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देश-धर्म-संस्कृति सेवा का सरल माध्यमः सोशल मीडिया


अबदल एक आत्मदेव हैं और परिवर्तन माया की पहचान है । दुनिया एक-सी कभी नहीं रहती, आवश्यकता आविष्कार की जननी है । जब लोगों में आध्यात्मिकता अधिक थी तब लोक-व्यवस्था के लिए राजशाही पर्याप्त थी । धीरे-धीरे आध्यात्मिकता के ह्रास से इन्द्रिय-उन्मुखता बढ़ने पर जब राजसत्ता से प्रजा शोषित होने लगी तब राजशाही को हटाकर लोकशाही अर्थात् लोकतंत्र की स्थापना हुई और संचार-माध्यम ( मीडिया ) राज-प्रभाव से मुक्त हो जनता की आवाज बनकर लोक-व्यवस्था सबल करने की नयी भूमिका में सामने आया । परंतु थोड़े समय में ही मीडिया पर स्वच्छंदता हावी होने लगी । चंद पैसों, तुच्छ भोगों व झूठी ख्याति के लिए सत्य बेचा जाने लगा, जनता को भ्रमित किया जाने लगा । लोकतंत्र में भी लोग पिसे जाने लगे, सज्जन सताये जाने लगे, जनता की आवाज दबायी जाने लगी । ऐसे समय में निःशुल्क सोशल मीडिया, विशेषकर ट्विटर लोकतंत्र में जनता की आवाज होकर उभरा है । राजनीतिक, धनाढ्य, बुद्धिजीवी, पत्रकार आदि सभी वर्गों के लोग जो देखते हैं, सोचते हैं और सांझा करते हैं उसे सबसे अधिक प्रभावित करने वाला यह एक मंच बन गया । अन्ना हजारे द्वारा 2011 में हुआ जन-आन्दोलन सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर की शक्ति के प्रयोग का अच्छा उदाहरण है । यहाँ जानते हैं ट्विटर क्या है और इसके द्वारा कैसे हर व्यक्ति अपनी आवाज, माँग समाज तक पहुँचा सकता है ।

क्या है ट्विटर ?

ट्विटर एक व्यापक सोशल मीडिया-प्लेटफार्म है, जिस पर हर प्रकार के उपयोगकर्ता ( यूज़र्स ) मैसेज द्वारा, जिसे ‘ट्वीट’ कहते हैं, बातचीत कर सकते हैं और एक-दूसरे की बातों को समाज के राजकीय, बुद्धिजीवी, पत्रकार आदि विभिन्न वर्गों के बीच रख सकते हैं ।

मीडिया उठाता है यहाँ से मुद्दे

न्यूज चैनल्स भी ट्विटर से मुद्दे उठाते हैं और उसके रुझानों पर दृष्टि रखते हुए शीर्ष के रुझानों ( टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक्स ) पर खबरें बनाते हैं ।

राजनेताओं को प्रभावित करता है यह

राजनेतागण यह जानने में रस लेते हैं कि देशवासियों का रुख किस ओर है । अतः किसी सामाजिक अथवा आध्यात्मिक विषय पर उनका ध्यान खींचने में ट्विटर की अहम भूमिका है । जनता से संवाद के लिए भी राजनेता इसका उपयोग करते हैं ।

अन्याय के खिलाफ आवाज

अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ट्विटर ट्रेंड्स बड़े प्रभावकारी सिद्ध हो रहे हैं । ट्विटर केवल भारत के मीडिया, राजनीति और समाज को ही प्रभावित नहीं करता है बल्कि विश्व-स्तर पर इसका प्रभाव पड़ता है । संतों-सज्जनों के प्रति हो रहे अन्याय, पक्षपात, सामाजिक कुरीतियाँ आदि विषयों पर देश का हर व्यक्ति प्रहरी बनकर देश, धर्म, संस्कृति, संत और समाज के हित में ट्विटर द्वारा अपना योगदान दे सकता है ।

