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Rishi Prasad 268 Apr 2015

निष्पक्ष न्याय और मीडिया


(‘मीडिया ट्रायल एंड इट्स इम्पैक्ट ऑन सोसायटी एंड ज्यूडिशियल सिस्टम विषय पर राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सुनील अम्बवानी के व्याख्यान के सम्पादित अंश, संदर्भः राजस्थान पत्रिका’)
‘व्हॉट इज़ ए फेयर ट्रायल ?’ (निष्पक्ष ट्रायल क्या है ?) हर आरोपित को फेयर (निष्पक्ष) ट्रायल का अधिकार है। निष्पक्ष ट्रायल से मतलब है किसी भी अपराध की पुलिस या अन्य किसी एजेंसी जैसे सीबीआई, सीआईडी द्वारा निष्पक्ष जाँच-पड़ताल, आरोप-पत्र बनाने का पारदर्शी और स्वच्छ तरीका, रिपोर्ट में विश्वसनीय और मानने योग्य सबूत, आरोपित का बचाव करने का अधिकार, सबूतों को जानने और क्रॉस एग्जामिन करने का अधिकार, अपना पक्ष रखने का अधिकार। ये सभी निष्पक्ष ट्रायल के मुख्य बिंदु हैं। अगर कोई इन चीजों में दखलंदाजी करता है तो वह न्याय-प्रक्रिया में दखलंदाजी मानी जाती है। यहाँ न्याय-प्रक्रिया का अर्थ ही स्वतंत्र और निष्पक्ष ट्रायल है।
अगर कोई आरोपी सम्माननीय है तो उसके सम्मान का क्या ? आप जानते हैं कि न्याय-सिद्धान्त है कि चाहे हजार दोषी छूट जायें पर एक निर्दोष को सज़ा नहीं होनी चाहिए। यह भी सिद्धान्त है कि संदेह के आधार पर सज़ा हो। मीडिया के कारण न्यायाधीश सुपरविजन के प्रभाव में आ जाता है। अगर कोई विश्वसनीय सबूत न हो और वह केस खारिज कर देता है तो मानो फँस गया क्योंकि वह अपने मित्रों और साथियों की नजर में दोषी है। सुनने को मिलता है, ‘अरे, तुमने उसको छोड़ दिया !’ आप बिना विश्वसनीय, प्रामाणिक और उचित सबूतों के आधार पर किसी को दोषी तो नहीं ठहरा सकते, जो आपके सिद्धान्तों में है। जब तक लोगों की मान्यता नहीं बनी है तब तक वह न्यायाधीश किसी से नहीं डरता है। लेकिन मीडिया कई मामलों में पहले ही सही-गलत की राय बना चुका होता है। इससे न्यायाधीश पर दबाव बन जाता है कि एक व्यक्ति जो जनता की नजर में दोषी है, उसको अब दोषी ठहराने की जरूरत है। न्यायाधीश भी मानव है। वह भी इनसे प्रभावित होता है। (संकलकः श्री इन्द्र सिंह राजपूत)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2015, पृष्ठ संख्या 7, अंक 268
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करिश्मा-ए-बाबा आशाराम बापू


(‘सच्चा लेखन’ समाचार पत्र की रिपोर्टिंग)
आशाराम जी बापू को जाँच हेतु एम्स ट्रॉमा सेंटर, दिल्ली ले जाया गया था। बाबा के रेलवे स्टेशने पहुँचने पर वहाँ पर कई हजार भक्त इकट्ठे हो गये। यह विचारणीय विषय है कि इतना कड़ा आरोप लगने के बाद भी आखिर बाबा को भक्त क्यों नहीं छोड़ रहे हैं ? क्या वाकई बाबा किसी विदेशी या राजनैतिक षड्यन्त्र के शिकार हो रहे हैं ? जोधपुर जेल, न्यायालय परिसर, एम्स अस्पताल, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर उपस्थित विभिन्न क्षेत्रों से आये बाबा के भक्तों व बाबा के विरोधियों से ‘सच्चा लेखन’ समाचार पत्र की टीम रू-बरू हुई। प्रस्तुत है उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंशः
भक्तों से प्रश्नः “इतना गम्भीर आरोप लगने के बावजूद आप बाबा को मानते हैं ? क्या बाबा ने आपको कुछ दिया है ?”
उत्तरः “आज से पहले भी बापू जी पर कितने ही आरोप लगे पर क्या कोई भी सत्य साबित हुआ ? ऐसे ही यह भी एक मनगढ़ंत आरोप है, उन्हें फँसाया जा रहा है। बापू जी ने कभी नहीं कहा, ‘आप मेरी पूजा करो।’ उन्होंने तो हमें दीक्षा भी भगवान के नाम की दी। बापू जी ने ही तो हमें भगवान का महत्त्व समझाया है। इसलिए हमारे लिए पहले बापू जी हैं फिर भगवान !”
प्रश्नः “आपको ऐसा क्यों लगता है कि बाबा को कोई फँसाना चाहता है ? वह कौन है और क्यों फँसाना चाहता है ?”
उत्तरः पश्चिमी सभ्यता कल्चर वाले बीड़ी, सिगरेट, पान-मसाला, मांसाहार, शराब आदि अनेकों माध्यमों से भारतवासियों को अपना गुलाम बनाकर भारत की नींव को कमजोर करना चाहते हैं। बापू जी ने समाज को इनकी हकीकत समझाकर जागृत कर दिया। इसलिए इन्होंने हमारे बापू जी के कुप्रचार पर खर्च करना शुरु कर दिया।”
विरोधियों से प्रश्नः “आपको ऐसा क्यों लगता है कि बाबा रेप के आरोपी हैं ? आप क्यों विरोध करते हैं ? क्या आपके साथ भी कभी कुछ गलत हुआ है ?”
उत्तरः “नहीं, हमने तो बस सुना है और आशाराम बापू पर पहले भी कई आरोप लग चुके हैं। बाकी वास्तविकता तो हमने कुछ नहीं देखी।”
प्रश्नः “क्या आप कोई नशा करते हैं ?”
उत्तरः “हम तो प्रतिदिन नशा करते हैं लेकिन आपको इससे क्या मतलब ?”
हमारे समक्ष ऐसे कितने ही बाबा और संत आये, जिन पर किसी प्रकार का कोई आरोप लगा तो उनके समस्त क्रियाकलाप रूक गये और उनके समर्थकों ने उनसे मुँह मोड़ लिया। पर यह बात वास्तव में आश्चर्यजनक है कि इतने गम्भीर आरोप के बावजूद भी बापू आशाराम जी के समर्थक उनका साथ छोड़ने का नाम नहीं ले रहे हैं !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2015, पृष्ठ संख्या 29, अंक 266
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यदि सजग नहीं हुए तो…..


