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संस्कृति रक्षक प्राणायाम – पूज्य बापू जी


संत सताये तीनों जायें, तेज बल और वंश।

ऐसे ऐसे कई गये, रावण कौरव और कंस।।

भारत के सभी हितैषियों को एकजुट होना पड़ेगा। भले आपसी कोई मतभेद हो किंतु संस्कृति की रक्षा में हम सब एक हो जायें। कुछ लोग किसी को भी मोहरा बना के दबाव डालकर हिन्दू संतों और हिन्दू संस्कृति को उखाड़ना चाहें तो हिन्दू अपनी संस्कृति को उखड़ने नहीं देगा। वे लोग मेरे दैवी कार्य में विघ्न डालने के लिए कई बार क्या-क्या षड्यंत्र कर लेते हैं। लेकिन मैं इन सबको सहता हुआ भी संस्कृति के लिए काम किये जा रहा हूँ। स्वामी विवेकानन्दजी ने कहाः “धरती पर से हिन्दू धर्म गया तो सत्य गया, शांति गयी, उदारता गयी, सहानुभूति गयी, सज्जनता गयी।”

गहरा श्वास लेकरर ॐकार का जप करें, आखिर में ‘म’ को घंटनाद की नाईं गूँजने दें। ऐसे 11 प्राणायाम फेफड़ों की शक्ति बढ़ायेंगे, रोगप्रतिकारक शक्ति तो बढ़ायेंगे साथ ही वातावरण में भी भारतीय संस्कृति की रक्षा में सफल होने की शक्ति अर्जित करने का आपके द्वारा महायज्ञ होगा।

मुझे आपके रूपये पैसे नहीं चाहिए, बल्कि भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए आप रोज 11 प्राणायाम करके आप अपना संकल्प वातावरण में फेंको। इसमें विश्वनाथ का मंगल है। ॐ….ॐ….ॐ…… हो सके तो सुबह 4 से 5 बजे के बीच करें। यह स्वास्थ्य के लिए और सभी प्रकार से बलप्रद होगा। यदि इस समय न कर पायें तो किसी भी समय करें पर करें अवश्य। कम से कम 11 प्राणायाम करें, ज्यादा कितने भी कर सकते हैं। अधिकस्य अधिकं फलम्।

हम चाहते हैं सबका मंगल हो। हम तो यह भी चाहते हैं कि दुर्जनों को भगवान जल्दी सदबुद्धि दे, नहीं तो समाज सदबुद्धि दे। जो जिस पार्टी में है… पद का महत्त्व समझो, अपनी संस्कृति का महत्त्व  समझो। पद आज है, कल नहीं है लेकिन संस्कृति तो सदियों से तुम्हारी सेवा करती आ रही है। ॐ का गुंजन करो, गुलामी के संस्कार काटो !

दुर्बल जो करता है वह निष्फल चला जाता है और लानत पाता है। सबल जो कहता है वह हो जाता है और उसका जयघोष होता है। आप सबल बनो !

नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः। (मुण्डकोपनिषद् 3.2.4)

विधिः सुबह उठकर थोड़ी देर शांत हो जाओ, भगवान के ध्यान में बैठो। ॐ शांति…. ॐ आनन्द…. करते करते आनंद और शांति में शांत हो जायें। सुबह की शांति प्रसाद की जननी है, सदबुद्धि की जननी है। फिर स्नान आदि करके खूब श्वास भरो, त्रिबन्ध करो-पेट को अंदर खींचो, गुदाद्वार को अंदर सिकोड़ लो, ठुड्डी को छाती से लगा लो। मन में संस्कृति-रक्षा का संकल्प दोहराकर भगवान का नाम जपते हुए सवा से डेढ़ मिनट श्वास रोके रखो। फिर श्वास छोड़ो। श्वास लेते और छोड़ते समय ॐकार का मानसिक जप करते रहें। फिर 50 सैकेंड से सवा मिनट तक श्वास बाहर रोक सकते हैं। मन में ॐकार या भगवन्नाम का जप चालू रखो। शरीर में जो भी आम (कच्चा, अपचित रस) होगा, वायुदोष होगा, वह खिंच के जठर में स्वाहा हो जायेगा। वर्तमान की अथवा आने वाली बीमारियों की जड़े स्वाहा होती जायेंगी। आपकी सुबह मंगलमय होगी और आपके द्वारा मंगलकारी परमात्मा मंगलमय कार्य करवायेगा। आपका शरीर और मन निरोग तथा  बलवान बन के रहेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्टूबर 2013, पृष्ठ संख्या 4, अंक 250

