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Brahmcharya

थोड़ा रुको, बुद्धि से विचारो !


भगवत्पाद स्वामी श्री लीलाशाह जी महाराज

ब्रह्मचारी इन्सान शेर जैसे हिंसक जानवर को भी कान से पकड़ लेते हैं। वीर्य की शक्ति द्वारा ही परशुरामजी ने कई बार क्षत्रियों का नाश किया था, ब्रह्मचर्य के बल पर ही हनुमानजी ने लंका पार करके माता सीता की जानकारी प्राप्त की थी। इस ब्रह्मचर्य के बल द्वारा ही भीष्म पितामह कई महीनों तक तीरों की सेज पर सो सके थे। इसी शक्ति द्वारा लक्ष्मण जी ने मेघनाद पर विजय प्राप्त की थी।

दुनिया में जो भी सुधारक, ऋषि मुनि, महात्मा, योगी हुए हैं उन सभी ने ब्रह्मचर्य की शक्ति द्वारा ही लोगों के दिल जीते हैं। अतः वीर्यरक्षा ही जीवन और उसका नाश मृत्यु है।

आजकल युवा पीढ़ी की हालत देखकर हमें अफसोस होता है। सयोंग से कोई ऐसा नौजवान होगा जो वीर्यरक्षा का ध्यान रखते हुए सिर्फ संतानोत्पत्ति हेतु स्त्री से मिलन करता होगा। आजकल के नौजवान तो जोश में आकर स्वास्थ्य व शरीर की परवाह किये बिना विषय भोगने में अपनी बहादुरी समझते हैं। ऐसे नौजवानों को मैं नामर्द कहूँगा।

जो नौजवान अपनी वासना के वश में हो जाते हैं, वे दुनिया में जीने के योग्य नहीं हैं। वे सिर्फ थोड़े दिनों के मेहमान हैं। उनके खाने की ओर दृष्टि दौड़ायेंगे तो केक, विस्कुट, अंडे, आइसक्रीम आदि उनकी प्रिय वस्तुएँ हैं, जो वीर्य को कमजोर तथा रक्त को दूषित बनाती हैं।

आज से 20-25 वर्ष पहले छोटे-बड़े, नौजवान व बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी दूध, मक्खन व घी खाना पसन्द करते थे पर आजकल के नौजवान स्त्री-पुरुष दूध पीना पसंद नहीं करते। यह देखकर विचार होता है कि ऐसे लोग कैसे अच्छी संतान पैदा करके समाज को दे सकेंगे ! स्वस्थ माता-पिता से स्वस्थ संतान पैदा होती है।

अब थोड़ा रुको तथा बुद्धि से विचार करो कि ‘कैसे अपने स्वास्थ्य व शरीर की रक्षा हो सकेगी ?’ जिस इन्सान ने संसार में आकर ऐशो-आराम का जीवन व्यतीत किया है, उसका इस संसार में आना ही व्यर्थ है।

मेरा नम्र निवेदन है कि प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि इस दुनिया में आकर अपने बचपन के बाद अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने की कोशिस करे तथा शरीर को शुद्ध व मजबूत बनाने के लिए दूध, घी, मक्खन, मलाई, सादगीवाला भोजन प्राप्त करने का प्रयत्न करे, साथ ही प्रभु से प्रार्थना करे कि ‘हे प्रभु ! सादा भोजन खाकर शुद्ध बुद्धि व सही राह पर चलूँ।’

आध्यात्मिक व भविष्य की उन्नति की बुनियाद ब्रह्मचर्य ही है। वीर्य सेनापति की भाँति कार्य करता है तथा दूसरी धातुएँ सिपाहियों की भाँति अपना कर्तव्य पूरा करती हैं। देखो, जब सेनापति मारा जाता है तब दूसरे सिपाहियों की हालत खराब हो जाती है। इसी प्रकार वीर्य के नष्ट होने से शरीर तेजहीन हो जाता है। शास्त्रों ने शरीर में परमात्मा का निवास माना है। अतः उसे पवित्र रखना प्रत्येक स्त्री व पुरुष का कर्तव्य है। ब्रह्मचर्य का पालन वही कर सकेगा, जिसने मन व इन्द्रियों को नियंत्रण में किया हो, फिर चाहे वह गृहस्थी हो अथवा त्यागी।

मैं जब अपनी बहनों को देखता हूँ, तब मेरा दिल दर्द से फट जाता है कि ‘कहाँ हैं वे पहलेवाली माताएँ ?’

दमयंती, सीता, गार्गी, लीलावती, विद्याधरी।

विद्योत्तमा, मदालसा थीं शास्त्र शिक्षा से भरी।।

ऐसी विदुषी स्त्रियाँ भारत की भूषण हो गयीं।

धर्म् व्रत छोड़ा नहीं चाहे जान अपनी खो गयी।।

कहाँ हैं ऐसी माताएँ जिन्होंने श्री रामचन्द्रजी, लक्ष्मण, भीष्म पितामह तथा भगवान श्रीकृष्ण जैसे महान तथा प्रातः स्मरणीय पुरुषों को जन्म दिया था ?

