Gurubhaktiyog

महान संकट की ओर बढ़ रहें थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग-10)


कल हमने सुना कि बुल्लेशाह आपा के साथ बुरखा पहनकर दरगाह की तरफ चल पड़े। एक ऐसा चमन है ,जिसकी खुशबू साँसों से बसाये फिर रहा हूँ। एक ऐसी जमीं है, जिसको छूकर तकदिशे हरम से आसना हूँ। एक ऐसी गली है, जिसकी खातिर हर गली में भटक रहा हूँ। ए मुझको सुकूँ देनेवाले मसीहा! …

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महान संकट की ओर बढ़ रहें थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग-9)


कभी यूँ ही आओ मेरी आँखों में,कि मेरी नजर को खबर ना हो।मुझे एक रात नवाज दे,मगर उसके बाद सुबह ना हो।बुल्लेशाह को उर्स की उस एक रात का शिद्दत से इंतजार था। धड़कनो की सारी इबादत दाँव पर लगी थी। एक-2 श्वास शबरी बन चुकी थी। अगले दिन की सुबह खिल आई। रोजाना सुबह …

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महान संकट की ओर बढ़ रहे थे कदम और बुल्लेशाह अनजान था (भाग- 8)


कल हमने पढ़ा कि किस प्रकार आश्रम मे मुर्शीद इनायत शाह अपने मुरीद बुल्लेशाह के हर एक तड़प पर तड़प रहे है आज हम फिर से बुल्लेशाह के पास वापस आते है आज बुल्लेशाह को अपने कमरे के बाहर खूब चहल पहल सुनाई दी आंसू पोछकर वह बाहर आया देखा कि आज तवायफ खाने मे …

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