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संस्कृति रक्षार्थ सब एकजुट हों


काशी सुमेरू पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य श्री स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती जी महाराजः

षड्यन्त्रों के तहत हिन्दू समाज पर अन्याय, अत्याचार बंद किया जाना चाहिए। संतों के सम्मान, स्वाभिमान की रक्षा होनी चाहिए।

अगर संतों को जेल में डालकर बदनाम करने का षड्यन्त्र होता रहा तो भारत की अस्मिता, भारत की संस्कृति सुरक्षित नहीं रह पायेगी। इसे सुरक्षित रखने के लिए सबको एकजुट हो के प्रयास करना होगा। और वह दिन दूर नहीं कि आशारामजी बापू आप सब लोगों के बीच में आयेंगे, आरोपों से बरी होंगे और राष्ट्रहित, समाजहित होगा।

स्वामी चक्रपाणी जी महाराज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, संत महासभाः

जिस प्रकार हवाई जहाज में और एम आर आई स्कैन के दौरान कैमरा बापू जी के सामने लगाया गया था, कई टी.वी. चैनलों के माध्यम से मैंने पूछा सरकार से कि ‘किस नियम के अंतर्गत कैमरा ले जाया गया और बापू के चेहरे पर लगाया गया ?’ बोलतेः ‘देखो, बापू से उदास हो गये ?’ अरे, उदास नहीं हुए, उस समय भी बापू जी एक संदेश देते गये – समता का, शांति का, धैर्य का। उसी समय मैंने कहा कि ‘ये संत नहीं, ये तो संतशिरोमणि हैं।’

निर्दोष पूज्य बापू जी को कैसे परेशान किया जा रहा है, जेल में डाल दिया गया…. मैंने तो कहा कि 21वीं सदी का यह सबसे बड़ा अन्याय है।

समन्स में 30 तारीख का समय दिया गया। 29 को रिश्तेदार का देहान्त हो जाता है, वे समय माँगते हैं पर नहीं मिलता है।

जब भी किसी महात्मा पर, किसी शूर तत्त्व पर अत्याचार होता है, याद रखना प्रकृति उसे सजा देती है। निश्चित रूप से आप ये समझ जाओ की हम सबकी जीत होगी। ये संत-महासभा, संत-समाज तय करता है कि बापू जी संत नहीं, संतशिरोमणि हैं।

इतनी मीडिया ट्रायल की गयी। मैंने कहा कि ‘आप तो बे-लगाम घोड़े हो गये हो भाई ! किसी निर्दोष के पीछे नहीं पड़ना चाहिए। हाँ, आप अगर दिखाओ तो सबका पक्ष दिखाना चाहिए।’ मैं टी.वी. पर बोलता हूँ तो मेरी काफी बाइट ही काट दी जाती है।

हम जोधपुर के मणई गाँव गये थे, उस कमरे में भी गये थे जहाँ की झूठी बात बतायी गयी। कोई भी जा के देखे तो पता चल जायेगा कि ऐसा वहाँ सम्भव ही नहीं है। निश्चित रूप से यह साजिश है और ये साजिश मात्र संत आशारामजी बापू के खिलाफ नहीं है, भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।

श्री चारूदत्त पिंगले, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समितिः

पूज्य बापू पर लगाया गया आरोप हिन्दू धर्म पर आघात है।

महामंडलेश्वर श्री रामगिरिजी महाराज, जूना अखाड़ाः

संतों की वाणी से संस्कृति मजबूत होती है। संस्कृति पर प्रहार करने के लिए ही संतों पर आरोप किये जा रहे हैं।

श्री उद्धव जी महाराज, प्रचारक वारकरी सम्प्रदाय (महाराष्ट्र)

संत आशारामजी बापू हमारे प्राण हैं, हमारी संस्कृति के प्राण हैं। इस जमाने में दुनिया में अगर साधु-संतों का अपमान होता है और जो चोर, लफंगे, गुंडे हैं, उनको सम्मान मिलता है, आतंकवादियों को बिरयानी मिलती है तो इससे बड़ी क्या आफत हमारी संस्कृति पर होगी !

