्यकता है। भारत के ऋषि पहले से ही ब्रह्मचर्य से होने वाले लाभों के बारे में बता चुके हैं। ब्रह्मचर्य से होने वाले लाभों को अब आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार कर रहा है। यू.के. के ‘बायोजेरन्टॉलॉजी रिसर्च फाउंडेशन’ नामक एक विशेषज्ञ-समूह के निदेशक प्रोफेसर आलेक्स जावरॉन्कॉव ने दावा किया है कि ‘शारीरिक संबंध मनुष्य को उसकी पूरी क्षमता तक जीने से रोकता है। इन्सान शारीरिक संबंध बनाना छोड़ दे तो वह 150 साल तक जी सकता है।’ ब्रह्मचर्य का पालन न करने वाले, असंयमित जीवन जीने वाले व्यक्ति क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य, भय, तनाव आदि का शिकार बन जाते हैं।
‘द हेरिटेज सेंटर फॉर डाटा एनालिसिस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित रहने वाली किशोरियों में संयमी लड़कियों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाली लड़कियों की संख्या तीन गुना से अधिक हैं। आत्महत्या का प्रयास करने वाली किशोरियों में संयमी लड़कियों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाली लड़कियों की संख्या लगभग तीन गुना अधिक है।
अवसाद से ग्रस्त रहने वाले किशोरों में संयमी लड़कों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाले लड़कों की संख्या से दो गुना से अधिक है। आत्महत्या का प्रयास करने वाले किशोरों में संयमी लड़कों की अपेक्षा यौन-संबंध बनाने वाले लड़कों की संख्या आठ गुना से अधिक है।’
किशोरावस्था में पीयूष ग्रंथि के अधिक सक्रिय होने से बच्चों के मनोभाव तीव्र हो जाते हैं और ऐसी अवस्था में उनको संयम का मार्गदर्शन देने के बदले परम्परागत चारित्रिक मूल्यों को नष्ट करने वाले मीडिया के गंदे विज्ञापनों, सीरियलों, अश्लील चलचित्रों तथा सामयिकों द्वारा यौन-वासना भड़काने वाला वातावरण दिया जाता है। इससे कई किशोर-किशोरियाँ भावनात्मक रूप से असंतुलित हो जाते हैं और न करने जैसे कृत्यों की तरफ प्रवृत्त होने लगते हैं। उम्र के ऐसे नाजुक समय में यदि किशोरों, युवाओं को गलत आदतों, जैसे हस्तमैथुन, स्वप्नदोष आदि से होने वाली हानियों के बारे में जानकारी देकर सावधान नहीं किया जाता है तो वे अनेक शारीरिक व मानसिक परेशानियों की खाई में जा गिरते हैं। इस समय भावनाओं को सही दिशा देने के लिए किशोर-किशोरियों में संयम के संस्कार डालना आवश्यक है। यही कार्य ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिता’ व इससे संबंधित पुस्तकों के माध्यम से छात्र-छात्राओं की सर्वांगीण उन्नति हेतु किया जा रहा है। क्या छात्र-छात्राओं को सच्चरित्रता, संयम और नैतिकता की शिक्षा देना गलत है ?
दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ क्या है, इसे क्यों पढ़ा जाय ?
युवा पीढ़ी में संयम सदाचार, ब्रह्मचर्य, मातृपितृभक्ति, देशभक्ति, ईश्वरभक्ति, कर्तव्यपरायणता आदि सदगुणों का विकास हो, इस उद्देश्य से देशभर में ‘दिव्य-प्रेरणा-प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिता’ का विद्यालयों-महाविद्यालयों में आयोजन किया जाता है। इस प्रतियोगिता में विद्यार्थी स्वेच्छा से भाग लेते हैं। इसके लिए विद्यार्थियों पर न ही किसी प्रकार की अनिवार्यता रहती है और न ही कोई दबाव होता है। इस प्रतियोगिता में बच्चों को बाल-संस्कार, हमें लेने हैं अच्छे संस्कार, आदि और बड़ी कक्षाओं के छात्रों को दिव्य प्रेरणा प्रकाश पुस्तक दी जाती है। दिव्य प्रेरणा प्रकाश पढ़ने से करोड़ों के जीवन में संयम-सदाचार, देश की संस्कृति में आस्था-विश्वास आदि सदगुणों का विकास हुआ है। ब्रह्मचर्य, संयम, सदाचार की जो महिमा वेदों, संतों-महापुरुषों, धर्माचार्यों, आधुनिक चिकित्सकों और तत्त्वचिंतकों ने गायी है, वह इस पुस्तक में है। इसको अश्लील बोलना बेहद शर्मनाक है ! भोगवाद व अश्लीलता का खुलेआम प्रचार करने वाले माध्यम इस पवित्र पुस्तक पर अश्लीलता फैलाने का बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। ऐसे लोग जो अश्लील चलचित्रों, गंदे विज्ञापनों, यौन-वासना भड़काने वाले सामयिकों एवं अश्लील वेबसाइटों के द्वारा निर्दोष व पवित्र किशोरों और युवावर्ग चरित्रभ्रष्ट करने वालों का विरोध नहीं करते अपितु अपने स्वार्थों के लिए उनको सहयोग देते हैं तथा उनके दुष्प्रभाव से पीड़ित लोगों को संयम-सदाचार का मार्ग बताकर युवावर्ग का चरित्र-निर्माण करने वाले और टीनेज प्रेग्नेंसी, एड्स जैसे यौ-संक्रमित रोगों एवं उनके निवारण हेतु होने वाले अरबों रुपयों के खर्च से देश को बचाने वाले संतों के दिव्य प्रेरणा प्रकाश जैसे सद्ग्रन्थ का विरोध करते हैं वे समाज और राष्ट्र को घोर पतन की ओर ले जाना चाहते हैं या परम उत्थान की ओर, इसका निर्णय पाठक स्वयं करेंगे। और हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने वाली विदेशी ताकतों के मोहरे बने हुए ऐसे गद्दारों से स्वयं सावधान रहेंगे व औरों को भी सावधान करेंगे, यह हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य है। मीडियावालों की इन हरकतों से यह सिद्ध होता है कि वे हिन्दू संस्कृति को मिटाने के लिए हिन्दू संतों को बदनाम करके उनको षड्यंत्रों में फँसाकर एवं उनके उपदेशों से समाज को वंचित करके अपना उल्लू सीधा करने वाली विदेशी ताकतों के मोहरे बने हुए हैं।
कई प्रसिद्ध हस्तियों, मंत्रियों, अधिकारियों, प्राचार्यों, अध्यापकों, अभिभावकों व विद्यार्थियों ने दिव्य प्रेरणा प्रकाश पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। अरबों डॉलर संयम की शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद विदेशों में युवाओं की हालत दयनीय है जबकि ऋषि-ज्ञान को अपनाकर भारत में करोड़ों युवा सुखी-सम्मानित जीवन जी रहे हैं। ऋषि-मुनियों, शास्त्रों का ऐसा ज्ञान समाज तक पहुँचाने का राष्ट्र-हितकारी सेवाकार्य पूज्य बापू जी के आश्रम, सेवा-समितियाँ व सज्जन साधक कर रहे हैं। ऐसे राष्ट्र हितकारी कार्य में विघ्न डालना क्या उचित है ? वास्तविकता तो यह है कि केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्वभर के युवाओं को दिव्य प्रेरणा प्रकाश जैसी संयम – सदाचार की ओर प्रेरित करने वाली पुस्तकों की अत्यंत आवश्यकता है। (श्री इन्द्र सिंह राजपूत)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 7-9
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