महाशत्रु कौन और जीवन में विजय कैसे पायें ?

महाशत्रु कौन और जीवन में विजय कैसे पायें ?


विजयदशमी को रावण को मारकर श्रीराम विजेता हुए थे। महिषासुर आदि राक्षसों को मारकर माता जी ने धरती का बोझ हलका किया था। विजयदशमी से हमें यह संदेशा मिलता है कि भौतिकवाद चले कितना भी बढ़ा-चढ़ा हो, अधार्मिक अथवा बहिर्मुख आदमी के पास कितनी भी सत्ताएँ हों, कितना भी बल हो फिर भी अंतर्मुख व्यक्ति डरे नहीं, उसकी विजय जरूर होगी।

10 आदमियों जितने मस्तक और भुजाएँ थीं ऐसे रावण के समस्त सैन्य बल को भी छोटे-छोटे बंदर-भालुओं ने ठिकाने लगा दिया।

यह दशहरा तुम्हें संदेश देता है कि जो प्रसन्नचित्त है, पुरुषार्थी है उसे ही विजय मिलती है। जो उत्साहित है, कार्यरत है, जो हजार विघ्नों पर भी चिंतित नहीं होता, हजार दुश्मनों से भी भयभीत नहीं होता वह महादुश्मन जन्म-मरण के चक्कर को भी तोड़कर फेंक देता है। छोटे-छोटे दुश्मन को मारना कोई बड़ी बात नहीं है, अपने और ईश्वर के बीच में जो अविद्या का पर्दा है, उसको जब तक नहीं हटाया तब तक दुनिया के सब शत्रुओं को हटा दो, कोई फर्क नहीं पड़ता। दुनिया के शत्रु ज्यों-के-त्यों मौजूद रहें, उनकी चिंता मत करो। महाशत्रु जो अज्ञान है उसको तुम हटा दो, फिर पता चलेगा कि शत्रुओं के रूप में भी उस परमात्मा की आभा है।

विजयादशमी के दिन रावण को परास्त कर श्रीरामचन्द्र जी विजयी हुए। रावण की नाईं वासनाओं के वेग में हम खिंच न जायें इस याद में रावण को हर बारह महीने में दे दीयासलाई ! रावण के पुतले को तो दीयासलाई देते हैं लेकिन हमारे भीतर भी राम और रावण दोनों बैठे हैं। सद्विचार है, शांति की माँग है – यह राम का स्वभाव और ‘मेरा तो मेरे बाप का, इसका भी मेरा ही है’ – ये रावण की वृत्तियाँ भी हैं।

आप किसको महत्त्व देते हैं ?

आप देख सकते हो कि भीतर राम और रावण का भाव कैसा छुपा है। रामायण या महाभारत हमारे भीतर कैसा छुपा है। कोई भोजन की थाली परोस दे जिसमें कुछ भोजन सात्त्विक व स्वास्थ्यप्रद है और कुछ ऐसी चीज है जो चरपरी है, स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है लेकिन मुँह में पानी लाये ऐसी है तो बस, राम-रावण युद्ध चालू हो जाता है। राममयी वृत्ति कहती है कि ‘नहीं, यह सात्त्विक खायें, इतना ही खायें’ लेकिन रावण वृत्ति, आसुरी वृत्ति कहेगी, ‘क्या है ! इतना थोड़ा सा तो खा लो।’

‘खायें-न खायें, खायें न खायें…’ के द्वन्द्व में अगर रसमयी वृत्ति का समर्थन करते हो तो संयम से उतना ही खाकर उठोगे जितना खाना चाहिए। अगर रावण-वृत्ति का समर्थन करते हो तो उतना सारा खा लोगे जो नहीं खाना चाहिए। आसुरी, राजसी वृत्ति का समर्थन करते हो कि सात्त्विक वृत्ति का करते हो ? राम रस का महत्त्व जानते हो कि कामवासना को महत्त्व देते हो ?

जो दसों इन्द्रियों से सांसारिक विषयों में रमण करते हुए उनसे मजा लेने के पीछे पड़ता है वह रावण की नाईं जीवन-संग्राम में हार जाता है और  जो इन्हें सुनियंत्रित करके अपने अंतरात्मा में आराम पा लेता है तथा दूसरों को भी आत्मा के सुख की तरफ ले जाता है वह राम की नाईं जीवन-संग्राम में विजय पाता है और अमर पद को भी पा लेता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2016, पृष्ठ संख्या 10, अंक 285

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