साधक अगर श्रद्धा एवं भक्तिभाव से अपने गुरु की सेवा नही करेगा तो उसके तमाम व्रत,तप आदिक कच्चे घड़े में से पानी की तरह टपक कर बह जाएंगे। मन एवं इंद्रियों का संयम गुरु भगवान का ध्यान, गुरु की सेवा में धैर्य, सहनशक्ति, आचार्य के प्रति भक्तिभाव, संतोष, दया, स्वच्छता, सत्यवादिता, सरलता, गुरु की आज्ञा का पालन ये सब अच्छे शिष्य के लक्षण है। सत्य के साधक को मन एवं इंद्रियों पर संयम रखकर अपने आचार्य के घर रहना चाहिए और खूब श्रद्धा एवं आदरपूर्वक गुरु की निगरानी में शास्त्रो का अभ्यास करना चाहिए उसे चुस्तता से ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए और आचार्य की पूजा करनी चाहिए। शिष्य को चाहिए कि वह आचार्य को साक्षात ईश्वर के रूप में माने मनुष्य के रूप में कदापि नही।
पूज्य बापूजी के प्रेरक जीवन प्रसंग, श्री रामु रावत द्वारा बताए गए प्रसंग ब्रम्हज्ञानी सद्गुरु का हॄदय कितना करुणावान होता है इसका वर्णन शब्दो मे करना सम्भव नही, लाखो करोड़ो माताओं के करुणा को मिला दो तब भी उससे सद्गुरु की करुणा की तुलना नही हो सकती।
2010 की घटना है हरिद्वार आश्रम के पास गंगा की जो धाराएं बहती है उनमें से एक धारा पार करके जंगल मे पूज्य बापूजी के लिए एक अस्थाई कुटिया बनाई थी। एकदिन शाम के 4 – 5 बजे बापूजी नाव से उस पार गए और कुटिया में जाकर ध्यानस्त हो गए सूर्यास्त हो गया।
रामु रावत कहते हैं कि मैं नाव के पास इंतज़ार कर रहा था। रात के 10 -11 बजे बापूजी ध्यान से उठे, आये। मैने बापूजी को आते हुए देखा तो नाव को पकड़ने के लिए मैं पानी मे घुसने लगा तो बापूजी दूर से बोले ए ! रुक जा पानी मे नहीं घुसना । फिर पास आकर बोले- मुझे तो याद ही नही था कि मैं जंगल मे बैठा हूँ और यह भी ध्यान नही रहा कि नाव चलाने के लिए तू यहां बैठा है। रात हो गई है पैर गीले करना ठीक नही है, ऐसा कर तू भी बैठ जा।
बापूजी ने नाव में मुझे भी बिठा दिया, सेवक को भी बिठा दिया और पूज्य श्री स्वयं पतवार चलाने लगे, थोड़ा आगे जाकर नाव कीचड़ में फंस गई, बापूजी उसे निकालने का प्रयास कर रहे थे परन्तु नाव निकल ही नही रही थी तो मैं पानी मे कूद गया। बापूजी बोले- तेरे को मना किया था न।
मैंने कहा- जी! बापूजी का समय खराब हो रहा था।
-हां बात तो सही है परन्तु अब कैसे करेगा? बापूजी एकदम शांत हो गए मेरे पैर भीग रहे थे तो पूज्य श्री के हॄदय पसीज गया। मैने आजतक अपने जीवन मे बापूजी को इतना करुणाभाव में नही देखा था।
बापूजी बोले- तू एक काम करना, पानी मे भीगा है तो आश्रम में जाकर पहले मालिश करना फिर सोना, रात को पैर गीले करने से बुढापे में परेशानी होती है। मैं नाव खींचकर उस पार ले गया, बापूजी उतरे और आश्रम पहुंचने तक 2 – 3 बार मेरे से बोले मालिश करके ही सोना। कैसा करुणामय हॄदय है पूज्य बापूजी का… ।
हरिद्वार आश्रम गंगा नदी के पास है 2010 का ही प्रसंग है । बापूजी नदी के उस पार घूमने गए एक साधु मिले, वे बापूजी को बोले- महाराज जी ! मैं आपका सात दिन से इंतजार कर रहा हूँ।
बापूजी बोले- साधना कौन सी करते हो और खाते क्या हो?
-मैं चने लेकर आया हूँ रात को चने भिगोता हूँ सुबह खाता हूं और पेड़ पर जो कुटिया है उसमें बैठ के तपस्या जप करता हूँ।
साधु की तपस्या देखकर बापूजी प्रसन्न हुए जब पूज्य बापूजी नाव में बैठे तो मुझे बोले अरे वह साधु सात दिन से चने खा रहा है। सुबह उसको प्रसाद दे आना। अब मैंने सोचा बापूजी के जिसको दर्शन हुए वह आदमी चने क्यों खाये?
मैंने रात को ही किशमिश, मूंगफली, पेठा आदिक प्रसाद लिया और बापूजी से पूछा बापूजी यह प्रसाद साधु को देने जाऊँ।
बापूजी बोले- अच्छा प्रसाद कितना है मुझे दिखा, प्रसाद देखकर बोले उसको बोलना कि एकसाथ नही खाये थोड़ा-थोड़ा और चबा चबाकर खाये। मैं गया तो वे साधु दो पत्थरो को मंजीरो की तरह बजाकर कीर्तन कर रहे थे। मैंने कहा- बापूजी ने प्रसाद भिजवाया है।
-बापूजी ने मेरे लिए भिजवाया है कहते हुए वे साधु प्रेमातिरेग से गद-गद हो गए।
दो-तीन दिन बाद बापूजी शाम को घूमकर जैसे ही नाव से उतरे, बोले – वह जो साधु उस पार रहता है उसको बोलो आज रात को वह उधर न रहे इस पार आ जाये।
नाव लेकर उन साधु के पास हम गये ।
महराज जी ! आज आप यहां नही बैठिये, आज रात को इधर रहने के लिए बापूजी ने मना किया है।
साधु की बापूजी के प्रति बड़ी श्रद्धा थी वे तैयार हो गए हम उन्हें नाव में बिठाकर इस पार ले आये फिर वे रात को आश्रम में ही रुके।
सुबह हम लोग गंगा नदी के उस पार गए तो देखा कि वहां रात को हाथी आया था उसके पैरों के निशान दिखे और उसने महाराज का सारा सामान तहस-नहस कर दिया था, मटके तोड़ दिए, कनस्तर को तवे की तरह चपटा कर दिया था। मेरा तो हॄदय भर आया कि ब्रम्हज्ञानी महापुरुष की हर एक लीला एवं उनके वचनों में जीवमात्र की कितनी भलाई व गूढ़ रहस्य छिपा होता है, जो उनके वचनों को मानकर चल पड़ता है उसका कल्याण हो जाता है।