अद्भुत मंत्र

अद्भुत मंत्र


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)

हाथी बाबा, हरि बाबा, उड़िया बाबा, आनंदमयी माँ – ये चार समकालीन संत वृन्दावन में रहते थे । हरि बाबा से पूछा गयाः “बाबा ! आप ऐसे महान संत कैसे बने ?”

हरि बाबा ने कहाः “बचपन में जब हम खेल खेलते थे तो एक साधु भिक्षा लेकर आते और हमारे साथ खेल खेलते । एक दिन साधु भिक्षा लाये और उनके पीछे वह कुत्ता लगा जिसे वे रोज टुकड़ा दे देते थे । पर उस दिन टुकड़ा दिया नहीं और झोले को एक ओर टाँगकर हमारे साथ खेलने लगे किंतु कुत्ता झोले की ओर देखकर पूँछ हिलाये जा रहा था । तब बाबा ने कुत्ते से कहाः ‘चला जा, आज मेरे को कम भिक्षा मिली है । तू अपनी भिक्षा माँग ले ।’

फिर भी कुत्ता खड़ा रहा । तब पुनः बाबा ने कहाः ‘जा, यहाँ क्यों खड़ा है ? क्यों पूँछ हिला रहा है ?”

तीन-चार बार बाबा ने कुत्ते से कहा किंतु कुत्ता गया नहीं । तब बाबा आ गये अपने बाबापने में और बोलेः ‘जा, उलटे पैर लौट जा ।’

तब वह कुत्ता उलटे पैर लौटने लगा ! यह देखकर हम लोग दंग रह गये । हमने खेल बंद कर दिया और बाबा के पैर छुए । बाबा से पूछाः ‘बाबा ! यह क्या, कुत्ता उलटे पैर जा रहा है ! आपके पास ऐसा कौन-सा मंत्र है कि वह ऐसे चल रहा है ?’

बोलेः ‘बेटे ! यह बड़ा सरल मंत्र है – सब में एक – एक में सब । तू उसमें टिक जा बस !’

तब से हम साधु बन गये ।”

उसमें टिककर संकल्प चलाये । मुर्दा भी जीवित हो जाये ।।

मैं कहता हूँ तुम्हारे आत्मदेव में इतनी शक्ति है, तुम्हारे चित्त में चैतन्य वपु का ऐसा सामर्थ्य है कि तुम चाहो तो भगवान को साकार रूप में प्रकट कर सकते हो, तुम चाहो तो भगवान को सखा बना सकते हो, तुम चाहो तो दुष्ट-से-दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बना सकते हो, तुम चाहो तो देवताओं को प्रकट कर सकते हो । देवता अपने लोक में हों चाहे न हों, तुम मनचाहा देवता पैदा कर सकते हो और मनचाहे देवता से मनचाहा वरदान ले सकते हो, ऐसी आपकी चेतना में ताकत है । अगर देवता कहीं है तो वह आ जायेगा, अगर नहीं है तो तुम्हारे आत्मदेव उस देवता को पैदा कर देंगे । उसी के द्वारा वरदान और काम करा देंगे । ऐसी तुममें शक्तियाँ छुपी हैं ।

सुन्या सखना कोई नहीं सबके भीतर लाल ।

मूरख ग्रंथि खोले नहीं कर्मी भयो कंगाल ।।

तो ‘सब में एक – एक में सब’ इसमें जो संत टिके होते हैं, वे तो ऐसी हस्ती होते हैं कि हाँ आस्तिक भी झुक जाता है, नास्तिक भी झुक जाता है, कुत्ता तो क्या देवता भी जिनकी बात मानते हैं, दैत्य भी मानते हैं और देवताओं के देव भगवान भी जिनकी बात रखते है ।

ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ, देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर आदि एवं भूत-प्रेत, आसुरी प्रकृतिवाले तामसी प्रकृति वाले सब के सब लोग ऐस ब्रह्मनिष्ठ सत्पुरुष को चाहते हैं एवं उनकी बात मानते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 12 अंक 203

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