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Prerak Prasang

सुविधा से नहीं, सादगी से उन्नति – पूज्य बापू जी


धर्म के रास्ते पर प्रतिकूलताएँ, विरोध आयें और व्यक्ति डटा रहे तो वे सुषुप्त शक्तियाँ जगाने में बड़ा काम करते हैं ।

बालक 5-6 साल के और जनेऊ मिल गया, मुंडन हो गया राम, लखन, भरत, शत्रुघ्न का और रानियाँ देखती रह गयीं कि ‘हमारे मासूम अब गुरुकुल में जायेंगे ।’ रथ तो तैयार है पर गुरुजी बोलते हैं- “नहीं ।”

दशरथ जी बोलते हैं- “नहीं !”

“गुरुकुल में जाने वाले बालक नंगे पैर ही जायेंगे ।”

“तो गुरुजी ! क्यों नंगे पैर…?”

बोलेः “अरे, प्रतिकूलता नहीं सहेगा ? जो राजा है उसे कभी जंगल में जाना पड़े, भूखा रहना पड़े, प्यासा रहना पड़े…. अगर जीवन की शुरुआत में ही खोखला रह गया, सुविधावाला रह गया तो विघ्न-बाधाओं के समय मनुष्य टूट जायेगा ।”

और राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न भिक्षा माँगते हैं, लो ! गुरु जी के लिए भी ले जाते हैं और अपने लिए भी । गुरुकुल की ऐसी परम्परा ! तो निकले भी ऐसे महजबूत हो के !

अभी तो जितना बड़ा व्यक्ति उतनी कमजोर संतान । लाख-लाख रुपये शुल्कवाले स्कूल में गये । सुबह 7 बजे इडली-डोसा आदि नाश्ता, फिर 9 बजे चाय-कॉफी अथवा पहले चाय-कॉफी…. हर डेढ़ दो घंटे में चटोरे लोगों को खिलाते रहें, लाख रूपये साल का लेना है । ‘बच्चे खुश रहें…’ फिर ये बच्चे खुश रहकर क्या करेंगे आगे चल के ? खोखले हो जायेंगे, विलासी हो जायेंगे, भ्रष्टाचारी हो जायेंगे, शोषक हो जायेंगे । जो ज्यादा शुल्क दे-दे के कहलाने वाले बड़े स्कूलों में टिपटॉप में पढ़ते हैं वे समाजशोषक पैदा होंगे, समाजपोषक नहीं होंगे । ज्यादा खर्चा करके पढ़ के कोई बड़े व्यक्ति के बेटे सचमुच में बड़े नहीं होते हैं, बड़े भ्रष्टाचारी बनते हैं, बड़े शोषक बनते हैं । जो कम खर्च में गरीबी और कठिनाइयों से पढ़ा-लिखा और गुजरा है वही दूसरे की कठिनाइयाँ मिटायेगा और वही समाज की थोड़ी बहुत सेवा कर पायेगा । जो  चटोरे बन कर पढ़ेंगे और प्रमाणपत्र लेंगे वे समाज में जा के क्या काम करेंगे !

आने वाले दिन बहुत खतरनाक आ रहे हैं । बड़े लोगों के बेटे इतने खोखले बनते जा रहे हैं कि उनसे आने वाला समाज अधिक शोषित हो जायेगा और वे बड़े लोग भी प्रकृति के ऐसे-वैसे उतार-चढ़ाव में बेचारे रगड़े जायेंगे । यह युग बड़ा तेजी से परिवर्तन लायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 18 अंक 339

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जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है मितव्ययिता – पूज्य बापू जी


प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्याम बिरला का लड़का, जिसकी मँगनी हो चुकी थी, दीवाली के दिन उसका ससुर आया था । वह लड़का मोमबत्ती जला रहा था तो हवा में एक तीली बुझ गयी तो उसने दूसरी जलायी, दूसरी भी बुझ गयी । मोमबत्ती को सँभाल के तीसरी तीली जलायी, हवा जोरों की थी, वह भी बुझ गयी । जब चौथी तीली जलाने गया तो घनश्याम बिरला ने थप्पड़ मार दिया मँगनी किये हुए बेटे को । जिसरी लड़की के साथ मँगनी हुई थी वह वहीं खड़ा था । अपने जमाई को थप्पड़ लगा तो उसने कहाः “आप क्यों अपने जवान बेटे को दीवाली के दिन मारते हो ?”

घनश्याम बोलेः “3-3 तीली बिगाड़ दीं । गधा है, लड़का है क्या !”

“आप तो घनश्याम बिरला है, आपके पास अरबों-खरबों रुपये की सम्पत्ति है । 3 तीली क्या, 3 माचिस भी बिगड़ जायें तो आपको क्या फर्क पड़ता है ?”

