यह बात उस समय की है जब बोधिधर्म भारत से चीन गये हुए थे…
रात्री को निद्राधीन होने से पहले अन्तर्मुख होकर शिष्य को निरीक्षण करना चाहिए कि गुरु की आज्ञा का पालन कितनी मात्रा में किया है।शिष्य के हृदय के तमाम दुर्गुण रूपी रोग पर गुरुकृपा सबसे अधिक असरकारक, प्रतिरोधक एवं सर्वार्त्रिक औषध है। भगवान शिव जी कहते है, दुर्लभं त्रिषु लोकेषु, तत शृणुस्व वदाम्यहं। गुरुं बिना ब्रह्म …