क्षणभंगुरता में एकमात्र सहारा
आयुः कल्लोललोलं कतिपयदिवसस्थायिनी यौवनश्री- रर्थाः संकल्पकल्पा घनसमयतडिद्विभ्रमा भोगपूगाः। कण्ठाश्लेषोपगूढं तदपि च न चिरं यत्प्रियाभीः प्रणीतं ब्रह्मण्यासकतचित्ता भवत भवभयाम्भोधिपारं तरीतुम्।। जीवन ऊँची तरंगों की तरह तुरंत नाश पाने वाला है। यौवन की सुंदरता थोड़े दिनों तक रहने वाली है। अर्थ यानी धन, धान्य, धाम, ग्राम, पशु आदि पदार्थ मनोरथ के समान अस्थिर हैं। सारे भोग वर्षाकालिक …