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हम सब एकजुट होकर इस षडयन्त्र का सामना करें – आचार्य बालकृष्ण


हम जानते हैं कि हमारे सामने, बापू जी के सामने एक समस्या विकराल रूप में खड़ी है। निश्चित रूप से जो भारतीय संस्कृति, परम्परा के प्रति रूचि या निष्ठा रखने वाले हैं, वे समझते हैं कि सच्चाई क्या है और बापू जी के विरुद्ध में षडयन्त्र कितना है। तो हमें भी सच्चाई और षडयन्त्र को समझने का प्रयास करना चाहिए। हमारी परम्परा बहुत उदारतापूर्ण रही है और हमारी संस्कृति से जुड़े हुए सामान्य लोगों ने भी कभी किसी को न तो पीड़ा दी, न उनको सताया तो उनके जो मार्गदर्शक हैं, पथप्रदर्शक हैं उनके द्वारा किसी को पीड़ा दिया जाना – ऐसा कैसे हो सकता है ! जो साधु-संत हैं वे तो कभी भी समाज के अहित का नहीं सोचते हैं परंतु जब वे समाज का हित करते हैं तो बहुत सारे ऐसे तत्त्व हैं जिनको वह रास नहीं आता है। हमारे समाज, हिन्दू संस्कृति की परम्पराओं, मूल्यों और आदर्शों का उत्थान होता हुआ शायद वे आसुरी शक्तियाँ देखना नहीं चाहती हैं और ऐसी शक्तियाँ विभिन्न तरह के षडयन्त्र करती हैं। षडयन्त्र करने के लिए वे एक-एक संत को चुन के शरारतपूर्ण हरकतें करती हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम संगठनात्मक रूप से एक हों क्योंकि उस संगठन को भेदने की शक्ति उन दुष्प्रचारकों और आसुरी शक्तियों में कभी भी  नहीं होती। इसलिए आज समय आ गया है कि हम सभी, हमारी सनातन वैदिक हिन्दू परम्परा से जुड़ी जितनी भी संस्थाएँ और संगठन हैं, जितने भी साधु-महात्मा हैं वे सब एकजुट हों और इस तरह के जितने भी षडयन्त्र हैं, उनके विरुद्ध  ललकारने के सामर्थ्य से मैदान में उतरें तथा सुनियोजित ढंग से उनको चुनौती देते हुए दुष्प्रचार की काट करें।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 20, अंक 251

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बापू जी को जेल क्यों ? – वरिष्ठ पत्रकार हबीब खान


आज हर समाचार चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में सुबह से लेकर रात तक आशारामजी बापू के नाम का ही झुनझुना बजा रहा है। लेकिन देश की कई महत्त्वपूर्ण समस्याओं से संबंधित समाचारों का ‘ब्लैक आउट’ (बिल्कुल गायब किया जाना) आखिर क्यों ? बड़े-बड़े नेताओं को देश-विदेश के न्यायालयों द्वारा समन्स और नोटिस जारी होने की खबरें मीडिया से ब्लैक आउट क्यों रहीं ?

आशारामजी बापू की गिरफ्तारी कुछ और नहीं एक पूर्वनियोजित षडयन्त्र है। गिरफ्तारी के बाद आरोप लगाने वाले लड़की की सहेली का बयान पी-7 न्यूज चैनल पर दिखाया गया कि ‘मेरी सहेली का कहना है कि मेरे से जैसा बुलवाते हैं’, वैसा मैं बोलती हूँ। और लड़की की शिकायत के आधार पर दर्ज पुलिस एफ आई आर में बलात्कार का आरोप नहीं है। इस विषय में ‘इंडिया टीवी’ न्यूज चैनल पर दिखाया गया जोधपुर पुलिस कके डीसीपी अजय पाल लाम्बा का बयान है कि ‘एफ आई आर में बच्ची ने 376 (बलात्कार) का आरोप नहीं लगाया है। हम बार बार यह कह रहे हैं कि मेडिकल रिपोर्ट जो दिल्ली से आयी है उसमें भी किसी भी तरह से 376 के आरोप के पक्ष में कोई सबूत नहीं है।’ मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की पवित्र है, फिर भी बापू जी को जेल क्यों ? बापू जी के सेवादार शिवाभाई को बापू की फर्जी सेक्स सीडी की बात कबूलवाने के लिए तीसरी डिग्री के रिमांड का  इस्तेमाल करके पुलिस कका उन पर खूब दबाव देना, एक के बाद दूसरा आरोप लगना – क्या यह षडयन्त्र नहीं है ? आशारामजी बापू की गिरफ्तारी कुछ और नहीं, निशाना है 2014 की चुनावी रणनीति का कि ‘जनता के दिलो-दिमाग में साधु-संतों के विरूद्ध इतना जहर भर दो कि चुनावों में जनता साधु-संतों पर विश्वास न करे।’ आखिर मीडिया और सरकार केवल हिन्दुओं के ही विरुद्ध इतने बलशाली क्यों हो जाते हैं ? क्या अन्य धर्माचार्यों पर कोई आरोप नहीं लगते ? उनको गिरफ्तार करने की न सरकार में ताकत है और न ही मीडिया में उन पर चर्चा करने की हिम्मत।

