वे ही लोग संसार में विफल होते हैं जो ज्यादा स्वार्थी होते हैं, जिन्होंने दूसरों की भलाई की नहीं । ऐसा नहीं कि डिग्री नहीं है तो विफल हैं । डिग्री के अभाव का विफलता से कोई लेना-देना नहीं । आप तन से, मन से, मति से अगर दूसरे के कष्ट निवारण में लगते हैं, दूसरे के काम आने में लगते हैं तो डिग्री न होने पर भी विफल होने का सवाल ही नहीं है । अगर अक्ल, होशियारी से, डिग्री से दूसरे का शोषण करके सुखी होना चाहते हैं तो डिग्री होने पर भी विफल होना स्वाभाविक है । प्रकृति का नियम है – जो देता है वह पाता है । जो अपने लिए ही सोचता है वह सब खोता है । ये फूल सुगंधित और पीले-पीले क्यों हैं ? कि पीला रंग इन्होंने लौटाया है, दिया है तो पीला ही रंग इनके पास रह गया ।
गुलाब गुलाबी क्यों है ? कि सप्तरंगों में से गुलाबी रंग परावर्तित किया है, जो दिया है तो गुलाबी उसके पास रह गया । आप जो देते हैं वही आपके पास रह जाता है और जो रखते हैं वह व्यर्थ हो जाता है । डॉक्टर की डॉक्टरी को धिक्कार है अगर मरीजों की सेवा में नहीं लगती है । मास्टर की मास्टरी को धिक्कार है अगर विद्यार्थियों की पढ़ाई में ईमानदारी से नहीं लगती है । इंजीनियर की इंजीनियरिंग को धिक्कार है अगर लोगों के काम नहीं आती । आपके पास जो योग्यता है वह आपने अकेले ने ही नहीं बनायी है । आपके विद्वान होने में कॉपी, पेन, मेज बनाने वाले और विद्यालय की इमारत बनाने वाले का भी सहयोग है । कइयों के सहयोग से आप स्नातक हुए हैं या पढ़े-लिखे हैं । जो भी आपके पास सूझबूझ है उसमें कइयों का योगदान है तो यदि आपकी सूझबूझ और योग्यता कइयों के काम नहीं आती तो उस सूझबूझ व योग्यता को धिक्कार है ! धिक्कार है !!
जो विफल होते हैं वे सेवा खोज लें । विफलता को भगाना है तो परहित का काम करो, सेवा में लग जाओ । सेवा से ही सेवा फलेगी । बिना सेवा के किसी का विकास हुआ हो ऐसा आज तक हमने देखा-सुना नहीं । जिसको भी सफल होना हो वह उसके पास जो योग्यता है उसे दूसरों के काम में लगा दे और उसका ढिंढोरा न पीटे । ‘मैंने यह सेवा की… मैंने दो अनुष्ठान किये, मैंने फलाना किया….।’ ऐसी रट न लगाये । जो भी करते हो ईश्वर की प्रसन्नता के लिए करो, अंतर्यामी परमात्मा देख रहा है ।
नेकी कर कुएँ में डाल ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 17 अंक 345 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