श्री भास्करगिरिजी महाराज, वारकरी सम्प्रदायः

साधु संतों को बदनाम करने का षड्यन्त्र देशविघातक शक्तियों द्वारा किया जा रहा है।

स्वामी रामेश्वर शास्त्री जी महाराज, महामंत्री, संत समिति (महाराष्ट्र) एवं अध्यक्ष, वारकरी सम्प्रदायः

हम पूरे संत बापू जी के साथ में थे, हैं और रहेंगे।

श्री फूलकुमार जी शास्त्री, शिव कथावाचकः

संत आशारामजी बापू का हमारे हृदय में जो सम्मान है, वह षड्यन्त्रकारी एवं दुष्प्रचारक कभी नहीं निकाल सकते। ऐसे संतों का बार-बार इस धरा पर आना नहीं होता और जब भी होता है तो सारे संस्कृति प्रेमियों को इकट्ठा करने के लिए और भगवान के प्रति आस्था प्रबल बनाने के लिए होता है।

डॉ. इन्द्रा तिवारी, राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय संत महासभाः

संस्कृति के कर्णधार संत के ऊपर इस तरह का आरोप ! एफ आई आर 5 दिन बाद की है, अतः सुनियोजित, सोची समझी साजिश है। मीडिया ने एक तरफ ‘रेप….रेप…’ करके चलाया चैनलों में लेकिन जो आरोप आपने लगाया वह आरोप तो एफ आई आर में ही नहीं है। तो इसका खंडन तो यहीं हो जाता है। बाकी जो कार्य हैं वह न्यायपालिका का है। मीडिया वाले खुद ही न्यायाधीश बनकर इसमें दाँत गड़ाने की चेष्टा क्यों कर रहे हैं ?

वसुन्धरा शर्मा, अध्यक्षा, सार्थक महिला संगठनः

हमारे पूज्य बापू जी पर जिन्होंने मनगढ़ंत आरोप लगाये हैं वे आज नहीं तो कल मुँह की खायेंगे। बापू जी निष्कलंक साबित होंगे।

कॉल सेंटर में महिलाओं को परेशान किया जाता था तो बापू जी ने व्यासपीठ से उदघोष किया था। तब नियम बना और महिला उत्पीड़न के केस फाइल होने शुरु हो गये और आज महिलाएँ कॉल सेंटरों में पहले से बहुत ज्यादा सुरक्षित हो गयीं।

दूसरा आह्वान बापू जी ने किया था कि ‘गर्भपात नहीं कराया जाय।’ जो माँ-बाप सोचते थे कि ‘घर में अगर लड़की आर रही है तो गर्भपात करा दिया जाय।’ उसको बापू जी ने रोका। आज मैं उन साजिशकर्ताओं एवं दुष्प्रचारकों से पूछती हूँ  जिस संत ने नारियों के संबंध में इतने अच्छे निर्णय किये, इतनी अच्छी राह दिखायी उनके ऊपर ये घिनौना इल्जाम लगवाते हुए, अनर्गल दुष्प्रचार करते हुए आपको जरा भी शर्म नहीं आती ? आपने कभी भी उनके पुण्यकर्मों को नहीं देखा ?

बापू जी के इतने सारे सेवाकार्य चल रहे हैं, हमें ब्रह्मचर्य, संयम, तपस्या का सबसे बड़ा गुण सिखाया गया है। ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ की करोड़ों पुस्तकें बाँटी गयीं और कितने बच्चों व बड़ों का जीवन बदला ! पूज्य बापू जी ने जो योजनाएँ लागू की हैं, उनके लिए इस संत को ‘भारत रत्न’ या कोई ऐसी विभूति से शोभित करना चाहिए कि आपके द्वारा इतने-इतने परिवारों का भला हुआ, इतने-इतने परिवारों ने नशा करना छोड़ दिया….। आपको तो एक विशिष्ट सम्माननीय व्यक्ति करके ‘भारतरत्न’ क्या ‘विश्वरत्न’ का सम्मान देना चाहिए और आपने उनको कहाँ डाल दिया ? बुद्धि का कितना दिवालियापन है !