व्यास मुनि, कपिल मुनि तथा पतंजली जैसे ऋषि कहाँ हैं, जिन्होंने हिमालय की गुफाओं में रह, कंदमूल खाकर वेदांत, तत्त्वज्ञान पर पुस्तकें लिख के या सिद्धान्त जोड़ के दुनिया को अचम्भे में डाल दिया ?

आजकल के नौजवानों की हालत देखकर अफसोस होता है। उन्होंने अपने महापुरुषों के नाम पर कलंक लगाया है। हम ऐसे आलसी व सुस्त हो गये हैं कि हमें एक या दो मील पैदल चलने में थकावट महसूस होती है। हम डरपोक तथा कायर हो गये हैं।

मुझे ऐसा लगता है कि भारत के वीरों को यह क्या हो गया है जो वे ऐसे कमजोर तथा कामचोर हो गये हैं ? वे ऐसे डरपोक कैसे हो गये हैं ? क्या हिमालय के वातावरण में ऐसी शक्ति नहीं रही है ? क्या भारत की मिट्टी में ऐसी शक्ति नहीं रही है कि वह अच्छा अनाज पैदा कर सके ? नहीं यह सब तो पहले जैसा है।

आखिर क्या कारण है जो हममें से शक्ति तथा शूरवीरता निकल गयी है कि अर्जुन व भीम जैसी मूर्तियाँ हम पैदा नहीं कर सकते ?

मैं मानता हूँ कि शक्ति, शूरवीरता, स्वास्थ्य व बहादुरी ये सब मौजूद हैं परंतु कुदरत ने जो नियम बनाये हैं हम उन पर अमल नहीं करते, हम उनका पालन नहीं करते। हम उनसे उलटा चलते हैं एवं हर समय भोग भोगने व शरीर के बाहरी सौंदर्य में मग्न रहते हैं और अपने स्वास्थ्य का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते।

अच्छे भोग भोगना यह प्रजापति का कार्य है। आप कौन-सी प्रजा पैदा करेंगे ? कवि ने कहा हैः

जननी जणे तो भक्त जण, कां दाता कां शूर।

नहि तो रहेजे वांझणी, मत गुमावीश नूर।।

आजकल के युग में मिलाप को भोग-विलास का साधन बना रखा है। वे मनुष्य कहलाने के लायक नहीं हैं। क्योंकि संयमी जीवन से ही दुनिया में महान, पुरुष, महात्मा, योगिराज, संत, पैगम्बर व ऋषि-मुनि अपना तेजस्वी चेहरा बना सके हैं। उन भूले भटकों को अपनी पवित्र वाणी द्वारा तथा प्रवचनों द्वारा सत्य का मार्ग दिखाया है। उनकी मेहरबानी व आशीर्वाद द्वारा कई लोगों के हृदय कुदरती प्रकाश से रोशन हुए हैं।

मनुष्य को चाहिए कि कुदरती कानून व सिद्धान्तों पर अमल करे, उनके अनुसार चले। सबमें समान दृष्टि रखते हुए जीवन व्यतीत करे। अंतःकरण में शुद्धता रखकर कार्य में चित्त लगाना चाहिए, इससे हमारा कार्य सफल होगा। मिलन के समय यदि विचार पवित्र होंगे तो आपकी संतान भी अच्छे विचारोंवाली होगी और संतान दुःख-सुख के समय आपको सहायता करेगी।

 

यदि आप दुनिया में सुख व शांति चाहते हो तो अपने अंतःकरण को पवित्र व शुद्ध रखकर दूसरों को ज्ञान दो। जो मनुष्य वीर्य की रक्षा करेंगे, वे ही सुख व आराम की जिंदगी जी सकेंगे और उन्हीं लोगों के नाम दुनिया में सूर्य की रोशनी की भाँति चमकेंगे।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2011, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 219

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शक्ति का मूल – ब्रह्मचर्य – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी


शक्तिशाली कहलाने वाले कुछ राष्ट्रों की शक्ति कसौटी के मौके पर वीर्यहीन साबित होती है। उन देशों की संस्कृति की यह एक शोकांति का ही मानी जायेगी। इसका मूल कारण क्या है ?

युद्ध में मनुष्य के साहस का जितना महत्त्व है, उतना शस्त्रों के ढेर का नहीं है। ब्रह्मचर्य से व्यक्ति की आत्मशक्ति को पोषण मिलता है। व्यक्तियों का जीवन जब केवल काम-वासना के, सम्पत्ति जुटाने के या दोनों के चिंतन में व्यतीत होता है, तब ब्रह्मचर्य के सिद्धान्त पर प्रहार होता है। जब ब्रह्मचर्य की उपेक्षा की जाती है, तब मनुष्य की आत्मशक्ति क्षीण होती है और उसकी सत्ता और सम्पत्ति शक्तिहीन बनती है। कारण कुछ भी हो – चाहे अश्लील साहित्य हो, चलचित्र हों या और कुछ, जिम्मेदार कोई भी हो – कलाकार हो या इन सब कामों का नेता, प्रकृति तो अपना काम करती है। जब राष्ट्र के युवक युवतियाँ ब्रह्मचर्य को छोड़ देते हैं और अपने को काम वासना में खो देते हैं, शिक्षा को सम्पत्ति व काम-वासना के पीछे अपनी बुद्धिमत्ता और ओजस्विता को लुटा देते हैं, तब राष्ट्र अस्त्र-शस्त्रों से कितना भी सुसज्जित हो पर अपना प्रभाव कायम नहीं रख सकता। उसके सारे क्रियाकलाप भ्रांतिमात्र साबित होते हैं। मजबूत आधार के बिना बनाया हुआ किला बालू का किला साबित होता है।