मीडिया की आँखें तब भी नहीं खुलीं जब 7 सितम्बर 2013 को फर्जी सेक्स स्केंडल से बाइज्जत बरी होने वाली स्वामी नित्यानंद जी के संदर्भ में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘स्टार विजय’ और उसके उप चैनल को 7 दिनों तक हर एक घंटे के बाद माफीनामा चलाने का आदेश दिया था।

वास्तव में आशारामजी बापू के विरुद्ध न ही बलात्कार का मामला है और न ही किसी प्रकार के यौन-शोषण का। आशारामजी बापू एक सफल योजना के तहत विश्वव्यापी स्तर पर विरोध कर रहे थे हिन्दुओं के धर्मांतरण का। इसी प्रकार हिन्दुओं के श्रद्धेय शंकराचार्य को गिरफ्तार किया गया था, उन पर आरोप था खून का। शंकराचार्य जी भी धर्मांतरण का विरोध अपने स्तर पर कर रहे थे। उस समय भी मीडिया में अनर्गल बकवास, चर्चाएँ होती थीं लेकिन जब वे निर्दोष सिद्ध हुए तो किसी भी चैनल ने माफी  तक नहीं माँगी।

वास्तविकता यही है कि जो भी ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाये जा रहे धर्मांतरण में रूकावट बनेंगे, सरकार उन्हें जनता मे जलील करने का काम करती रहेगी और मीडिया कंधे-से-कंधा  मिलाकर हिन्दू-विरोधियों का साथ देता रहेगा

साध्वी प्रज्ञा सिंह और स्वामी असीमानंद को इतने वर्षों से जेलों में यातनाएँ दे रहे थे लेकिन आरोप आज तक  सिद्ध नहीं कर पाये। आतंकवादियों को उनकी पसंद का खाना परोसा जा रहा है और साध्वी प्रज्ञा के भोजन में अंडा मिलाकर उनकी सात्विकता  अपमानित करने कौन-सा कानून है, कौन सी राजनीति है ?

उन पत्रकारों को धन्यवाद है जो जनता की आँखें खोलने के लिए ऐसे पक्ष को भी जनता के सामने रखते हैं जो प्रायः अधिकांश मीडिया द्वारा ब्लैक आउट कर दिये जाते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जब 6 सितम्बर को एक न्यूज चैनल ने आशारामजी बापू के विषय पर चर्चा में एक वरिष्ठ पत्रकार को भी बुला लिया। मेहमान पत्रकार ने पूछा कि ‘फलाने नेता की सेक्स विडियो जब सभी चैनलों को भेजी गयी थी तो उसे दिखाने की क्या किसी की हिम्मत हुई ? तब कहाँ गयी थी तुम्हारी पत्रकारिता ? जब अन्य धर्मों में पनप रहे अपराधों की बात आती है तब क्यों नहीं खुलता तुम्हारा मुँह ?’

