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Sharir Swasthya

स्वास्थ्य रक्षा व शारीरिक सुडौलता दायक मोटे अनाज



मोटे अनाज अत्यंत पोषक, पचने में तथा उगाने में आसान होते हैं
। ये कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं । इनकी
खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की भी जरूरत नहीं पड़ती इसलिए ये
हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से भी अच्छे हैं । मोटे
अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, मकई, कंगनी, कुटकी, कोदो, सावाँ आदि
का समावेश होता है ।
मोटे अनाज खनिजों, विटामिन बी-काम्पलेक्स एवं रेशों के अच्छे
स्रोत होते हैं । साथ ही इनमें फाइटोकेमिकल्स भी पाये जाते हैं, जो रोग
प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाने एवं शरीर में से विषाक्त द्रव्यों को दूर करने
में लाभदायी हैं । ये हृदयरोग, मधुमेह, कैंसर, मोटापा, जोडों का दर्द,
गठिया आदि रोगों में हितकर हैं। इनका सेवन पाचन-तंत्र, श्वसन-
संस्थान, तंत्रिका-तंत्र एवं मांसपेशियों को स्वस्थ एवं मजबूतर बनाता है

पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः “बारह महीनों गेहूँ
खाना माने पेट सम्बन्धी तकलीफों को बुलाना है । विज्ञानी बोलते हैं कि
गेहूँ में ग्लुटोन प्रोटीन अधिक होता है जो हाजमे सम्बन्धी तकलीफें
करता है इसलिए साल में 3 महीने गेहूँ से परहेज करना चाहिए । इससे
स्वास्थ्य की सुरक्षा करने में व लम्बा आयुष्य पाने में आप सफल हो
जायेंगे और आपका शरीर बड़ा सुड़ौल रहेगा । तो 3 महीने गेहूँ को
भूलकर ज्वारा, बाजरा, मकई, रागी आदि खा सकते हैं ।
मकई पौष्टिक है, इसे सुपर फूड कहा विज्ञानियों ने । मकई का
कुछ भी बनाओ तो अधिक तेल अथवा घी नहीं लगेगा । मकई
पौष्टिकता से सम्पन्न है, उसमें भरपूर मात्रा में विटामिन्स हैं । मकई

का उपमा बना सकते हैं । नासमझी से लोग उपमा के लिए मकई का
मोटा-मोटा आटा पीसते हैं । सब लोग जितना चबाना चाहिए उतना चबा
के नहीं खाते हैं इसलिए सूजी जैसा मोटा नहीं पीसो, सूजी से कम मोटा
आटा हो और बनाने के एक डेढ़ घंटे पहले उसे भिगोना चाहिए, तब
उसका उपमा बढ़िया बनेगा ।
गेहूँ के आटे में 10 से 20 प्रतिशत मकई का आटा डालते हैं तो
रोटी मुलायम, स्वादिष्ट व पौष्टिक होती है । मकई का तेल कोलेस्ट्रोल
को बढ़ने नहीं देता । मकई में बहुत सारे गुण हैं । मकई में उत्तम
पोषक तत्त्व होते हैं और यह कई बीमारियों को भी दूर रखती है ।
सर्दियों में पुष्टि के लिए मकई खायें – चाहे मकई का उपमा बना के
खायें, हलवा बना के खायें, रोटी बना के खायें । अगर गर्भवती महिला
मकई खाती है तो उसके शिशु को तो गजब का लाभ होता है ।
ज्वार, बाजरा, रागी आदि भी मजबूती देते हैं और आयरन,
कैल्शियम से भरपूर हैं । बाजरा रुक्ष है तो थोड़ा घी, मक्खन या गुड़ के
साथ खायें तो अच्छा है सभी के लिए । बाजरा के साथ लस्सी का सेवन
करें तो यह वायु-नाश करेगी ।
महाराष्ट्र में तो लोग बच्चों को रागी के लड्डू व खीर खिलाते हैं ।
हड्डियों को मजबूत बनाना है तो रागी का उपयोग भी किया जा सकता
है भोजन में, मकई भी मजबूती देती है ।
तो खान-पान का स्वास्थ्य पर बड़ा असर पड़ता है । अगर विरुद्ध
आहार करते हैं तो उसका विपरीत प्रभाव पड़ता है, जैसे खमण (भाप में
पकायी हुई बेसन की एक खाद्य चीज) स्वादिष्ट है परंतु खाली पेट
खमण खाओ तो पेट की खराबियाँ हो जायेंगी । लेकिन मकई का उपमा

