आँवला

आँवला


आयुर्वेद के मतानुसार, आँवले थोड़े खट्टे, कसैले, मीठे, ठंडे, हल्के, त्रिदोष (वात-पित-कफ) का नाश करने वाले, रक्तशुद्धि करने वाले, रुचिकर, मूत्रल, पौष्टिक, वीर्यवर्धक, केशवर्धक, टूटी अस्थि जोड़ने में सहायक, कांतिवर्धक, नेत्रज्योतिवर्धक, गर्मीनाशक एवं दाँतों को मजबूती प्रदान करने वाले होते हैं।

आँवले वातरक्त, रक्तप्रदर, बवासीर, दाह, अजीर्ण, श्वास, खांसी, दस्त, पीलिया एवं क्षय जैसे रोगों में लाभप्रद होते हैं। आँवले के सेवन से आयु, स्मृति, कांति एवं बल बढ़ता है, हृदय एवं मस्तिष्क को शक्ति मिलती है, आँखों का तेज बढ़ता है और बालों की जड़ मजबूत होकर बाल काले होते हैं।

औषधि प्रयोगः

श्वेत प्रदरः 3 से 5 ग्राम चूर्ण को मिश्री तथा दूध की मलाई के साथ प्रतिदिन दो बार लेने से अथवा इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने से श्वेत प्रदर ठीक होता है।

सिरदर्दः आँवले के 3 से 5 ग्राम चूर्ण को घी एवं मिश्री के साथ लेने से पित्त तथा वायु दोष से उत्पन्न सिरदर्द में राहत मिलती है।

प्रमेह(धातुक्षय) आँवले के रस में ताजी हल्दी का रस अथवा हल्दी का पाउडर व शहद मिलाकर सुबह-शाम पियें अथवा आँवले एवं हल्दी का चूर्ण रोज सुबह-शाम शहद अथवा पानी के साथ लें। इससे प्रमेह मिटता है। पेशाब के साथ धातु जाना बंद होता है।

वीर्यवृद्धि के लिएः आँवले के रस में घी तथा मिश्री मिलाकर रोज पीने से वीर्यवृद्धि होती है।

कब्जियतः गर्मी के कारण हुई कब्जियत में आँवले का चूर्ण घी एवं मिश्री के साथ चाटें अथवा त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आँवला) चूर्ण आधे से एक चम्मच रोज रात्रि को पानी के साथ लें। इससे कब्जियत दूर होती है।

अत्यधिक पसीना आने परः हाथ पैर में अत्यधिक पसीना आता हो तो प्रतिदिन आँवले के 20 से 30 मि.ली. रस में मिश्री डालकर पियें अथवा त्रिफला चूर्ण लें। आहार में गर्म वस्तुओं का सेवन न करें।

दाँत की मजबूतीः आँवले के चूर्ण को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ले करने से दाँत मजबूत एवं स्वच्छ होते हैं।

आँवला एक उत्तम औषधि है। जब ताजे आँवले मिलते हों, तब इनका सेवन सबके लिए लाभप्रद है। ताजे आँवले का सेवन हमें कई रोगों से बचाता है। आँवले का चूर्ण, मुरब्बा तथा च्यवनप्राश वर्ष भर उपयोग किया जा सकता है।

(साँईं श्री लीलाशाह जी उपचार केन्द्र, जहाँगीरपुरा, वरियाव रोड, सूरत)

गोघृत

गोघृत सब स्नेहों में सबसे उत्तम माना जाता है। गाय का घी स्निग्ध, गुरु, शीत गुणों से युक्त होता है तथा यह संस्कारों से अन्य औषध द्रव्यों के गुणों का अनुवर्तन करता है। स्निग्ध होने के कारण वात को शांत करता है, शीतवीर्य होने से पित्त को नष्ट करता है और अपने समान गुणवाले कफदोष को कफघ्न औषधियों के संस्कार द्वारा  नष्ट करता है। गोघृत रसधातु, शुक्रधातु और ओज के लिए हितकारी होता है। यह दाह को शांत करता है, शरीर को कोमल करता है और स्वर एवं वर्ण को प्रसन्न करता है। गोघृत से स्मरणशक्ति और धारणाशक्ति बढ़ती है, इन्द्रियाँ बलवान होती हैं तथा अग्नि प्रदीप्त होती है।

शरद ऋतु में स्वस्थ मनुष्य को घृत का सेवन करना चाहिए क्योंकि इस ऋतु में स्वाभाविक रूप से पित्त का प्रकोप होता है। ʹपित्तघ्नं घृतम्ʹ के अनुसार गोघृत पित्त और पित्तजन्य विकारों को दूर करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। समग्र भारत की दृष्टि से 16 सितम्बर से 14 नवम्बर तक शरद ऋतु मानी जा सकती है।

पित्तजन्य विकारों के लिए शरद ऋतु में घृत का सेवन सुबह या दोपहर में करना चाहिए। घृत पीने के बाद गरम जल पीना चाहिए। गरम जल के कारण घृत सारे स्त्रोतों में फैलकर अपना कार्य करने में समर्थ होता है।

अनेक रोगों में गाय का घी अन्य औषध द्रव्यों के साथ मिलाकर दिया जाता है। घी के द्वारा औषध का गुण शरीर में शीघ्र ही प्रसारित होता है एवं औषध के गुणों का विशेष रूप से विकास होता है। अनेक रोगों में औषधद्रव्यों से सिद्ध घृत का उपयोग भी किया जाता है जैसे, त्रिफला घृत, अश्वगंधा घृत आदि।

गाय का घी अन्य औषधद्रव्यो से संस्कारित कराने की विधि इस प्रकार हैः

औषधद्रव्य का स्वरस अथवा कल्क 50 ग्राम लें। उसमें गाय का घी 200 ग्राम और पानी 800 ग्राम डालकर उसे धीमी आँच पर उबलने दें। जब सारा पानी जल जाय और घी कल्क से अलग एवं स्वच्छ दिखने लगे तब घी को उतारकर छान लें और उसे एक बोतल में भरकर रख लें।

सावधानीः शहद और गाय के घी का समान मात्रा में सेवन विषतुल्य होता है। अतः इनका प्रयोग विषम मात्रा में ही करना चाहिए।

अत्यन्त शीत काल में या कफप्रधान प्रकृति के मनुष्यों द्वारा घृत का सेवन रात्रि में किया गया तो यह आफरा, अरुचि, उदरशूल और  पाण्डु रोग को उत्पन्न करता है। अतः ऐसी स्थिति में दिन ही घृतपान करना चाहिए। जिन लोगों के शरीर में कफ और मेद बढ़ा हो, जो नित्य मंदाग्नि से पीड़ित हों, अन्न में अरुचि हो, सर्दी, उदररोग, आमदोष से पीड़ित हों ऐसे व्यक्तियों को उन दिनों में घृत का सेवन नहीं करना चाहिए।

औषधि प्रयोगः

गर्भपातः सगर्भावस्था में अशोक चूर्ण को घी के साथ लेने पर गर्भपात से रक्षा होती है।

वीर्यदोषः अश्वगंधा चूर्ण घी और मिश्री में मिलाकर देने से  अथवा आँवले का रस घी के साथ देने से वीर्य की वृद्धि तथा शुद्धि होती है। शुक्रनाश में इलायची और हींग 200 से 300 मि.ग्रा. घी के साथ देने से लाभ होता है।

(धन्वन्तरि आरोग्य केन्द्र, साबरमती अमदावाद)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2000, पृष्ठ संख्या 29, 30 अंक 94

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