यह समस्या सभी राष्ट्रों के सामने है। लोगों की आत्मशक्ति पुनरूज्जीवित करनी होगी। अन्यथा कितनी भी शस्त्र-सामग्री उधार ली जाय या कर्जा लेकर खड़े किये गये कारखानों के द्वारा तैयार की जाय, सब बेकार साबित होगी। मनुष्य के आत्मबल की जरूरत केवल धर्मयुद्ध में नहीं बल्कि सभी प्रकार के न्यायोचित शौर्य में भी है। सम्पत्ति और सत्ता की नहीं, ब्रह्मचर्य और उससे विकसित मनोबल की विजय होती है।

ब्रह्मचर्य को छोड़ना यानी मानव-सभ्यता से पशु जीवन की ओर मुड़ना। संयम के पालन से मस्तिष्क और हृदय शक्तिशाली बनते हैं। विषय-सेवन से बौद्धिक शक्ति और आत्मशक्ति नष्ट हो जाती।

केवल दैहिक भोग का संयम पर्याप्त नहीं है। जब मन में भोग का चिंतन चलता है, जब वासना की आग अंदर से जलाती है, तब चित्तशक्ति क्षीण होती जाती है। विषय-सेवन और वासना का त्याग यानी ब्रह्मचर्य।

इसके लिए ‘गीता’ उपाय सुझाती हैः

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।

रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते।।

‘इन्द्रियों के द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो निवृत्त हो जाते हैं परंतु उनमें रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती। इस स्थितप्रज्ञ पुरुष की तो आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाती है।’ (गीताः 2.59)

इसी प्रकार तमिल ग्रंथ तिरूक्कुरल में लिखा हैः ‘बहुतेरी आसक्तियों से बचने के लिए उस एक पुरुषोत्तम की आसक्ति का आलम्बन करो।’

शास्त्रों के सिद्धान्तों को अमल में लाने के लिए हम जागृत हो जायें और संतपुरुषों के अनुग्रह के लिए प्रार्थना करें, ताकि हमें पर्याप्त बल मिले।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2011, पृष्ठ संख्या 12, अंक 217

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ओजवान-तेजवान बनने का प्रयोग


(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से)

जितने तुलसी के बीज हों उससे साढ़े तीन गुना गुड़ ले लो। मान लो सौ ग्राम तुलसी के बीज हैं तो साढ़े तीन सौ ग्राम गुड़ ले लो।

तुलसी के बीजों को मिक्सी में पीस लो और फिर उस पाउडर में गुड़ की चाशनी मिलाकर मटर के दानों के बराबर गोलियाँ बना लो। बड़े लोगों के लिए बड़ी गोली, छोटे बच्चों के लिए छोटी गोली। 2-2 गोली सुबह शाम लेने वाले विद्यार्थी की यादशक्ति तो बढ़ेगी साथ ही साथ वह वीर्यवान, ओजवान, तेजवान एवं बुद्धिमान बनेगा। डरपोक में भी बल आ जायेगा। इसके प्रयोग से कई बीमारीयाँ भाग जाती हैं, जैसे पानी पड़ना, स्वप्नदोष, कमजोरी, चमड़ी के रोग. पेट की खराबियाँ, गैस एसिडिटी, घुटनों के दर्द, ट्यूमर, कैंसर आदि। इससे बहुत फायदा होता है। तुलसी में 800 बीमारियों को दूर करने की शक्ति है, उसके बीज तो और भी शक्तिशाली होते हैं।

शास्त्रों में यहाँ तक लिखा है कि ये गोलियाँ यदि कोई नपुंसकता से ग्रस्त व्यक्ति भी खाये तो उसमें भी मर्दानगी आ जायेगी, तो पुरुषों और महिलाओं की तो बात ही क्या ! तुलसी के बीज सभी के लिए लाभप्रद हैं। गर्मियों में यह प्रयोग बंद कर देना या कम कर देना। ये गोलियाँ पानी से भी ले सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2011, पृष्ठ संख्या 28, अंक 217

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गैस मिटाये ताकत लायेः काजू

अगर पेट में गैस बनती हो तो काजू को तल दो और उसमें काली मिर्च तथा नमक मिलाकर रख दो। 2-4 काजू चबाकर खाने से गैस की तकलीफ में आराम मिलेगा।

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