तीन दशक पूर्व राष्ट्र विरोधी ताकतों ने कूटनीतिपूर्वक देशवासियों को भ्रमित करके ऐसी स्थिति उत्पन्न की जिससे दहेज कानून को सख्त करके 498 ए को लागू किया जा सके। नतीजा यह आया कि इसका अंधाधुंध दुरुपयोग होने लगा और 12 साल के बच्चे से लेकर वृद्धों तक लाखों निर्दोष सलाखों के पीछे पहुँच गये। आखिर सर्वोच्च न्यायालय को आदेश जारी करना पड़ा कि ‘दहेज मामले में गिरफ्तारी जाँच के बाद ही हो।’

इसी प्रकार दामिनी प्रकरण के बाद बने नये रेप कानूनों का भी दुरुपयोग हो रहा है। इस बात को देश के गणमान्य व्यक्तियों तथा न्यायालय ने भी स्वीकारा है। एक मामले की सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने कहाः “महिलाओं के प्रति अपराध से संबंधित कानूनों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।”

पूर्व केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहाः “आईपीसी की धारा 376 (रेप कानून) का दहेज उत्पीड़न से संबंधित धारा 498 ए की तरह ही गलत इस्तेमाल हो रहा है।”

एक पूर्व मुख्यमंत्री भी इस सत्य को स्वीकारते हुए बोलेः “देश में बलात्कार रोधी कानून का दुरुपयोग हो रहा है।”

निर्दोष आम नागरिकों से लेकर राष्ट्रहितैषी संत, वरिष्ठतम न्यायाधीश, मंत्री, आला अधिकारी आदि सभी इस कानून के शिकार हो रहे हैं। इसके अनेक उदाहरण ‘ऋषि प्रसाद’ पत्रिका के पिछले कई अंकों में प्रकाशित हुए हैं। कुछ अन्य उदाहरण-

नाबालिग ने लगवायी पड़ोसी पर पाक्सो की धारा

जोधपुर में एक पड़ोसी युवक ने 8वीं कक्षा की एक छात्रा को एक लड़के के साथ भागते हुए देखा था। परिजनों से इस बात को छुपाने के लिए छात्रा ने पड़ोसी युवक पर दुष्कर्म का आरोप लगाया। पुलिस ने युवक के खिलाफ पॉक्सो एक्ट की धारा भी लगा दी। लड़की ने बाद में सच्चाई स्वीकार की, युवक निर्दोष साबित हुआ।

एक केन्द्रीय मंत्री पर भी एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया था। कड़ी छानबीन के बाद पता चला कि यह षडयन्त्र माफियाओं ने रचा था।

देश व संस्कृति की सेवा में अपना सारा जीवन लगाने वाले तथा करोड़ों लोगों के जीवन में संयम-सदाचार का संचार करने वाले संत पूज्य बापू जी को भी इसी प्रकार कानून का दुरुपयोग कर बिना किसी तथ्य व सबूत के सुनियोजित षडयंत्र के तहत जेल भेजा गया है।

इसके पहले भी समलैंगिकता, अंधश्रद्धा उन्मूलन कानून, लक्षित हिंसा बिल आदि ऐसे कानून बनाने का प्रयत्न किया गया, जिनके माध्यम से भारतीय संस्कृति को तहस-नहस किया  जा सके।

भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए आवश्यकता है सजग होकर इन देश विरोधी ताकतों के मंसूबों को नाकामयाब करने की। देश की जागरूक जनता किसी के बहकावे में न आकर सच्चाई को समझे और ऐसे कानूनों में जल्द से जल्द सुधार की माँग करे। यदि अब भी सजग नहीं हुए तो कल आप भी इसके शिकार हो सकते हैं !

श्री आर.सी. मिश्र

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 6, अंक 263

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