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सब धर्मों की एक ही पुकार, माता-पिता का करें सत्कार – पूज्य बापू जी


मातृ-पितृ पूजन दिवस – 14 फरवरी

ऐसा कोई माँ-बाप नहीं चाहते कि हमारा बेटा लोफर हो, किसी कुँवारी लड़की के चक्कर में आये। हमारी बेटी किसी लड़के के चक्कर में आये, शादी के पहले ही ओज-तेजहीन हो जाये। ऐसा ईसाई नहीं चाहते, मुसलमान भाई भी नहीं चाहते हैं, पारसी, यहूदी भी नहीं चाहते हैं और हिन्दू तो कभी नहीं चाहेंगे। सभी के माता-पिता चाहते हैं कि ʹहमारी संतान ओजस्वी-तेजस्वी हो, बलवान-बुद्धिमान हो, स्वयं के पैरों पर खड़ी रहे और बुढ़ापे में हमारा ख्याल रखे। छोटी उम्र में लड़के-लड़कियाँ बॉयफ्रैंड-गर्लफ्रैंड होकर तबाही की खाई में न गिरें।ʹ ऐसा सब चाहते हैं। भगवान को, अल्लाह को तो सब नहीं चाहते हैं लेकिन बच्चे हमारा आदर करें ऐसा सभी चाहते हैं और मैं वही कर रहा हूँ। विश्वमानव को ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ का फायदा मिले, ऐसा हमने अभियान शुरु किया है।

मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का आह्वान

14 फरवरी को छोरा-छोरी एक दूसरे को फूल देते हैं। एक-दूसरे को फूल देना, ʹमैं तुमसे प्रेम करता हूँ/करती हूँ…ʹ कहना बड़ी बेशर्मी की बात है। इससे लोफर-लोफरियाँ पैदा हो रहे हैं। यह गंदगी विदेश से आयी है। इस विदेशी गंदगी से बचाकर हमें भारत की सुगंध से बच्चे-बच्चियों को सुसज्ज करना है।

रावण की बहन शूर्पणखा ने लक्ष्मणजी को कह दिया थाः “मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ।”

लक्ष्मणजी ने कहाः “तू इतनी बेशर्म, नकटी है !” किसी परपुरुष को स्त्री कहे, ʹमैं तुम्हें प्रेम करती हूँ।ʹ तो लानत है उसको ! लक्ष्मण जी ने उसके नाक-कान काटकर हाथ में पकड़ा दिये, बोलेः “जा, अपने भाइयों को दिखा कि तू कैसी नकटी है।”

शूर्पणखा की नाक कटवा दी ʹआई लव यूʹ जैसे शब्दों ने। लेकिन अपने बच्चे बच्चियों को बेचारों को पता नहीं है। पाश्चात्य कल्चरवाले हमारी हिन्दू संस्कृति पर आघात करके बच्चों को गुमराह कर देते हैं। ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाकर विदेश के बच्चे-बच्चियाँ तबाह हो गये गये। उनके देशों में हर वर्ष 13 से 19 साल की 12 लाख 50 हजार किशोरियाँ गर्भवती हो जाती हैं। उनमें से 5 लाख गर्भपात करा लेती हैं, बाकी 7 लाख कुछ हजार कुँवारी माता बनकर नर्सिंग होम, सरकार एवं माँ-बाप पर बोझा बन जाती हैं अथवा वेश्यावृत्ति धारण कर लेती हैं। बड़ी घृणित जिंदगी हो जाती है उन बच्चियों की ! तो ऐसी गंदगी हमारे देश में न आये इसलिए मैंने ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाने के बदले ʹमातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने का आह्वान किया है।

मातृ-पितृ पूजन दिवस कैसे मनायें ?

14 फरवरी को बच्चे-बच्चियाँ मा-बाप का सत्कार करें। माँ-बाप को तिलक करें, उनकी प्रदक्षिणा करें। माँ-बाप को ʹमातृदेवो भव। पितृदेवो भव।ʹ करके नवाजें और माँ-बाप बच्चों के ललाट पर तिलक करें – ʹत्रिलोचन भव।ʹ इन दो आँखों से जो दुनिया दिखती है, वह तो सपना है। ज्ञान की आँख से दुनिया को देखो तो परमात्मा ही सत्य है। शरीर मरने वाला है, आत्मा अमर है।

माँ-बाप तो वैसे ही बच्चों पर मेहरबान होते हैं, वैसे ही बच्चों का भला चाहते हैं और जब बच्चों से पूजित होंगे तो उनके अंतरात्मा का भी आशीर्वाद बच्चों को मिलेगा। बच्चों का भी भला, माँ-बाप का भी भला !

