लाल बहादुर शास्त्री के पिता मर गये थे तब विधवा माँ ने सोचा कि ‘मेरा कर्तव्य है बच्चे को पढ़ाना ।’ पैसे तो थे नहीं । अपने घर से कोसों दूर किसी
पैसे वाले रिश्तेदार के यहाँ हाथाजोड़ी करके लाल बहादुर को रख दिया । पैसे वाले तो
पैसे वाले ही होते हैं, उन्होंने लाल बहादुर से जूठे बर्तन मँजवाये, झाड़ू लगवायी
। घर का तीसरे-चौथे दर्जे का व्यक्ति जो काम करता है वे सब काम करवाये । और उनके
घर के कुछ लोग ऐसे उद्दण्ड थे कि लाल बहादुर को बड़े कठोर वचन भी सुना देते थे – ‘हराम का खाता है, ऐसा है विधवा का लड़का, फलाना, ढिमका, हमारे माथे पड़ा है,
ऐसा करता है – वैसा करता है… ।’ सहते-सहते
बालक की सहनशक्ति की हद हो गयी । वह उस अमीर का घर छोड़ के माँ की गोद में आकर
फूट-फूट के रोया ।
लेकिन कैसी है भारत की माँ ! बेटे का सारा
हाल-हवाल सुना, फिर बोलती हैः ″बेटा लालू ! तेरा नाम
बहादुर है । मेरे में क्षमता नहीं कि मैं पैसे इकट्ठे करके तुझे पढ़ा सकूँ और खिला
सकूँ । माँ का कर्तव्य है बेटे को सयाना बनाना, होशियार बनाना । बेटा ! तुझे मेहनत करनी पड़ती है तो तेरी अभी उम्र है,
थोड़ा परिश्रम कर ले और तुझे जो सुनाते हैं उसके बदले में तू पढ़ेगा-लिखेगा,
विद्वान होगा, कइयों के काम आयेगा मेरे लाल ! बेटा ! और तो मैं
तुझसे कुछ नहीं माँगती हूँ, तेरी माँ झोली फैलाती है मेरे लाल ! तेरे दुःख को मैं जानती हूँ, उन लोगों के
स्वभाव को भी मैंने समझ लिया किंतु मैं तेरे से माँगती हूँ बेटे !″
″माँ ! क्या माँगती
है ?″
″बेटे ! तू मेरे को
वचन दे !″
″माँ ! बोलो, क्या
माँगती हो ? मैया ! मेरी मैया !! क्या माँगती है ?″
″बेटे ! वे कुछ भी
कहें, कितना भी कष्ट दें, तू थोड़ा सह के शास्त्री बन जा बस !″
″माँ ! तेरी ऐसी
इच्छा है, मैं सब सह लूँ ?″
″हाँ बेटे ! सह लो और
शास्त्री बन जाओ ।″
बहादुर बच्चा सचमुच सब सहते हुए शास्त्री बना । दुनिया जानती है कि वही लाल बहादुर
शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने थोड़े माह ही राज्य चलाया परंतु
लोगों के हृदय में उनकी जगह अब भी है । जातिवाद, यह वाद-वह वाद आदि के नाम पर
लड़ाना-झगड़ाना, झूठ-कपट करना, एक-दूसरे की निंदा करना – ऐसी गंदी राजनीति से वे
बहुत दूर थे । उन्होंने माँ की बात रखी और माँ के दिल का वह सत्-चित्-आनंदस्वरूप
ईश्वर बरसा ।
माँ के हृदय का सच्चिदानंद और लाल बहादुर शास्त्री का सच्चिदानंद, मेरा और
तुम्हारा सच्चिदानंद एक ही तो है ! वह अपनी तरफ
बुलाने के लिए न जाने क्या-क्या दृष्टांत और क्या-क्या किस्से-कहानियाँ सुनवा-समझा
देता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 18 अंक 351
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