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लोभ करना हो तो इसका करो… – पूज्य बापू जी


प्रतिदिन हजार बार भगवन्नाम लेने से जीवात्मा के पतन का द्वार बन्द हो जाता है । कितनी भी उन्नति हो जाय पर 10 माला भूलना मत, सारस्वत्य मंत्र, गुरुमंत्र की कम-से-कम 10 माला जरूर करना । और 10 माला ही करके रुकना मत, अधिकं जपं अधिकं फलम् । तुकाराम महाराज केवल हजार बार भगवन्नाम नहीं लेते थे, दिनभर लेते थे । हम केवल हजार बार भगवन्नाम नहीं लेते या केवल 10 माला नहीं करते… बहुत करना चाहिए । जैसे जो नहीं कमाता है उसको तो माँ-बाप बोलेंगे कि ‘चलो भाई ! इतना कमा लो ।’ लेकिन जो कमाने वाला है उसको बोलेंगे कि ‘और कमाओ ।’ तो यह रुपया पैसा जो यहीं छोड़कर जाने वाली चीज है उसकी कमाई में लोभी लगता है और उससे माँ-बाप खुश होते हैं तो भक्त भगवान की ( भगवन्नाम-जप, सत्संग, ध्यान, भगवत्प्रीत्यर्थ सत्कर्म आदि की ) कमाई में लोभ करेगा तो भगवान खुश होते हैं ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 19 अंक 351

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बहादुर माँ का वह बहादुर बच्चा ! – पूज्य बापू जी


लाल बहादुर शास्त्री के पिता मर गये थे तब विधवा माँ ने सोचा कि ‘मेरा कर्तव्य है बच्चे को पढ़ाना ।’ पैसे तो थे नहीं । अपने घर से कोसों दूर किसी पैसे वाले रिश्तेदार के यहाँ हाथाजोड़ी करके लाल बहादुर को रख दिया । पैसे वाले तो पैसे वाले ही होते हैं, उन्होंने लाल बहादुर से जूठे बर्तन मँजवाये, झाड़ू लगवायी । घर का तीसरे-चौथे दर्जे का व्यक्ति जो काम करता है वे सब काम करवाये । और उनके घर के कुछ लोग ऐसे उद्दण्ड थे कि लाल बहादुर को बड़े कठोर वचन भी सुना देते  थे – ‘हराम का खाता है, ऐसा है विधवा का लड़का, फलाना, ढिमका, हमारे माथे पड़ा है, ऐसा करता है – वैसा करता है… ।’ सहते-सहते बालक की सहनशक्ति की हद हो गयी । वह उस अमीर का घर छोड़ के माँ की गोद में आकर फूट-फूट के रोया ।

लेकिन कैसी है भारत की माँ ! बेटे का सारा हाल-हवाल सुना, फिर बोलती हैः ″बेटा लालू ! तेरा नाम बहादुर है । मेरे में क्षमता नहीं कि मैं पैसे इकट्ठे करके तुझे पढ़ा सकूँ और खिला सकूँ । माँ का कर्तव्य है बेटे को सयाना बनाना, होशियार बनाना । बेटा ! तुझे मेहनत करनी पड़ती है तो तेरी अभी उम्र है, थोड़ा परिश्रम कर ले और तुझे जो सुनाते हैं उसके बदले में तू पढ़ेगा-लिखेगा, विद्वान होगा, कइयों के काम आयेगा मेरे लाल ! बेटा ! और तो मैं तुझसे कुछ नहीं माँगती हूँ, तेरी माँ झोली फैलाती है मेरे लाल ! तेरे दुःख को मैं जानती हूँ, उन लोगों के स्वभाव को भी मैंने समझ लिया किंतु मैं तेरे से माँगती हूँ बेटे !″

″माँ ! क्या माँगती है ?″

″बेटे ! तू मेरे को वचन दे !″

″माँ ! बोलो, क्या माँगती हो ? मैया ! मेरी मैया !! क्या माँगती है ?″

″बेटे ! वे कुछ भी कहें, कितना भी कष्ट दें, तू थोड़ा सह के शास्त्री बन जा बस !″

″माँ ! तेरी ऐसी इच्छा है, मैं सब सह लूँ ?″

″हाँ बेटे ! सह लो और शास्त्री बन जाओ ।″

बहादुर बच्चा सचमुच सब सहते हुए शास्त्री बना । दुनिया जानती है कि वही लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने थोड़े माह ही राज्य चलाया परंतु लोगों के हृदय में उनकी जगह अब भी है । जातिवाद, यह वाद-वह वाद आदि के नाम पर लड़ाना-झगड़ाना, झूठ-कपट करना, एक-दूसरे की निंदा करना – ऐसी गंदी राजनीति से वे बहुत दूर थे । उन्होंने माँ की बात रखी और माँ के दिल का वह सत्-चित्-आनंदस्वरूप ईश्वर बरसा ।

माँ के हृदय का सच्चिदानंद और लाल बहादुर शास्त्री का सच्चिदानंद, मेरा और तुम्हारा सच्चिदानंद एक ही तो है ! वह अपनी तरफ बुलाने के लिए न जाने क्या-क्या दृष्टांत और क्या-क्या किस्से-कहानियाँ सुनवा-समझा देता है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 18 अंक 351

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निराश होने की बात नहीं… – पूज्य बापू जी


अंधकार है तो प्रकाश भी है,

विनाश है तो नवविकास भी है ।

निराश होने की कोई बात ही नहीं, पतन है तो उत्थान का अवकाश ( अवसर ) भी है ।।

मृत्यु है तो जीवन का सूर्योदय भी है ।।

हार है तो जीत का दिन भी है ।।

निंदा करना, निंदा सुनना यह बुरा है और अपने को कोसना यह तो महा बुरा है । अतः अपने को कोसो मत, निराशा की खाई में मत गिराओ । हजारों निराशाओं के भीतर भी एक आशा रखो कि ‘मेरा आत्मा तो अमर है, परमात्मा का शाश्वत स्वरूप है और परमात्मा का नाम साथ में है, देर-सवेर सद्गुरु-कृपा से आत्मा का साक्षात्कार भी होगा फिर निराशा की खाई में अपने को क्यों गिराना ?’

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 19 अंक 351

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