बापूजी का मातृ-पितृ पूजन दिवस पर उपहार

मैं देशभर में यह प्रयोग चालू करवाना चाहता हूँ ताकि 14 फरवरी आये उसके पहले ही बच्चे ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ के लिए सुसंस्कारी बन जायें और उन बेचारे निर्दोष बच्चों के जीवन से चिड़चिड़ापन चला जाय। ʹआई लव यूʹ – यह गंदी आदत चली जाय।

आपको मैं ૐकार का जप करने की रीति बताता हूँ, वह अपने बच्चे-बच्चियों को सिखाओ। उन्हें इकट्ठा करके बोलो कि ʹૐकार के जप से परीक्षा में अच्छे अंक आयेंगे, यादशक्ति बढ़ेगी तथा तुमको भगवान भी प्रेम करेंगे और लोग भी प्रेम करेंगे।ʹ

बड़ी उम्रवाले भी इसे करेंगे तो लाभ होगा। यह प्रयोग सभी के लिए लाभदायी है।

लम्बा श्वास लो। उसमें ʹૐʹ का भाव भरो, ʹमैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं। मैं किसी से राग-द्वेष न करूँ, किसी का बुरा न सोचूँ और बुरा न करूँ।ʹ आज से मैं संकल्प करता हूँ, ʹमैं प्रभु का हूँ। प्रभु के नाते सबका मंगल, ૐ शांति….ʹ- यह मन में विचार करो। श्वास भीतर रोककर होंठ बंद रखें और कंठ से ૐकार का जप करते हुए गर्दन को ऊपर नीचे करें – ऐसा रोज दो बार करें। इससे कंठ तो साफ-सुथरा व पवित्र होगा, हृदय भी पवित्र होगा। जो ध्यान-भजन, सेवा पूजा करते हैं वह भी दस गुना प्रभावशाली बन जायेगा। समझते हो मोहन ?…. इस प्रकार समझाकर बच्चों को प्रोत्साहित करें।

ૐकार मंत्र जपने से पहले प्रतिज्ञा करनी होती हैः ʹૐकार मंत्रः, गायत्री छंदः, भगवान नारायण ऋषिः, अंतर्यामी परमात्मा देवता, अंतर्यामी प्रीत्यर्थे, परमात्मप्राप्त अर्थे जपे विनियोगः।

कानों में उँगलियाँ डालकर लम्बा श्वास लो। जितना ज्यादा श्वास लोगे उतने फेफड़ों के बंद छिद्र खुलेंगे, रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी। फिर श्वास रोककर कंठ में भगवान के पवित्र, सर्वकल्याणकारी ૐकार का जप करो। मन में ʹप्रभु मेरे, मैं प्रभु काʹ बोलो, फिर मुँह बंद रख के कंठ से ૐ…. ૐ…. ૐ… ओઽઽઽम्… का उच्चारण करते हुए श्वास छोड़ो। जप से बहुत फायदा होता है। और ʹૐʹ भगवान का नाम है। अंतर्यामी भी खुश होंगे। यह प्रयोग दस बार करवाओ। फिर कानों में से उँगलियाँ निकलवा दीं। इतना करने के बाद शाँत बैठ गये। होंठों से जपो – ʹૐ ૐ प्रभु जी ૐ, आनंद देवा ૐ, अंतर्यामी ૐ… तुम दूर नहीं हो, दुर्लभ नहीं हो, परे नहीं हो, पराये नहीं होʹ – दो मिनट करना है। फिर हृदय से जपो – ૐ शांति… ૐ आनंद…. ૐૐૐ…ʹ

सुमिरन ऐसा कीजिये खरे निशाने चोट।

मन ईश्वर में लीन हो हले न जिह्वा होठ।।

जीभ मत हिलाओ, होंठ मत हिलाओ, हृदय से ʹૐआनंद, ૐ शांति…. ૐૐૐ….ʹ, अब कंठ से जप करना है। श्रीकृष्ण ने यह चस्का यशोदाजी को लगाया था। दो मिनट करो, ʹૐૐૐ… मैं प्रभु का, प्रभु मेरे….ʹ आनंद आयेगा, रस आयेगा। शुरु में भले आपको थोड़ा कम आनंद आये लेकिन फिर बढ़ता जायेगा, सूझबूझ, स्वभाव सँवर जायेगा। और इसका चस्का जिनको भी लगेगा उनके सम्पर्क में आने वाले स्वाभाविक ही भारतीय संस्कृति के भक्त बन जायेंगे। इसको केवल व्यापक करना है, और क्या है ! हम भी करेंगे और आप भी करो तथा अपने पड़ोस में कराओ। जब ૐकार मंत्र के जप का प्रयोग करायें तब गौचंदन या गूगल धूप कर सकें तो ठीक है, नहीं तो ऐसे ही करायें। विद्युत का कुचालक कम्बल, कारपेट आदि का आसन हो।

