Gurubhaktiyog

यह बात उस समय की है जब बोधिधर्म भारत से चीन गये हुए थे…


रात्री को निद्राधीन होने से पहले अन्तर्मुख होकर शिष्य को निरीक्षण करना चाहिए कि गुरु की आज्ञा का पालन कितनी मात्रा में किया है।शिष्य के हृदय के तमाम दुर्गुण रूपी रोग पर गुरुकृपा सबसे अधिक असरकारक, प्रतिरोधक एवं सर्वार्त्रिक औषध है। भगवान शिव जी कहते है, दुर्लभं त्रिषु लोकेषु, तत शृणुस्व वदाम्यहं। गुरुं बिना ब्रह्म …

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अरे! यह क्या अजीब आज्ञा दे गये आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त को, पूरी घटना पढ़ें…


उत्तम शिष्य पेट्रोल जैसा होता है। काफी दूर होते हुए भी गुरु के उपदेश की चिंगारी को तुरंत पकड़ लेता है। दूसरी कक्षा का शिष्य कपूर जैसा होता है। गुरु के स्पर्श से उसकी अंतरआत्मा जागृत होती है और वह उसमें आध्यत्मिकता की अग्नि को प्रज्वलित करता है। तीसरी कक्षा का शिष्य कोयले जैसा होता …

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कुलानन्द ब्रह्मचारी की वह डायरी जिसमें है कई रहस्यमय साधनाओं की चर्चा…..


सत्य के साधक को मन एवं इन्द्रियों पर संयम रखकर अपने आचार्य के घर रहना चाहिए और खूब श्रद्धा एवं आदरपूर्वक गुरु की निगरानी में शास्त्रों का अभ्यास करना चाहिए। शिष्य अगर अपने आचार्य की आज्ञा का पालन नहीं करता है तो उसकी साधना व्यर्थ है। हे भगवान! “मैं आपके आश्रय में आया हूँ, मुझपर …

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