रंगरेज की प्रीति जगाने का उत्सव होलिकोत्सव

रंगरेज की प्रीति जगाने का उत्सव होलिकोत्सव


पूज्य बापू जी

(होलीः 23 मार्च 2016)

संत-सम्मत होली खेलिये

होली एक सामाजिक, व्यापक त्यौहार है। शत्रुता पर विजय पाने का उत्सव, ‘एक में सब, सबमें एक’ उस रंगरेज साहेब की प्रीति जगाने वाला उत्सव है। यह दिन मौका देता है कि न कोई नीचा, न कोई ऊँचा। गुरुवाणी में आता हैः

एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे।।

365 दिनों में से 364 दिन तो तेरे मेरे के शिष्टाचार में हमने अपने को बाँधा लेकिन होली का दिन उस तेरे मेरे के रीति-रिवाज को हटाकर एकता की खबरें देता है कि सब भूमि गोपाल की और सब जीव शिवस्वरूप है, सबमें एक और एक में सब। सेठ भई आनंद चाहता है, गरीब भी आनंद चाहता है। तो इस दिन निखालिस जीवन जीकर आनंद लीजिये लेकिन उस आनंद के पीछे खतरा है। यदि वह आनंद संत-सम्मत नहीं होगा, संयम-सम्मत नहीं होगा तो वह आनंद विकारों का रूप ले लेगा और फिर पशुता आ जायेगी। इसलिए भोला बाबा कहते हैं-

होली अगर हो खेलनी, तो संत-सम्मत खेलिये।

तुम्हें आनंद लेने की इच्छा है। और जन्मों से तुम इन्द्रियों से आनंद ढूँढ रहे हो तो इस दिन भी यदि तुम्हें छूट दी जाय तो स्त्री-पुरुष भी होली खेलते हैं और न जाने होली खेलते-खेलते कितना पतन कर लेते हैं। तमाशबीन तमाशा देखने गये तो कई बार खुद का ही तमाशा हो जाता है। इसलिए होली सावधान भी करती है। होली के बाद आती है धुलेंडी।

तन की तंदुरुस्ती मन पर निर्भर है। मन तुम्हारा यदि प्रसन्न और प्रफुल्लित है तो तन भी तुम्हें सहयोग देता है। यदि तन से अधिक भोग भोगे जाते हैं, विकारी होली खेली जाती है, विकारी धुलेंडी की धूल डाल दी जाती है अपने पर तो तन का रोग मन को भी रोगी बना देता है, मन बूढ़ा हो जाता है, कमजोर हो जाता है। संत-सम्मत जो होली होती है उसका लक्ष्य होता है तुम्हारे तन को तंदुरुस्त और मन को प्रफुल्लित रखना।

होली और धुलेंडी हमें कहती है कि इस दिन हम जैसे रंग लगाते हैं तो अपना और पराया याद नहीं रखते हैं, ऐसे ही मेरे-तेरे के भाव और जो आपस में कुछ वैमनस्य है उन सबको ज्ञान की होली में जला दें।

होली की रात्रि का जागरण और जप बहुत ही फलदायी होता है, एक जप हजार गुना फलदायी है। इसलिए इस रात्रि में जागरण और जप कर सभी पुण्यलाभ लें।

कैसे पायें स्वास्थ्य लाभ ?

इन दिनों कोल्ड ड्रिंक्स, मैदा, दही, पचने में भारी व चिकनाई वाले पदार्थ, पिस्ता, बादाम, काजू आदि दूर से ही त्याग देने चाहिए। होली के बाद खजूर नहीं खानी चाहिए।

मुलतानी मिट्टी से स्नान, प्राणायाम, 15 दिन तक बिना नमक का भोजन, 20-25 नीम की कोंपलें व 1-2 काली मिर्च का सेवन स्वास्थ्य की शक्ति बढ़ायेगा। भुने हुए चने, पुराने जौ, लाई, खील (लावा) – ये चीजें कफ को शोषित करती हैं।

कफ अधिक है तो गजकरणी करें, एक डेढ़ लिटर पानी में 10-15 ग्राम नमक डाल दो। पंजों के बल बैठ के पियो, इतना पियो कि वह पानी बाहर आना चाहे। तब दाहिने हाथ की दो बड़ी उँगलियाँ मुँह में डालकर उलटी करो, पिया हुआ सब पानी बाहर निकाल दो। पेट बिलकुल हलका हो जाय तब पाँच मिनट तक आराम करो। दवाइयाँ कफ का इतना शमन नहीं करेंगी जितना यह प्रयोग करेगा। हफ्ते में एक बार ऐसा कर लें तो आराम से नींद आयेगी। इस ऋतु में हल्का फुलका भोजन करना चाहिए। (गजकरणी की विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम की पुस्तक ‘योगासन’)

