मालिश हमारे स्वास्थ्य व सौंदर्य में वृद्धि करती है, साथ में यह अनेक रोगों का सफल उपचार भी है। शीतकाल में मालिश विशेष लाभकारी है।
नियमित मालिश के लाभ
त्वचा निरोग, झुर्रियों से रहित, स्निग्ध, कांतिपूर्ण और स्वच्छ रहती है। सभी अवयवों में लचीलापन रहता है और शरीर का विकास एवं सुरक्षा भली प्रकार होते हैं।
शरीर में स्फूर्ति और शक्ति बनी रहती है, थकावट दूर होती है।
पाचक अंगों को शक्ति व ओज मिलता है। यकृत, छोटी आँत आदि ठीक से अपना कार्य करते रहते हैं और पेट ठीक से साफ होता है।
शरीर दुबला हो तो पुष्ट व सुडौल होता है। यदि मोटा हो तो मोटापा कम होता है।
अनिद्रा, शारीरिक दर्द, हाथ-पैरों का कम्पन और वातरोग आदि व्याधियों में लाभ होता है।
मालिश के द्वारा रोग निवारण
मालिश द्वारा शरीर का रक्त प्रवाह बेहतर हो जाता है। यह शरीर के रोगों की निवृत्ति में सहायक होती है। मालिश से शरीर के चयापचयजन्य (metabolic) त्याज्य द्रव्य तथा विषाक्त द्रव्य पसीने, पेशाब, मल, श्वास आद के द्वारा बाहर निकल जाते हैं। यह शरीर की कार्यप्रणाली को सक्रिय बनाती है।
मांसपेशियों को अपना कार्य भलीभाँति करने के लिए शक्ति प्राप्त होती है। जोड़ लचीले और स्नायु (Ligaments) दृढ़ हो जाते हैं। रक्त का एक स्थान पर जमाव व चिपकाव दूर होता है। स्नायु-जाल को बहुत लाभ होता है।
भिन्न-भिन्न रोगों में मालिश का प्रयोग अलग-अलग तरीकों से शरीर के विभिन्न अंगों पर किया जाता है। उचित मालिश द्वारा जोड़ों का दर्द, सिरदर्द, मोच और किसी अंग की पीड़ा बड़ी बीमारी में भी यह बहुत लाभ करती है।
मालिश का तेल
मालिश के लिए काले तिल का तेल उत्तम है।
मालिश में ध्यान रखने योग्य बातें
जमीन पर चटाई बिछाकर बैठ के मालिश करें, खड़े-खड़े या चलते फिरते नहीं।
मालिश करने के लिए हाथ नीचे से ऊपर को चलायें। इसका तात्पर्य यह है कि हृदय की तरफ रक्त का प्रवाह हो ऐसा प्रयास करना।
मालिश के समय पेट खाली होना चाहिए। इसलिए सुबह शौच के बाद और स्नान से पहले मालिश करना सर्वश्रेष्ठ होता है। मालिश के 20-30 मिनट बाद सप्तधान्य उबटन या बेसन अथवा मुलतानी मिट्टी (शीत ऋतु के अलावा) लगाकर गुनगुने पानी से स्नान करें। स्नान कर तौलिये से खूब रगड़-रगड़ के शरीर को पोंछ लें।
प्रतिदिन पूरे शरीर की मालिश सम्भव न हो तो नियमित सिर व पैर के तलवों की मालिश करें व नाभि में तेल डालें। 2-3 दिन में कान में शुद्ध सरसों या तिल का तेल डालना चाहिए।
मालिश धीरे-धीरे और हलके दबाव के साथ करनी चाहिए। मालिश करते समय ऐसी मनोभावना बनायें कि उक्त अंग को बल मिल रहा है, इससे विशेष लाभ होता है।
सावधानियाँ
भोजन के तुरंत बाद कभी भी मालिश नहीं करनी चाहिए। मालिश शीघ्रता से न करें अन्यथा यह थकान पैदा करती है।
मालिश के बाद ठंडी हवा में न घूमें।
बुखार, कब्ज, अजीर्ण, आमदोष, तरूण ज्वर, कफ से पीड़ित तथा उपवास या अधिक रात्रि तक जागरण किये हुए एवं बहुत थके हुए व्यक्ति को तेल मालिश नहीं करनी चाहिए।
रोग दूर करने के लिए किसी अंग की मालिश करनी हो तो मालिश के जानकार, वैद्य आदि से समझकर ही मालिश करनी चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 30-31, अंक 276
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Sharir Swasthya
खजूर खायें, शरीर को हृष्ट-पुष्ट व निरोगी बनायें