खाली पेट खाओ-खिलाओ तो कोई बात नहीं, यह पेट की बीमारियाँ नहीं
पौष्टिकता देगा ।”
ऋषि प्रसाद, जनवरी 2023, पृष्ठ संख्या 30,32 अंक 361
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विजातीय द्रव्यों को करें दूर पायें स्वास्थ्य लाभ भरपूर – पूज्य बापूजी



पेट साफ करने का अक्सीर इलाज यह है कि रात्रि को सोने से
पहले त्रिफला टेबलेट हलके गुनगुने पानी से लें, नहीं तो ऐसे ही चूस लें
– जिसको जितनी, जैसी अनुकूल पड़ें । मस्से (बवासीर) हों, पेट साफ
नहीं हो रहा हो तो रात को 2 टेबलेट ले लीं और फिर सुबह 2 ले लीं ।
आधे पौने घंटे में तो वे पेट की सफाई करके मस्से के जो भी दोष हैं
उन्हें कुछ ही दिन में साफ कर देंगी । किंतु केवल मस्से मिटाने के लिए
त्रिफला नहीं है, यह तो हमारे शरीर के समस्त हानिकारक द्रव्यों को ढूँढ
के निकाल देता है ।
एक मंत्री आता था मेरे पास । उसने एक बार मेरे से पूछाः “मैं
आपको कितने साल का लगता हूँ ?”
मैंने 40 से 50 के बीच का अनुमान लगाया ।
वह बोलाः “नहीं, मैं 65 साल का हूँ लेकिन लगता हूँ न 40 – 50
का !”
मैंने कहाः “इसका क्या कारण है ?”
बोलाः “मैं रोज त्रिफला लेता हूँ ।”
तो त्रिफला का उसको बड़ा अनुभव था । मेरे को भी बड़ा अनुभव
है । मेरे को मस्से हो गये थे तो त्रिफला लिया तो सब गायब हो गये ।
अब भी मस्से-वस्से जैसा कुछ उभरता है तो त्रिफला ले लेता हूँ तो दूसरे
दिन सब गायब ! तो ऋषि प्रसाद वालों को यह कुंजी मिल गयी । किसी
को मस्से हों तो बस, त्रिफला दे दो और यह प्रयोग बता दो, वह ठीक हो
जायेगा ।

त्रिफला से पेट की समस्त तकलीफें दूर हो जाती हैं । आलू-वालू
खाने से आगे चल के जो भयंकर टयूमर, हार्ट अटैक, ब्रेन टयूमर होने
वाला होता है वह भी हमारे सम्पर्कवालों को नहीं होगा क्योंकि मैंने उन्हें
त्रिफला की कुंजी दे दी है ।
मैंने भी तो आलू खाये हुए थे लेकिन मैंने आलू के दुष्प्रभाव को दूर
करने के लिए अंग्रेजी दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को भगाने के लिए
त्रिफला रसायन के 40 दिन के 2 कल्प किये थे । अच्छा हुआ साइड
इफेक्ट हुआ एलोपैथी से, उसे दूर करने के लिए मैंने त्रिफला रसायन का
प्रयोग किया तो उससे मेरा सारा शरीर एकदम धुल गया, शुद्ध हो गया

