आयुर्वेद के महान ग्रंथ चरक संहिता (विमान स्थान, अध्याय ३) में एक कथा आती हैः ‘एक बार महर्षि पुनर्वसु आत्रेय जंगल में जा रहे थे। उनके पीछे उनका शिष्य अग्निवेश था।
एकाएक महर्षि रुके और लम्बी साँस लेकर बोलेः “महानाश आने को है!”
अग्निवेश ने पूछाः”कैसा महानाश? गुरुदेव?”
“जल दूषित हो रहा है, पृथ्वी बिगड़ रही है, वायु, तारे आकाश सूर्य और चन्द्र बिगड़ रहे हैं। अरे, अनाज में भी शक्ति नहीं रहेगी। औषधियाँ अपना प्रभाव छोड़ देंगी? पृथ्वी पर तारे टूट कर गिरेंगे। विनाशक आँधियाँ चलेंगी। ध्वंसकारी भूकम्प आयेंगे। महानाश का महातांडव जाग उठेगा। मनुष्य बच नहीं पायेगा…. नहीं बच पायेगा! “
अग्निवेश ने हाथ जोडकर पूछाः “गुरुदेव आप यह भविष्यवाणी क्यों कर रहे हैं? आपने तो ऐसा ग्रंथ रचा है कि हर कोई. रोग का सामना कर सके। संसार की सभी बीमारियों के उपचार लिख दिये। तब यह विनाश आयेगा तो क्यों? “
“इसलिए आयेगा कि लोग धर्म छोड़ के अधर्म करने लगेंगे, सत्य त्याग के असत्य बोलेंगे। सत्य और धर्म में रुचि नहीं रहेगी। “
“इसका कारण क्या होगा गुरुदेव?“
“बुद्धि का बिगड़ जाना ही इस महानाश का कारण होगा। जब बुद्धि बिगड़ जाती है, जब वह सत्य का मार्ग छोड़कर असत्य की ओर बढ़ती है तब धर्म-कर्म में रुचि नहीं रहती।“
भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता (२-६३) में कहा हैः बुद्धिनाशात्प्रणश्यति /
“बुद्धि का नाश होने से पुरुष का नाश हो जाता है”
बुद्धि के बिगड़ जाने से नाना प्रकार के रोग लग जाते हैं। बुदधिनाश से केवल शारीरिक रोग ही नहीं लगते, सामाजिक राजनैतिक, आर्थिक और आत्मिक – सभी तरह के रोग सताने लगते हैं। बुद्धि का नाश होने पर महानाश जाग उठता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2020, पृष्ठ संख्या 24, अंक 331
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