तुम लोग बच्चों से यह प्रयोग करवाओ, फिर बच्चों के जीवन में चार चाँद न लगें तो मेरी जिम्मेदारी ! शुरु-शुरु में चस्का डालो, फिर बच्चे खुद ही चालू कर देंगे। अपने बेटे-बेटियों को, पड़ोस के बेटे-बेटियों को यह प्रयोग जरूर सिखाओ तो उऩके जीवन में नित्य उत्सव, नित्य श्री और नित्य मंगल होने लगेगा। बच्चे खुश रहेंगे, माँ-बाप की बात को टालकर बॉयफ्रैंड-गर्लफ्रैंड बनाने की गंदी आदत से बच जायेंगे, नेक बनेंगे और माँ-बाप का भी मंगल होगा।

(टिप्पणीः इस प्रयोग को आश्रम की विडियो मैगजीन ʹऋषि दर्शनʹ, नवम्बर 2012 में देख सकते हैं)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2013, पृष्ठ संख्या 4,5,7 अंक 242

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राम जी ने कराया बीमा – पूज्य बापू जी


14 फरवरी ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ विशेष)

राम जी रावण को तीरों का निशाना बनाते हैं और रावण का सिर कटता है, फिर से लगता है क्यों उसे वरदान मिला था। लेकिन रावण दंग रह गया कि जब वह रामजी पर बाण छोड़ता तो बाण रामजी की तरफ जाते-जाते उनके सिर में लगता ही नहीं था। राम जी के सिर की तरफ रावण का बाण जाये ही नहीं ! रावण सोचे-सोचे…. ʹआखिर क्या है, क्या है ?….ʹ शिवजी ने प्रेरणा की कि इनके सिर का तो बीमा किया हुआ है। राम जी तो अपने सिर का बीमा करा चुके थे और रावण का बीमा था नहीं !

क्या बीमा है ? दुनिया के सारे विद्यालय-महाविद्यालय, सारे विश्वविद्यालयों द्वारा प्रमाणपत्र प्राप्त करके ट्रक भरकर घूमो तो भी उतना फायदा नहीं होता जितना सत्संग से ज्ञान और सच्चा सुख मिलता है। रामजी ने बीमा क्या करवाया था, पता है ? शिवाजी ने भी बीमा कराया था। रामी रामदास का भी बीमा था।  मेरे गुरुदेव भगवत्पाद लीलाशाहजी बापू ने भी बीमा कराया था। मैंने भी बीमा कराया है। अब तुम ढूँढते रहो किधर बीमा कराते हैं ? कैसे बीमा होता है ? जरा सोचो। अरे….

प्रातःकाल उठि कै रघुनाथा।

मातु पिता गुरु नावहिं माथा।।

(श्रीरामचरितमानस)

जैसे राम जी प्रातःकाल उठकर माता पिता और गुरु को प्रणाम करते, मत्था नवाते तो ʹपुत्र ! चिरंजीवी भव। यशस्वी भव।ʹ आशीर्वाद मिलता। माँ-बाप और गुरु के आशीर्वाद से बड़ा कोई बीमा होता है क्या ? तो तुम भी बीमा करा लिया करो और तुम्हारे बच्चों को भी यह बात बताना कि रामजी ने ऐसा बीमा करा लिया था।

14 फरवरी ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ से बहुत-बहुत सूखे हृदय रसमय हुए हैं, उजड़ी उमंगे फिर पल्लवित हुई हैं। काँटे फूल में बदल गये, वैर प्रीत में बदल गये। हार जीत में बदल गयी और महाराज ! मौत मोक्ष में बदल जाती है माता-पिता और गुरुओं के संग और आशीर्वाद से।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2013, पृष्ठ संख्या 5, अंक 242

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ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ पर्व के प्रवर्तक एवं ʹप्रेरणा सभाʹ के अध्यक्ष – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू


कोई ईसाई नहीं चाहता कि ʹमेरी कन्या लोफरों की भोग्या हो जाय।ʹ कोई मुसलमान नहीं चाहता, ʹमेरी कन्या हवसखोरी की शिकार हो जायʹ और हिन्दू तो कैसे चाहेगा !

दिन-दहाड़े युवक युवती को, युवती युवक को फूल देगी, ʹआई लव यूʹ बोलेगी, एक-दूसरे को स्पर्श करेंगे तो रज-वीर्य नाश होगा, अकारण चश्मा आ जायेगा, जवानी खो देंगे। और लाखों—लाखों नहीं, करोड़ों-करोड़ों ऐसे युवक-युवतियों को तबाह होते देख मेरा हृदय द्रवित हो गया।