(त्रिफला चूर्ण, त्रिफला रसायन (सादा व स्पेशल), त्रिफला टेबलेट –
ये संत श्री आशाराम जी आश्रमों में सत्साहित्य सेवा केन्द्रों से तथा
समितियों से प्राप्त हो सकते हैं ।)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 31 अंक 363
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परम सत्ता पर निर्भरता होने से होता रोग-निवारण – परमहंस
योगानंद जी



उस परम सत्ता की शक्ति को निरंतर विश्वास और अखंड प्रार्थना
से जगाया जा सकता है । आपको उचित आहार लेना चाहिए और शरीर
की उचित देखभाल के लिए जो भी करना आवश्यक है वह अवश्य करना
चाहिए । परंतु इससे भी अधिक भगवान से निरंतर प्रार्थना करनी
चाहिएः ‘प्रभु ! आप ही मुझे ठीक कर सकते हैं क्योंकि प्राणशक्ति के
अणुओं को और शरीर की सूक्ष्म अवस्थाओं को, जिन तक कोई डॉक्टर
कभी अपनी औषधियों के साथ पहुँच ही नहीं सकता, उन्हें आप ही
नियंत्रित करते हैं ।’
औषधियों और उपवास के बाह्य घटकों का शरीर में लाभप्रद
परिणाम उत्पन्न होता है परंतु वे उस आंतरिक शक्ति पर कोई प्रभाव
नहीं डाल सकते जो कोशिकाओं को जीवित रखती है । केवल जब आप
ईश्वर की ओर मुड़ते हैं और उसकी रोग-निवारक शक्ति को प्राप्त करते
हैं तभी प्राणशक्ति शरीर की कोशिकाओं के अणुओं में प्रवेश करती है
और तत्क्षण रोग-निवारण कर देती है । क्या आपको ईश्वर पर अधिक
निर्भर नहीं होना चाहिए ?
परंतु भौतिक पद्धतियों पर निर्भरता छोड़कर आध्यात्मिक
पद्धतियों पर निर्भर होने की प्रक्रिया धीरे-धीरे होनी चाहिए । यदि कोई
अति खाने की आदतवाला मनुष्य बीमार पड़ जाता है और मन के द्वारा
रोग को हटाने के इरादे से अचानक उपवास करना शुरु कर देता है तो
सफलता न मिलने पर हतोत्साहित हो सकता है । अन्न पर निर्भरता की
विचारधारा को आत्मसात् करने में समय लगता है । ईश्वर की रोग

निवारक शक्ति के प्रति ग्रहणशील बनने के लिए पहले मन को ईश्वर
की सहायता में विश्वास होना चाहिए ।
उस परम सत्ता की शक्ति के कारण ही समस्त आणविक ऊर्जा
कम्पायमान है और जड़ सृष्टि की प्रत्येक कोशिका को प्रकट कर रही है
और उसका पोषण भी कर रही है । जिस प्रकार सिनेमाघर के पर्दे पर
दिखने वाले चित्र अपने अस्तित्व के लिए प्रोजेक्शन बूथ से आने वाली
प्रकाश-किरणों पर निर्भर होते हैं उसी प्रकार हम सब अपने अस्तित्व् के
लिए ब्रह्मकिरणों पर निर्भर हैं, अनंतता के प्रोजेक्शन बूथ से निकलने
वाले दिव्य प्रकाश पर निर्भर हैं । जब आप उस प्रकाश को खोजेंगे और
उसे पा लेंगे तब आपके शरीर की समस्त अव्यवस्थित कोशिकाओं की,
अणुओं, विद्युत अणुओं एवं जीव अणुओं की पुऩर्रचना करने की उसकी
असीम शक्ति को आप देखेंगे । उस परम रोग-निवारक के साथ सम्पर्क
स्थापित कीजिये । (एकाकार होइये )।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2023, पृष्ठ संख्या 20 अंक 363
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