सुख और यश में विशेष सावधान ! पूज्य बापू जी

सुख और यश में विशेष सावधान ! पूज्य बापू जी


सुख और दुःख, अनुकूलता और प्रतिकूलता प्रकृति व प्रारब्धवेग से आते है । फिर अंदर सुखाकार-दुःखाकार वृत्ति पैदा होती है । अनजान लोग उस  वृत्ति से जुड़कर ‘मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ’ ऐसा मान लेते हैं । अपने द्रष्टा स्वभाव को नहीं जानते । सुख आये तो बहुतों के हित में लगाना चाहिए, इससे आपको परम आनंद जगेगा । दुःख आये तो विवेक-वैराग्य जगाना चाहिए । इससे आप संसार के फँसाव से निकलोगे लेकिन अज्ञानी, निगुरे  लोग सुख के भोगी हो जाते हैं । सुख उन्हें खोखला बना देता है । सुख और यश में विशेष सावधान रहो ।

मान पुड़ी है जहर की, खाये सो मर जाये ।

चाह उसी की राखता, सो भी अति दुःख पाये ।।

बड़े के सम्पर्क में रहो जो आपको टोक सके । जब भी यश और पद मिले तो जो आपको टोकने वाले हैं, उनका प्रयत्नपूर्वक सम्पर्क करो । इससे आपका यश और सुशोभनीय होगा । अगर चमचों के बीच रहोगे तो सत्ता पाकर किसको मद नहीं आया ? और मद में गलती किसने नहीं की ? बड़े-बड़े लोग भी गलती करते हैं । रावण ने भी तो वही गलती की थी । सुधार-सुधार, विकास-विकास…. रावण और हिरण्यकश्यपु ने भी तो विकास किया था ! ऐसा विकास आज का कोई नेता सोच भी नहीं सकता । फिर भी रावण और हिरण्यकश्यपु का वह वह अहंकार वाला विकास विनाश की तरफ गया । इसलिए जिनके पास पद और सत्ता हो वे उच्चकोटि के संतों-महापुरुषों के सम्पर्क में रहें तो उनका पद और सत्ता सुशोभनीय होंगे । जैसे – राजा जनक, राजा अश्वपति, ध्रुव, प्रह्लाद, राजा राम ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2011, पृष्ठ संख्या 17 अंक 228

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