संतों व संस्कृति के प्रसाद का वितरण

आज परमाणु हथियार ( न्यूक्लियर वैपनज़ ) अपने तरकश में रखकर दुनिया के देश अमन और शांति चाह रहे हैं वह भी तब जब युद्ध जैसा माहौल बात-ही-बात में बन जाता है । ऐसे में भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक ज्ञान विश्ववासियों के लिए महान शांतिप्रद साबित होगा । परिवर्तनशील संसार में अबदल व अद्वितीय आत्म-तत्त्व है, जो सबका अपना-आपा है, सबकी असलीयत है । इस आत्म-तत्त्व का ज्ञान विद्वेष-निवर्तक है और वसुधैव कुटुम्बकम् की अर्थात् सारे विश्व को एक परिवार बना देने की आधारशिला है । भारत और उसके ब्रह्मज्ञानी संत इसी ज्ञान के लिए पूरे विश्व में माने जाते हैं । पूरी दुनिया ब्रह्मज्ञान की इस उदारता का हृदयपूर्वक लाभ लेकर निर्दुःख हो सकती है । संत और संस्कृति के इस ज्ञान-प्रसाद का वितरण कर विश्व में सुख-शांति के सम्पादन हेतु ट्विटर आदि सोशल मीडिया की अहम भूमिका दृष्टिगोचर हो रही है ।

जहाँ एक ओर इन माध्यमों का द्वेष, घृणा फैलाने वाले लोगों द्वारा दुरुपयोग हुआ है वहीं अब महापुरुषों के सत्यनिष्ठ, उज्जवल, दिव्य जीवन, वेदांत से ओत-प्रोत सत्संग, सद्विचार, सद्भाव, संयम, सदाचार, ईश्वरीय प्रेम, वैश्विक शांति एवं प्राणिमात्र की सेवा का प्रचार-प्रसार करने वाले भगवत्प्रेमी सज्जनों व देश-धर्म-संस्कृतिप्रेमियों द्वारा इन साधनों का सदुपयोग भी हो रहा है ।

किन्हीं मनीषी ने सच ही कहा है कि ″अगर सत्य के लिए आवाज उठाने वालों की संख्या कम हो तो विश्व के लोग असत्य को ही सत्य मान लेते हैं । अतः सत्य के लिए ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को आवाज उठानी चाहिए ।″

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2022, पृष्ठ संख्या 28, 29 अंक 351

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सेवा का स्वरूप


आपकी सेवा का प्रेरक स्रोत क्या है ? किसी मनोरथ की पूर्ति के लिए सेवा करते हैं ? क्या अहंकार के श्रृंगार की आकांक्षा है ? क्या सेवा के द्वारा किसी को वश में करना चाहते हैं ? तो सुन लीजिये, यह सेवा नहीं है, स्वार्थ का तांडव नृत्य है । अपनी सेवा को पवित्र रखने के लिए सूक्ष्म दृष्टि की आवश्यकता होती है ।

आपकी सेवा में किसी से स्पर्धा है ? आप किसी की सेवा से अपनी सेवा की तुलना करते हैं ? दूसरे को पीछे करके स्वयं आगे बढ़ना चाहते हैं ? किसी दूसरे की सेवा को देखकर आपको जलन होती है ? क्या आप ऐसा सोचते हैं कि अमुक व्यक्ति के कारण मेरी सेवा में बाधा पड़ती है ? यदि ‘हाँ’ तो स्पष्ट है कि आप सेवा के मर्मस्पर्शी अंतरंग रूप को नहीं देख पाते । सेवा चित्त को सरल, निर्मल एवं उज्जवल बनाती है । उसमें अनुरोध-ही-अनुरोध है, किसी का विरोध या अवरोध नहीं है ।

श्रद्धा से सम्पृक्त ( युक्त ) सेवा का नाम ही धर्म है । स्नेहयुक्त सेवा वात्सल्य है । मैत्री-प्रवण ( मित्रता के अनुराग में ) सेवा ही सख्य ( मित्रभाव ) है । मधुर सेवा ही श्रृंगार है, लूट-खसोट नहीं । प्रेम सेवा ( आत्मदृष्टि, अभेददृष्टि से की गयी सेवा ) ही अमृत है । सेवा संयोग में ( अर्थात् सेव्य के सान्निध्य में ) रस सृष्टि करती है और (सेव्य) के वियोग में हित-वृष्टि करती है (अर्थात् सेव्य का जिस में हित हो वैसा आचरण कराती है ) । सेवा वह दृष्टि है जो पाषाण-खंड को ईश्वर बना दे, मिट्टी के एक कण को हीरा कर दे । सेवा मृत को भी अमर कर देती है । इसका कारण क्या है ? सेवा में अहंकार मिट जाता है, ब्रह्म प्रकट हो जाता है ।