खजूर मधुर, शीतल, पौष्टिक व सेवन करने के बाद तुरंत शक्ति-स्फूर्ति देने वाला है। यह विशेषतः रक्त, मांस व वीर्य की वृद्धि करता है। यह हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देता है, वायु व कफ का शमन करता है तथा मल व मूत्र साफ लाता है। खजूर में कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन्स, लौह, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस आदि भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। इसके नियमित सेवन से मांस की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट हो जाता है। गाय के घी अथवा दूध के साथ खजूर लेने से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है।
पाचक व पौष्टिक खजूर चटनी
खजूर में नींबू का रस, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक आदि मिलाकर चटनी बनायें। इसको खाने से भूख खुलकर लगती है, पाचन ठीक से होता है, गैस की तकलीफ व अरुचि दूर होती है। यह चटनी पौष्टिक और बलप्रद भी है।
बलप्रद अवलेह
खजूर, द्राक्ष, मिश्री व घी – प्रत्येक 100 ग्राम व 10 ग्राम पीपर को अच्छे से मिलाकर रखें। अवलेह तैयार हो गया। प्रतिदिन 20-30 ग्राम सेवन करने से क्षय (टी.बी.), क्षयजनित खाँसी, दमा और स्वरभेद (आवाज बदल जाना, रूखी-तीखी आवाज) में अच्छा लाभ होता है। बालकों के लिए भी यह स्वादिष्ट, रुचिकर और बलप्रद है।
खजूर के विविध प्रयोग
वीर्यवर्धकः 5-7 खजूर तथा 25-30 किशमिश प्रतिदिन सेवन करने से रक्त की वृद्धि होती है। दुर्बल शरीर मन वाले एवं जिनका वीर्य क्षीण हो गया है, ऐसे लोगों के लिए प्रतिदिन प्रातः इनका सेवन लाभदायक है।
5-7 खजूर व रात को भिगोकर छिलके उतारे हुए 5 बादाम सुबह दूध के साथ कुछ महीने सेवन करने से वीर्य की वृद्धि होती है और शीघ्रपतन की विकृति नष्ट होती है।
रक्ताल्पताः घीयुक्त, दूध के साथ रोज 5-7 खजूर का उपयोग करने से खून की कमी दूर होती है।
शारीरिक निर्बलताः 500 ग्राम बीज निकला हुआ खजूर कूटें। उसमें बादाम, पिस्ता चिरौंजी, मिश्री व घी – प्रत्येक 50 ग्राम मिलाकर उसके 50-50 ग्राम के लड्डू बना के रखें। प्रतिदिन 1 लड्डू खाकर ऊपर से दूध पीने से शारीरिक निर्बलता दूर होती है।
दूध में 5 खजूर व 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
नपुंसकताः खजूर में 1 ग्राम व दालचीनी का चूर्ण मिलाकर सुबह गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से नपुंसकता में लाभ होता है।
मात्राः 5 से 7 खजूर अच्छी तरह धोकर रात को भिगो को सुबह खायें। बच्चों के लिए 2-4 खजूर पर्याप्त हैं। दूध या घी में मिलाकर खाना विशेष लाभदायी है। होली के बाद खजूर खाना हितकारी नहीं है।
प्राप्ति स्थान
सभी संत श्री आशाराम जी आश्रम। सम्पर्कः 079-3987773
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 31, अंक 76
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शरीर को हृष्ट-पुष्ट व बलशाली बनाने का समयः शीतकाल
शीतकाल के अन्तर्गत हेमंत व शिशिर ऋतुएँ (23 अक्तूबर 2015 से 18 फरवरी 2016 तक) आती है। यह बलसंवर्धन का काल होता है। इस काल में उचित आहार-विहार का नियम पालन कर शरीर को स्वस्थ व बलिष्ठ बनाया जा सकता है।
ध्यान रखने योग्य कुछ जरूरी बातें
