जिस प्रकार श्रम करने के लिए शरीर बलवान तथा अभ्यासी होना चाहिए, शब्द, स्पर्श, रूप, रसादि विषय ग्रहण करने के लिए इन्द्रियों में शक्ति होनी चाहिए अथवा किसी बात को मानने और उसी का मनन करने के लिए मन में स्वीकृति की भावना होनी चाहिए, उसी प्रकार विद्या-प्राप्ति व विचार करने के लिए बुद्धि में योग्यता होनी चाहिए ।
बुद्धि को बलवती तथा योग्य बनाने के लिए मन की चंचलता को रोकना होता है । इन्द्रियों के द्वारा विषय-वृत्तियों का भी दमन करना पड़ता है । शरीर द्वारा व्यर्थ चेष्टा, निरर्थक क्रिया को रोकना आवश्यक होता है ।
अपने सरल स्वभाव से सबको प्रिय लगने वाले विचारवान विद्यार्थियो ! सावधान होकर समझ लो कि तुम्हें अपनी परीक्षा में सफल होने के लिए कहीं से शक्ति की भीख नहीं माँगनी है, शक्ति तो तुम्हारे जीवन के साथ है । अब तुम्हारा कर्तव्य है कि जो शक्ति प्राप्त है उसका कहीं व्यर्थ दुरुपयोग न करो ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2019, पृष्ठ संख्या 19, अंक 318
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