कहते हैं, ‘आशाराम बापू – बलात्कारी, स्वामी नित्यानंद – सेक्स स्केण्डल वाले, जयेन्द्र सरस्वतीजी – हत्यारे, साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानंद -आतंकवादी’ यानी जो साधु-संत धर्मांतरण और काले धन पर बोलेगा, इसी तरह अपमानित होता रहेगा।

आशारामजी बापू के खिलाफ साजिश की योजना का पर्दाफाश शीघ्रातिशीघ्र होना चाहिए और जनता से अपील की है कि वे सत्य उजागर करने वाले न्यूज चैनल जैसे ए2जेड’, सुदर्शन आदि ही देखें, जिससे बिकाऊ, देशद्रोही, भ्रष्ट मीडिया की टीआरपी बढ़ाने का अवसर न मिल सके।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 16,17, अंक 251

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आश्रम का कुप्रचार करने वालों को सर्वोच्च न्यायालय का करारा तमाचा


5 वर्ष पूर्व जुलाई 2008 में संत श्री आशारामजी गुरुकुल, अहमदाबाद में पढ़ने वाले दो बच्चों की अपमृत्यु के मामले को लेकर आजकल कुछ चैनलों पर समाज को गुमराह करने वाली झूठी खबरें चलायी जा रही हैं, जबकि सच्चाई इस प्रकार हैः

इस मामले में 9-11-2012 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में आश्रम के सात साधकों पर आपराधिक धारा 304 लगाने की गुजरात सरकार की याचिका को खारिज कर दिया था। मामले की सीबीआई से जाँच कराने की माँग को भी ठुकरा दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात उच्च  न्यायालय के फैसले को मान्य रखा था।

न्याय सहायक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल), शव परीक्षण (पोस्टमार्टम) आदि कानूनी एवं वैज्ञानिक रिपोर्टें बताती हैं कि बच्चों के शरीर के अंगों पर मृत्यु से पूर्व किसी भी प्रकार की चोटें नहीं थीं। दोनों ही शवों में गले पर कोई भी जख्म नहीं था। सिर के बालों का मुंडन या हजामत नहीं की गई थी। बच्चों के साथ किसी ने सृष्टिविरुद्ध कृत्य (सेक्स) नहीं किया था। बच्चों के शरीर में कोई भी रासायनिक विष नहीं पाया गया।

एफएसएल रिपोर्ट में स्पष्टरूप से उल्लेख किया गया है कि दोनों बच्चों के शवों पर जानवरों के दाँतों के निशान पाये गये अर्थात् शवों के अंगों को निकाला नहीं गया था अपितु वे जानवरों द्वारा क्षतिग्रस्त हुए थे। दोनों बच्चों पर कोई भी तांत्रिक विधि नहीं की गयी थी। पुलिस, सीआईडी क्राइम और एफएसएल की टीमों के द्वारा आश्रम तथा गुरुकुल की बार-बार तलाशी ली गयी, विडियोग्राफी की गयी, विद्यार्थियों, अभिभावकों तथा साधकों से अनेकों बार पूछताछ की गयी परंतु उनको तांत्रिक विधि से संबंधित कोई सबूत नहीं मिला।

जाँच अधिकारी द्वारा धारा 160 के अंतर्गत विभिन्न अखबारों एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों तथा सम्पादकों को उनके पास उपलब्ध जानकारी इकट्ठी करने के लिए ‘समन्स’ दिये गये थे। ‘सूचना एवं प्रसारण विभाग, गांधीनगर’ द्वारा अखबार में प्रेस विज्ञप्ति भी दी गयी थी कि ‘किसी को भी आश्रम में यदि किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि अथवा घटना होती है – ऐसी जानकारी हो तो वह आकर जाँच अधिकारी को जानकारी दे।’ यह भी स्पष्ट किया गया था कि ‘जानकारी देने वाले उस व्यक्ति को पुरस्कृत किया जायेगा एवं उसका नाम गुप्त रखा जायेगा।’ इस संदर्भ में कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी जाँच आयोग में बयानों के दौरान आश्रम पर झूठे, मनगढंत आरोप लगाने वाले लोगों के साथ झूठ का भी विशेष जाँच में पर्दाफाश हो गया। लगातार 5 वर्षों तक जाँच करने के पश्चातत 1 अगस्त 2013 को न्यायमूर्ति श्री डी.के.त्रिवेदी जाँच आयोग ने अपनी जाँच रिपोर्ट गुजरात सरकार को सौंप दी है। कुछ मीडिया में आयी खबर के अनुसार इस रिपोर्ट में आश्रम पर लगाये गये झूठे आरोपों को नकार दिया गया है और आश्रम को क्लीन चिट दी गयी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 9, अंक 251

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