महान संकट की ओर बढ़ रहें थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग-10)
कल हमने सुना कि बुल्लेशाह आपा के साथ बुरखा पहनकर दरगाह की तरफ चल पड़े। एक ऐसा चमन है ,जिसकी खुशबू साँसों से बसाये फिर रहा हूँ। एक ऐसी जमीं है, जिसको छूकर तकदिशे हरम से आसना हूँ। एक ऐसी गली है, जिसकी खातिर हर गली में भटक रहा हूँ। ए मुझको सुकूँ देनेवाले मसीहा! …