“जो 3 तीली का मितव्ययिता से सदुपयोग नहीं करता है वह दूसरी चीज कैसे सँभाल सकता है ! चीज छोटी हो चाहे बड़ी हो, जो दुरुपयोग करता है, बिगाड़ करता है वह दुष्ट है ।”

कोई आधा गिलास पानी भी गिरा देता तो गाँधी जी उसे टोक देते । उनके पास जो पत्र आते उनका कोरा भाग वे काटकर रख लेते और उसी पर चिट्ठियाँ लिखते थे । मितव्ययिता होनी चाहिए । मेरे गुरु जी भी मितव्ययिता से रहते थे । मेरे जो चेले हैं उनके नौकर लोग भी जहाज में महँगा टिकट लेकर बिजनेस क्लास में बैठते हैं लेकिन मैं जहाजों में यात्रा करता हूँ तो इकोनॉमी क्लास में ही बैठता हूँ सस्ता टिकट लेकर । हम 2100 में बैठते हैं और वे 5-6 हजार में बैठते हैं और एक ही समय पर उतरते हैं । बिगाड़ क्यों करना ? बचा पैसा किसी के काम आये ।

तो भारतीय संस्कृति परहित से भरपूर है और इस संस्कृति का उद्देश्य है कि तुम इस शरीर में सदा के लिए नहीं हो, यह शरीर छोड़कर मरना पड़ेगा तो मरने के पहले अपनी अमरता का आनंद ले लो, अपनी अमरता का साक्षात्कार कर लो, अपनी महानता का अनुभव कर लो ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2021, पृष्ठ संख्या 10 अंक 339

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…तो जो भी काम तुम करोगे उसमें सफलता मिलेगी


एक टिटिहरी ने अपने अंडे दे रखे थे समुद्र के किनारे । एक दिन समुद्र की लहर आयी और उसके अंडों को बहाकर ले गयी । अंडे जब बह गये तो उसने तुरंत काम शुरु कर दिया । क्या काम शुरु किया ? अपनी चोंच में समुद्र का पानी भर के दूर ले जाकर सूखी जमीन पर डाले । ऐसा नहीं कि टिटिहरी बैठ के रोवे और अन्य पक्षी मातम-पुर्सी करने (सांत्वना देने) को आवें तो सबसे बात करे । वह माने ही नहीं, बिल्कुल दृढ़ निश्चय कर चुकी है कि हम समुद्र को सुखा देंगे !

अब आप सोचो कि नन्हा सा पक्षी समुद्र को भला कैसे सुखा सकता है ? लेकिन उसके मन में इतना उत्साह, इतनी दृढ़ता भर गयी थी, इतना पौरूष, इतना प्रयत्न भर गया था उसके रोम-रोम में कि वह किसी के कहने से, किसी के समझाने से बिल्कुल मानती ही नहीं थी । वह तो बस समुद्र का पानी उठावे और ले जाकर बाहर फेंक दे । अब तो देश-देश के पक्षी आने लग गये कि हमारा एक भाई-बंधु इस संकल्प से समुद्र के साथ युद्ध कर रहा है कि ‘समुद्र को सुखा दें !’ वे सब भी चोंच में पानी भर के बाहर फेंकने लगे । इतना बड़ा संकल्प, एक चिड़िया के मन में और इतना बड़ा उत्साह, इतनी दृढ़ता ! यह समाचार पहुँचा गरूड़ जी के पास, पक्षियों के राजा गरुड़ । तो उन्होंने कहाः “लाखों-करोड़ों पक्षी लगे हैं समुद्र को सुखाने में । चलो, मैं देखता हूँ ।”

इसका अर्थ यह है कि मनुष्य जब अपने काम में दृढ़ता के साथ लग जाता है तो उसके सहायक भी मिल जाते हैं, उसको युक्ति भी मिल जाती है, उसको बुद्धि भी मिल जाती है । मनुष्य को दृढ़ता से अपने काम में लगने भर की देर है । बुद्धि बताने वाले आ जाते हैं, मदद करने वाले आ जाते हैं । गरुड़ जी आये । उन्होंने सब बात सुनी और बोलेः “अच्छा ! हे समुद्र ! हमारी इतनी प्रजा, इतने पक्षी संलग्न होकर तुम्हें सुखाना चाहते हैं और तुम इनको तुच्छ समझते हो कि ‘ये हमारा क्या करेंगे ?’ सो देखो, हम तुम्हें बताते हैं ।” और समुद्र के ऊपर उन्होंने दो-चार बार अपने पंख को मारा तो समुद्र उद्विग्न हो गया । टिटिहरी के जो अंडे थे उनको ले करके वह सामने उपस्थित हुआ । टिटिहरी के अंडे वापस आ गये ।

इसका अभिप्राय यह है कि बड़े-से-बड़ा काम करने का भी संकल्प करो और शक्तिभर उसके लिए प्रयास करो, तुम्हारे मददगार आवेंगे, तुम्हें बुद्धि मिलेगी, जो भी तुम काम करोगे उसमें तुम्हें सफलता मिलेगी । केवल उत्साह भंग नहीं होना चाहिए ।

इसलिए भगवान कहते हैं- “औ मेरे प्यारे बुद्धिशाली पुरुषो ! तुम उठो, जागो और अपने जीवन में अग्नि प्रज्वलित करो । तेजस्वी बनो, प्रकाशमान बनो । अपने को किसी भी अवस्था में निरुत्साह मत करो । आगे बढ़ो, आगे बढ़ो !”

बड़े-से-बड़ा काम है अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को पाना अर्थात् अपने आत्मदेव का साक्षात्कार करना । इसमें तत्परता से लग जाना चाहिए और रुकना नहीं चाहिए । पूज्य बापू जी के सत्संगामृत में आता हैः “हे मानव ! जो तेरा आत्मदेव है उसको पाये बिना तू कहीं रुक मत ! चरैवेति… चरैवेति… आगे बढ़, आगे बढ़….. ॐ….ॐ….ॐ…..

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2021, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 338

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