होली के दिन सिर पर मिट्टी लगाकर स्नान करना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिएः ‘पृथ्वी देवी ! तुझे नमस्कार है। जैसे  विघ्न-बाधाओं को तू धारण करते हुए भी यशस्वी है, ऐसे ही मैं विघ्न-बाधाओं के बीच भी संतुलित रहूँ। मेरे शरीर का स्वास्थ्य और मन की प्रसन्नता बनी रहे इस हेतु मैं आज इस होली के पर्व पर, भगवान नारायण और वसुंधरा को प्रणाम करता हूँ।’

पलाश के रंगों से खेलें होली

होली की प्रदक्षिणा करके शरीर में गर्मी सहने की क्षमता का आवाहन किया जाता है। गर्मियों में सातों रंग, सातों धातु असंतुलित होंगे तो आप जरा-जरा बात में तनाव में आ सकते हैं। जो होली के दिन पलाश के फूलों के रंग से होली का फायदा उठाता है, उसके सप्तरंगों, सप्तधातुओं का संतुलन बना रहता है और वह तनाव आदि का शिकार नहीं होता। रात को नींद नहीं आती हो तो पलाश के फूलों के रंग से होली खेलो।

न अपना मुँह बंदर जैसा बनने दें, न दूसरे का बनायें। न अपने गले में जूतों की माला पहनें, न दूसरे के गले में पहनायें। बहू-बेटियों को शर्म में डालने वाली उच्छृंखलता की होली न आप खेलें, न दूसरों को खेलने का मौका दें।

यह होलिकोत्सव बाहर से तुम्हारा शारीरिक स्वास्थ्य आदि तो ठीक करता ही है, साथ ही तुम्हें आध्यात्मिक रंग से रँगने की व्यवस्था भी देता है।

होली का संदेश

फाल्गुनी पूर्णिमा चन्द्रमा का प्राकट्य दिवस है, प्रह्लाद का विजय दिवस है और होलिका का विनाश दिवस है। व्यवहारिक जगत में यह सत्य, न्याय, सरलता, ईश्वर-अर्पण भाव का विजय-दिवस है और अहंकार, शोषण व दुनियावी वस्तुओं के द्वारा बड़े होने की बेवकूफी का पराजय दिवस है। तो आप भी अपने जीवन में चिंतारूपी डाकिनी के विनाश-दिवस को मनाइये और प्रह्लाद के आनंद-दिवस को अपने चित्त में लाइये। होलिकोत्सव राग-द्वेष और ईर्ष्या को भूलाने वाला उत्सव है। हरि के रंग से हृदय को और पलाश के रंग से अपनी त्वचा को तथा दिलबर के ज्ञान-ध्यान से बुद्धि को रँगो।

परमात्मा की उपासना करने वाले अपनी संकीर्ण मान्यताएँ, संकीर्ण चिंतन, संकीर्ण ख्वाहिशों को छोड़कर ‘ॐ….ॐ….’ का रटन करें। पवित्र ॐकार का गुंजन करते हुए ‘ॐ आनंद…. ॐआनंद…. हरि ॐ….’ का उच्चारण करें। जो पाप-ताप हर ले और अपना आत्मबल भर दे वह है ‘हरि ॐ’

रासायनिक रंगों से कभी न खेलें होली

रासायनिक रंगों से होली खेलना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है, यहाँ तक कि इनसे मृत्यु भी हो जाती है। यदि किसी ने आप पर रासायनिक रंग लगा दिया हो तुरंत ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन रँगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिए।

धुलेंडी के दिन पहले से ही शरीर पर नारियल या सरसों का तेल अच्छी प्रकार लगा लेना चाहिए, जिससे यदि कोई त्वचा पर रासायनिक रंग डाले तो उसका दुष्प्रभाव न पड़े और वह आसानी से छूट जाय।

होली पलाश के रंग एवं प्राकृतिक रंगों से ही खेलनी चाहिए। (पलाश के फूलों का रंग सभी संत श्री आशाराम जी आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों में उपलब्ध है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2016, अंक 279, पृष्ठ संख्या 7-9

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