मैंने एकांत में सोचा कि इसका उपाय क्या है ? तो उपाय सुझाने वाले ने सुझा दिया कि ʹगंदगी से लड़ो नहीं, अच्छाई रख दो।ʹ इसलिए मैंने विचार रखा कि ʹवेलेन्टाइन डेʹ के विरोध की अपेक्षा 14 फरवरी के दिन गणेश जी की स्मृति करो और ʹमातृ-पितृ पूजन दिवसʹ मनाओ। आपका तीसरा नेत्र खुल जाय, सूझ-बूझ खुल जाये। और इस अच्छाई की सुवास तो ईसाइयों तक भी पहुँच रही है। कई मेरे ईसाई भक्त भी सहमत हैं, मुसलमान भी कर रहे हैं लेकिन इसको अभी और व्यापक बनाना है।

विश्व चाहता है, सभी चाहते हैं – स्वस्थ, सुखी, सम्मानित जीवन। बुद्धि में भगवान का प्रकाश हो, मन में प्रभु का प्रेम, मानवता का प्रेम हो, इन्द्रियों में संयम हो, बस हो गया ! आपका जीवन धनभागी हो जायेगा।

अपने पास खजाना है और यह खजाना विश्वात्मा की तरफ से सभी को मिले, इसीलिए मैंने 7 साल से यह प्रयत्न शुरु किया। अब इन संतों का साथ-सहकार मिलता जा रहा है। मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि सभी संत अपने-अपने भक्तों को प्रेरणा देंगे। वेलेंटाइन डे के निमित्त करोड़ों-करोड़ों की शराब बिकती है। हजारों-हजारों लड़के-लड़कियाँ वेलेंटाइन डे के दिन भाग जाते हैं। यह विकृति विदेशों में तो है लेकिन अपने देश में भी व्याप रही है, इसलिए इन संतों को श्रम देने का हमने साहस किया और संत भारत के युवक-युवतियों की जिंदगी बरबादी से बचे-ऐसे दैवी कार्य में सहभागी होने के लिए कहाँ-कहाँ से श्रम उठाकर आये हैं। इन सभी संतों का हम हृदयपूर्वक खूब-खूब धन्यवाद करते हैं, आभार मानते हैं क्योंकि संतों को भारत के लाल-लालियाँ तो अपने लगते हैं, विश्व के युवक-युवतियाँ भी अपने ही लगते हैं। पूरे विश्व के युवक-युवतियों की रक्षा हो, यही वैदिक संस्कृति है। किसी मजहब, किसी पंथवाली संस्कृति इन महानुभावों की नहीं है। ये मेरे हृदय की व्यथा अपनी व्यथा मानकर दौड़े-दौड़े चले आये हैं। ʹवेलेंटाइन डेʹ के नाम पर शराब पीना, आत्महत्या करना इसके आँकड़े सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन सभी संतों को आशाराम बापू के साथ स्नेह है, बापू के उद्देश्य के साथ भी इनको बड़ा भारी स्नेह है इसलिए जरा-से आमंत्रण से चले आये हैं।

साँच को आँच नहीं और झूठ को पैर नहीं।

यह झूठी परम्परा (वेलेंटाइन डे) मनाने वालों की दुर्दशा से हमारा हृदय व्यथित होता है, लाखों का हृदय व्यथित होता है। तो देर-सवेर यह गंदी परम्परा हमारे भारत से जाय…. इसलिए मानवमात्र के कल्याण का उद्देश्य रखकर ʹप्रेरणा-सभाʹ पिछले साल भी हुई और इस बार भी हुई और होती रहेगी। अमेरिका में 100 जगहों पर पूजन दिवस के बड़े-बड़े कार्यक्रम होंगे। बच्चे अपने माता-पिता का पूजन करें, तिलक करें, प्रदक्षिणा करें और माँ बाप बच्चों को तिलक करें और हृदय से लगायें। वैसे भी माँ-बाप का हृदय तो उदार होता है, वे ऐसे ही कृपा बरसाते रहते हैं ! लेकिन जब बच्चा कहता है न, “माँ ! तुम मेरी हो न ?” तो माँ की खुशी का ठिकाना नहीं रहता, “पिता जी ! तुम मेरे हो न ?” तो पिताजी का हृदय द्रवित हो जाता है। अगर ʹमातृ-पितृदेवो भवʹ करके नमस्कार करेगा तो माँ-बाप का आत्मा भी तो बच्चों पर रसधार, करूणा-कृपा बरसायेगा एवं मेरे भारत की कन्याएँ और मेरे भारत के युवक महान बनेंगे।

हम तो चाहते हैं कि ईसाइयों का भी मंगल हो, मुसलमानों का भी मंगल हो, मानवता का मंगल हो। इसलिए इन मंगल संदेश देने वाले संतों का साथ-सहकार लेकर लोगों के जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जैसे दिव्य गुण आयें, ऐसा यह प्रयास किया है। जिनके जीवन में ये छः सदगुण होते हैं, परमात्मा पद-पद पर उनको सहायता करता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2013, पृष्ठ संख्या 11,12 अंक 241

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