हमारी जो लड़ाई है, औरतों के स्वाभिमान की लड़ाई है। अब औरतों के स्वाभिमान की लड़ाई चलेगी और बापू जी पर लगाये गये एक-एक इल्जाम को हम हटायेंगे, इसके लिए सारी नारियाँ कटिबद्ध हैं।

भुट्टो खानजीः जिनको ऐसे कामिल मुर्शिद मिल जाते हैं उनकी तो सहज में ही उस रूहानियत से एकाकारता हो जाती है। दीक्षा के बाद मेरे सारे ऐब कहाँ चले गये, पता भी नहीं चला ! उसके बाद स्वास्थ्य निखरता गया।

आश्रम जाते-जाते मुझे लगभग 10 साल हो चुके हैं। पूज्य बापू जी की कृपा से हम पति-पत्नी के जीवन में वासनाएँ मिटी हैं और व्रत, संयम आया है। यह 6 करोड़ भक्तों व देश की जनता की इच्छा है कि बापू जी जल्दी से जल्दी हम सबके समक्ष आयें।

डॉ. विष्णु हरि

नेपाल संसद में विदेशी नीति  मसौदा समिति के सदस्य, जापान में  नेपाल के भूतपूर्व राजदूत, कंट्री डायरेक्टर

संत आशारामजी बापू सिर्फ भारत की नहीं, सम्पूर्ण विश्व की धरोहर हैं। उनकी रक्षा करिये, प्राचीन सभ्यता की रक्षा करिये। लड़की की मेडिकल रिपोर्ट से कुछ प्रकट नहीं हुआ अतः यह साफ है कि यह आशारामजी बापू के विरुद्ध बहुत बड़ा षड्यन्त्र है।

सत्य अवश्य सामने आयेगा

श्रीमती प्रीता शुक्ला, प्रधानाचार्य,

राजकीय बालिका इंटर कालेज, लखनऊ

मैं सालों से पूज्य बापू जी के सान्निध्य में आती रही हूँ। पूज्य बापू जी के मार्गदर्शन के बाद मेरा जीवन पूर्णतया परिवर्तित हो गया है। बापू जी हमेशा विपरीत परिस्थिति में भी मार्गदर्शक बनकर प्रोत्साहन देते रहे हैं। बापू जी की ही प्रेरणा का प्रभाव है कि मैं अनेक छात्र-छात्राओं को सही मार्ग पर चलना बता पायी हूँ। मैं इस बात की साक्षी हूँ  पूज्य बापू जी द्वारा दिखलाये हुए मार्ग पर चलकर अनेक विद्यार्थी कुमार्ग से बच गये और उनके जीवन में उन्नतिकारक परिवर्तन हो गया। बापू जी ने विश्वमानव के कल्याण के लिए जो विश्वव्यापी दैवी कार्य किये हैं, उनकी गिनती नहीं की जा सकती। जिन महापुरुष ने अपना सारा जीवन समाजोत्थान में लगा दिया, उन पर घटिया आरोप लगाया गया है। यह तथ्यहीन, सत्य से परे, बिल्कुल झूठा और बेबुनियाद है। पूज्य बापू जी निर्दोष हैं। सत्य अवश्य सामने आयेगा, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 27,28,31 अंक 250

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समाज की देख पीड़ा, संत ने उठाया बीड़ा


पूज्यपाद भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज का महानिर्वाण दिवसः 11 नवम्बर 2013

अपनी आत्ममहिमा में जगे महापुरुषों की हस्ती-मस्ती का वर्णन ही नहीं किया जा सकता। आत्मज्ञान की ऊँचाइयों को प्राप्त करने के बाद उनके लिए इस संसार में न कुछ पाना शेष होता है, न कुछ जानना। फिर भी वे करुणासिंधु महापुरुष करूणा करके समाज के बीच रहते हैं, लोगों के पाप-ताप व दुःखों को हरकर उन्हें आत्मज्ञान की  सघन, शीतल छाया देते हैं। परहित के लिए वे अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।