सेवा निष्ठा की परिपक्वता के लिए उसका विषय एक होना आवश्यक है ( जैसे ब्रह्मस्वरूप सद्गुरु, परमात्मा ) । सबमें एक ईश्वर पर दृष्टि हो । एक की सेवा अचल हो जाती है और कोई भी वस्तु अपनी अचल स्थिति में ब्रह्म से पृथक नहीं होती । चल ही दृश्य होता है, अचल नहीं । किसी भी साधना में निष्ठा का परिपाक ही परम सिद्धि है । यदि विचार की उच्च कक्षा में बैठकर देखा जाय तो निःसन्देह अद्वैत स्थिति ( ब्राह्मी स्थिति ) और अद्वैत वस्तु ( आत्मा ) का बोध हो जायेगा । अंतर्वाणी स्वयं महावाक्य बनकर प्रतिध्वनित होने लगेगी ( सेवा अचल होने पर सेवानिष्ठ के हृदय में महावाक्य स्वतः स्फुरित हो के अविद्याजन्य परिच्छिन्नताओं का बाध कर आत्मवस्तु की अखंडता का बोध कराके ब्राह्मी स्थिति प्राप्त करा देगा ) । अतः साधना का प्रारम्भ सेवा से होकर सेवा की अनन्यता, अनंतता एवं अद्वितीयता में ही परिसमाप्त हो जाता है ।

धनभागी हैं वे, जो सच्चाई से ईश्वर के रास्ते चलते हैं । दिखावे व धोखेबाजी से बचकर अपने अंतरात्मा को पूर्ण परमात्मा से, ब्रह्म से एक अनुभव करते हैं ।

ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे न शेष ।

मोह कभी न ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश ।।

पूर्ण गुरु कृपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान ।

आसुमल से हो गये, साँईं…

अपने पर कृपा करिये, धोखेबाजी से बचकर सच्चाई से सेवा करके सत्स्वरूप ईश्वर से मिलने का साधन सच्चाई से करिये ।

कपट गाँठ मन में नहीं, सब सों सरल सुभाव ।

नारायण वा भगत की लगी किनारे नाव ।।

ॐ प्रभु ! भगवान करें कि भगवान में प्रीति हो । सबका मंगल, सबका भला ।

अपनी श्रद्धा, अपना आचरण ऐसा होना चाहिए कि भगवान भी हम पर भरोसा करें कि यहाँ कुछ देने जैसा है । सद्गुरु को भी भरोसा हो कि यहाँ कुछ देंगे तो टिकेगा । सद्गुरु और भगवान तो देने के लिए उत्सुक हैं, लालायित हैं । – पूज्य बापू जी

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 16, 17 अंक 347

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जीवन का मौलिक प्रश्न और उसका समाधान


आज का मौलिक प्रश्न हमारे सामने भोग की रुचि का नाश तथा सरस जीवन की प्राप्ति का है । इस मौलिक प्रश्न को हल करने के लिए ही हमें मिले हुए शरीर के द्वारा परिवार की, समाज की तथा संसार की सेवा करनी है ।

भोग नहीं करना है, सेवा करनी है । सेवा क्या है ? भोग में अपना सुख निहित होता है, सेवा में परहित निहित होता है, तो हम अपने सुख के लिए मिली हुई वस्तु यानी शरीर, योग्यता, परिस्थिति, सामर्थ्य आदि का उपयोग न करें अपितु परहित में इनका सदुपयोग, प्राप्त विवेक के प्रकाश में करें । इससे शरीर और संसार का परस्पर निर्वाह सिद्ध हो जायेगा । इससे भोग की रुचि का नाश होकर जीवन सरस हो जायेगा । अपने में ही प्रेम-तत्त्व की अभिव्यक्ति हो जायेगी तथा जीवन का मौलिक प्रश्न सदा-सदा के लिए हल हो जायेगा ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 10, अंक 347

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