गुरु तीन प्रकार के होते हैं- 1. देव गुरु, 2 सिद्ध गुरु, 3. मानव गुरु।
देव गुरु- जैसे देवर्षि नारद हैं और बृहस्पति जी हैं। सिद्ध गुरु कभी-कभी परम पवित्र, परम सात्विक, तीव्र तड़प वाले साधक को मार्गदर्शन देते हैं, जैसे – गुरु दत्तात्रेय जी। परंतु मानव गुरु तो मानव के बहुत नजदीक होते हैं, मानव की समस्याओं व उसकी मति-गति से गुजरे हुए होते हैं और मानव की योग्यताओं को जानकर ऊँचाइयों को छुए हुए होते हैं। इसलिए मानव-समाज के लिए मानव गुरु जितने हितकारी, उपयोगी और सुलभ होते हैं, उतने सिद्ध गुरु नहीं होते और देव गुरु को तो बुलाने में कितना कुछ लगे !
परम तत्त्व को पाये हुए मानव गुरु हमारे मन की समस्याओं तथा बुद्धि की उलझनों को जानते हैं और उनके निराकरण की व्यवस्था को भी जानते हैं। यहाँ तक कि हम भी अपने मन को उतना नहीं जानते जितना मानव गुरु जानते हैं। ऐसे सदगुरु के प्रति श्रद्धा होना मानव जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
देव गुरु को प्रणाम है, सिद्ध गुरु को भी प्रणाम है, मानव गुरु को बार-बार प्रणाम है। गुरु बनने से पहले गुरु के जीवन में भी कई उतार चढ़ाव तथा अनेक प्रतिकूलताएँ आयी होंगी, उनको सहते हुए भी वे साधना में रत रहे और अंत में गुरु-तत्त्व को पाने में सफल हुए। वैसे ही हम भी उनके संकेतों को पाकर उनके आदर्शों पर चलने का, ईश्वर के रास्ते पर चलने का दृढ़ संकल्प करके तदनुसार आचरण करें तो यही बढ़िया गुरु-पूजन होगा।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2015, पृष्ठ संख्या 13, अंक 270
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