जैसे बच्चे की पीड़ा माँ से सहन नहीं होती ऐसे ही लोक-मांगल्य में सदैव रत रहने वाले महापुरुषों से किसी का दुःख सहन नहीं होता।  त्रिलोकहितैषी, निष्काम कर्मयोग के मूर्तिमंत स्वरूप भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज ऐसे ही लोकसंत थे। उनके प्रत्येक चेष्टा समष्टि के हित के लिए ही थी। उनकी परोपकारमयी समाजहित की भावना को याद करके बापू जी बताते हैं- “1930-40 की बात है। मेरे गुरु जी उत्तरकाशी में रहते थे। वहाँ राजा ने कच्चा पक्का पुल बनवाया था, बाढ़ आती तो वह पुल बह जाता। बरसात में नदी की उस तरफवाले लोग सड़क की तरफ नहीं आ सकते थे। गाँव कट जाते थे। बरसात बंद हो और फिर सरकारी लोग लगें, बाँस-बल्ली और छोटी-मोटी पुलिया जो लाख-पचास हजार रूपये में बन जाय, वह सरकार बना देती थी।

मेरे गुरु जी के हृदय में दया आयी कि ‘ये गाँव के लोग आटा-दाल, चीज वस्तु लेने को कैसे जायेंगे ? दो-दो महीना उत्तरकाशी से संबंध कट जाता है।’ राजा के पास इतनी सम्पदा नहीं थी कि वह और पुल बना सके। तो साँईं लीलाशाहजी कराची से रिटायर्ड इंजीनियर भक्त को ले आये और बोलेः ‘इधर पुल बनाना है।’ रुपये पैसों से गुरु जी उपराम थे, फिर भी लोक-मांगल्य हेतु आखिर उन्होंने सिंध में बात की कि ‘ऐसा-ऐसा… उत्तरकाशी में हम गर्मियों में जाते हैं, वहाँ साधु संत रहते हैं। छोटी-मोटी बरसात से ही गंगा नदी के तेज बहाव के कारण तीन चार पुलियाँ बह जाती हैं तो लोग बेचारे दुःखी रहते हैं।’ तो लोगों ने खुलकर पैसे दिये। अलग-अलग गाँवों को जोड़ने वाले तीन झूला-पुल (पैदल जाने वालों के लिए) मेरे गुरु जी ने बनवाये। अभी भी वे पुराने पुल हैं।

राजा को जब पता चला कि संत लीलाशाहजी महाराज ने गाँववालों के दुःख को देखकर पुलियाएँ बनवा दीं तो वे दर्शन करने को आये। बोलेः “बाबा ! जो काम राज्य नहीं कर पाया वह आपने किया है। आपके खाने-पीने, सीधे सामान की व्यवस्था हमारे राज्यकोष से होगी। आपने उत्तरकाशी में हमारी प्रजा के लिए 3-3 पुल बनवायें हैं।”

बाबा ने कहाः “हम तो संत आदमी हैं, हमे राज्य के अन्न की जरूरत नहीं है। जहाँ जाते हैं भक्त ले आते हैं। उनका थोड़ा-थोड़ा लेने से उनको पुण्य होता है, संतोष होता है।

तब राजा ने सिर झुकाते हुए कहाः “जैसे गुरूनानक शाह थे, ऐसे आप भी लीलाशाह हो। आपकी गढ़वाल रियासत के प्रति जो सेवा है, उसके लिए मैं नतमस्तक होकर आपका अभिवादन करता हूँ।”

जो कार्य वहाँ का राजा करने में अपने को असमर्थ महसूस करता था, वह कार्य साँईं श्री ने सहज में ही सम्पन्न कर लोगों की पीड़ा व कठिनाइयों को हर लिया। लोगों के सच्चे हितैषी, सच्चे मार्गदर्शक व उनके दुःखों और कष्टों को समझने व हरने वाले ऐसे सच्चे संतों के प्रति सम्पूर्ण मानव-जाति सदैव ऋणी रहेगी।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2013, पृष्ठ संख्या 23, अंक 250

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