जब अच्छी ठंड शुरु हो जाय, तब वायु (वात) का शमन करने वाले, बल, रक्त एवं मांस वर्धक पौष्टिक पदार्थ जैसे चना, अरहर, उड़द, तिल, गुड़, नारियल, खजूर, सूखा मेवा, चौलाई, बाजरा, दही, मक्खन, मिश्री, मलाई, खीर, मेथी, गुनगुने दूध के साथ घी (1-2) चम्मच, पौष्टिक लड्डू एवं विविध पाकों का उचित मात्रा में सेवन लाभदायी है।
घी, तेल, दूध, सोंठ, पीपर, आँवला आदि से बने स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजनों का सेवन करना चाहिए।
सुबह नाश्ते हेतु रात को भिगो के सुबह उबाला हुआ चना या मूँगफली, गुड़, गाजर, शकरकंद आदि सस्ता व पौष्टिक आहार है।
औषधियों में अश्वगंधा चूर्ण, असली च्यवनप्राश, मूसली, गोखरू, शतावरी, तालमखाना, सौभाग्य शुंठी पाक आदि सेवन-योग्य हैं।
सप्तधान्य उबटन से स्नान, मालिश, सूर्यस्नान, व्यायाम आदि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हितकारी हैं।
शीतकाल में थोड़ा शीत का प्रभाव सहना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है लेकिन शीत लहर से बचें।
इन दिनों में उपवास अधिक नहीं करना चाहिए। रूखे-सूखे, अति शीतल प्रकृति के, वायुवर्धक, बासी, तीखे, कड़वे, खट्टे व चटपटे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
अच्छी ठंड पड़ने पर भी पौष्टिक आहार न लेना, भूख सहना और देर रात्रि में भोजन करना, पोषक तत्त्वों से रहित रूखा-सूखा आहार लेना आदि शीत ऋतु में शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है।
पुष्टिकारक प्रयोग
2-3 खजूर घी में भून के खायें अथवा रात को घी में भिगोकर सुबह खायें और इलायची, मिश्री तथा कौंच-बीज का चूर्ण (1 से 2 ग्राम) डाल के उबाला हुआ दूध पियें। यह उत्तम शरीर-पुष्टिकारक योग है।
10-10 ग्राम इलायची व जावित्री का चूर्ण तथा 100 ग्राम पिसी बादाम-गिरी मिलाकर रखें। 10 ग्राम मिश्रण गाय के मक्खन के साथ खाने से धातु पुष्ट होती है, शरीर बलवान बनता है।
6 से 12 वर्ष के बालकों को सबल व पुष्ट बनाने के लिए 1 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण 1 कप दूध में डालकर उबालें। 1 या 2 चम्मच घी व मिश्री डाल के पिलायें। यह प्रयोग 3-4 माह तक करें।
2 ग्राम मुलहठी का चूर्ण, आधा चम्मच शुद्ध घी व 1 चम्मच शहद – तीनों को मिला कर सुबह चाट लें। ऊपर से मिश्री मिला हुआ गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पियें। यह प्रयोग 2-3 महीने नियमित रूप से करने शरीर-पुष्टि होने के साथ-साथ वाणी में माधुर्य आता है।
असली सफेद मूसली और अश्वगंधा समभाग चूर्ण मिला कर रखें। सुबह 1 छोटा चम्मच मिश्रण दूध के साथ सेवन करने से मांस, बल और शुक्र धातु की वृद्धि होती है।
5 ग्राम तुलसी के बीज व 50 ग्राम मिश्री मिलाकर रख लें। 5 ग्राम चूर्ण सुबह गाय के दूध के साथ सेवन करें। यह महा औषधि शुक्र धातु को गाढ़ा करने में चमत्कारिक असर करती है। 40 दिन यह प्रयोग करें। सेवनकाल में ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी है।
2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में 5 ग्राम मिश्री, 1 चम्मच शहद व 1 चम्मच गाय का घी मिलायें। रोज सुबह इसका सेवन करने से विशेषतः रक्त, मांस, अस्थि व शुक्र – इन 4 धातुओं व शारीरिक बल की वृद्धि होती है तथा हड्डियाँ, बाल व दाँत मजबूत बनते हैं।
स्रोतः ऋषि प्रसाद नवम्बर 2015, पृष्ठ संख्या 30-31, अंक 275
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