Monthly Archives: August 2010

गणेष चतुर्थी या कलंकी चौथ


गणेष चतुर्थी को कलंकी भी कहते हैं। इस चतुर्थी को चाँद देखना वर्जित है।

इस वर्ष गणेष चतुर्थी के दिन चन्द्रास्त का समय आश्रम के कैलेंडर में देखें । इस समय तक चन्द्रदर्शन निषिद्ध है।

यदि भूल से भी चौथ का चन्द्रमा दिख जाये तो ‘श्रीमद् भागवत’ के 10 वें स्कन्ध के 56-57वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक श्रवण करना चाहिए। भाद्रपद शुक्ल तृतिया या पंचमी के चन्द्रमा का दर्शन करना चाहिए, इससे चौथ को दर्शन हो गये हों तो उसका ज्यादा खतरा नहीं होगा।

अनिच्छा से चन्द्रदर्शन हो जाय तो……

निम्न मंत्र से पवित्र किया हुआ जल पीना चाहिए। मंत्र का 21, 54 या 108 बार जप करें। मंत्र इस प्रकार हैः

सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः।।

‘सुन्दर, सलोने कुमार ! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रोओ मत। अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।’

(ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्यायः78)

चौथ के चन्द्रदर्शन से कलंक लगता है। इस मंत्र प्रयोग अथवा उपर्युक्त पाठ से उसका प्रभाव कम हो जाता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 27, अंक 212

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एक प्रसाद से कई प्रसाद


आज मेरी जिंदगी में जो भी खुशी है, सब पूज्य बापू जी की कृपा से मिली है। मेरे पिछले किसी जन्म के पुण्यकर्मों का फल है जो बापू जी की पत्रिका ‘ऋषि प्रसाद’ मुझे मिली। इसे पढ़कर मेरे जीवन में आनंद और प्रसन्नता की बहार आ गयी। मेरी शादी को लगभग आठ साल होने को थे पर मैं संतान सुख से वंचित थी। एक दिन मेरी पड़ोसी ने मुझे ऋषि प्रसाद दी और तब इसे पहली बार पढ़ने का सौभाग्य मिला। उसमें एक भक्त का अनुभव छपा था – ‘गुरुकृपा से तीन संतान’। अनुभव को पढ़कर मेरे मन में विचार आया कि जब पूज्य बापूजी ने इसकी गोद भर दी तो मुझ पर भी उनकी कृपा अवश्य बरसेगी। मैंने श्रद्धापूर्वक, सच्चे मन से, पूरे विश्वास के साथ ‘श्री आसारामायण’ के 108 वर्ष बाद एक बेटा हुआ। बेटा 2 महीने का हुआ था कि मेरी 6 वर्ष से रूकी हुई नौकरी भी मुझे मिल गयी। मेरी वीरान जिंदगी अचानक यूँ खुशियों से भर गयी। यह सब मेरे पूज्य बापू जी की कृपा से ही सम्भव हुआ है।

अर्चना भराड़िया,

गाँव इच्छी, जि. काँगड़ा

हिमाचल प्रदेश

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 30, अंक 212

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भक्तों के भगवान


(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)

महाराष्ट में केशव स्वामी नाम के एक महात्मा हो गये। वे जानते थे कि भगवन्नाम जपने से कलियुग के दोष दूर हो जाते हैं। यदि कोई शुरु में होठों से भगवान का नाम जपे, फिर कंठ में, फिर हृदय से जपे और नाम के अर्थ में लग जाय तो भगवान प्रकट भी हो सकते हैं।

एक बार केशव स्वामी बीजापुर (कर्नाटक) गये। उस दिन एकादशी थी। रात को केशव स्वामी ने कहाः “चलो, आज जागरण की रात्रि है, सब भक्त हैं तो प्रसाद ले आओ।” अब फलाहार में क्या लें ? रात्रि को तो फल नहीं खाना चाहिए। बोलेः “सौंठ और शक्कर ठीक रहेगी क्योंकि शक्कर शक्ति देगी और सोंठ कफ का नाश करेगी। अकेली शक्कर उपवास में नहीं खानी चाहिए। सोंठ और शक्कर ले आओ, ठाकुरजी को भोग लगायेंगे।”

अब देर हो गयी थी, रात्रि के ग्यारह बज गये थे, दुकानवाले तो सब सो गये थे। किसी दुकानदार को जगाया। लालटेन का जमाना था। सोंठ के टुकड़े और वचनाग के टुकड़े एक जैसे लगे तो अँधेरे-अँधेरे में दुकान वाले ने सोंठ की बोरी के बदले वचनाग की बोरी में से सोंठ समझ के पाँच सेर वचनाग तौल दिया। अब वचनाग तो हलाहल जहर होता है, फोड़े-फुंसी की औषधि बनाने वाले वैद्य उससे ले जाते थे।

अँधेरे-अँधेरे में शक्कर के साथ वचनाग पीसकर प्रसाद बना दिया गया और ठाकुरजी को भोग लगा दिया। अब ठाकुर जी ने देखा कि केशव स्वामी के सभी भक्त सुबह होते-होते मर जायेंगे। उनको तो बेचारों को खबर ही नहीं थी कि सोंठ की जगह यह हलाहल जहर आया है। ठाकुरजी ने करूणा-कृपा करके प्रसाद में से जहर स्वयं ही खींच लिया। अब सुबह व्यापारी ने देखा तो बोलाः “अरा…. रा… रा…. यह क्या हो गया ! सोंठ का बोरा तो ज्यों का त्यों पड़ा है, मैंने गलती से वचनाग दे दिया ! वे सब भक्त मर गये होंगे। अब मेरा तो सत्यानाश हो जायेगा।”

व्यापारी डर गया, दौड़ा-दौड़ा आया और बोलाः “कल मैंने गलती से वचनाग तौल के दे दिया था, किसी ने खाया तो नहीं ?”

केशव स्वामी बोलेः “वह तो रात को प्रसाद में बँट गया।” व्यापारीः “कोई मरा तो नहीं ?”

“नहीं ! किसी को कुछ नहीं हुआ।”

केशव स्वामी और उस व्यापारी ने मंदिर में जाकर देखा तो ठाकुर जी के शरीर में विकृति आ गयी थी। मूर्ति नीलवर्ण हो गयी, एकदम विचित्र लग रही थी मानो, ठाकुरजी को जहर चढ़ गया हो। केशव स्वामी सारी बात समझ गये, बोलेः “प्रभु ! आपने भाव के बल से यह जहर चूस लिया लेकिन आप तो सर्वसमर्थ हैं। पूतना के स्तनों से हलाहल जहर पी लिया और आप ज्यों-के-त्यों रहे, कालिय नाग के विष का असर भी नहीं हुआ तो यह वचनाग का जहर आपके ऊपर क्या असर कर गया ? आप कृपा करके इस जहर के प्रभाव को हटा लीजिए और पूर्ववत् हो जाइये।”

इस प्रकार स्तुति की तो देखते ही देखते व्यापारी और भक्तों से सामने भगवान की मूर्ति पहले जैसी प्रकाशमयी, तेजोमयी हो गयी।

इसको आप क्या समझेंगे, क्या सोचेंगे ?

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।

(संत तुलसीदास जी)

खोजो इसका उत्तर।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2010, पृष्ठ संख्या 6, अंक 212

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