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Bhakton Ke Anubhav

मंत्रशक्ति से अकाल दूर


मार्च माह में ऐरोली (मुम्बई) में आयोजित होली कार्यक्रम के दौरान मीडिया ने पूज्य बापूजी के लिए अनर्गल प्रलाप अलापा। इससे हमको बड़ा दुख हुआ। मंत्र-विज्ञान के लिए कुछ चैनलों ने जो चुनौती दी, उसे हम सब साधकों ने स्वीकार कर लिया। सातारा जिले (महा.) में खटाव तहसील पिछले दो सालों से सूखाग्रस्त है। यहाँ भयंकर अकाल के कारण लोगों को तथा जानवरों को पीने के लिए पानी नहीं था। टैंकर से पानी आता था। पुसेगाँव के पास एक बड़ा तालाब है- ‘नेर’। उसमें बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गयी थीं। यहाँ के ४००-५०० साधकों ने मिलकर पंडाल लगवाया और २४ से २६ मई तक त्रिकाल संध्या में श्री आशारामायण पाठ, गुरुमंत्र का जप, सत्संग व हवन किया।

पूज्य बापूजी की कृपा से पूर्णाहुति के समय अचानक बरसाती बादल घिर आये (देखें तस्वीरें आवरण पृष्ठ ४ पर) और बूँदा-बाँदी शुरू हो गयी। कुछ ही मिनटों में घणघोर वर्षा होने लगी। पिछले दो वर्षों से भीषण अकाल के कारण बारिश बिलकुल नहीं हुई थी। सभी लोग खुशी से नाचते हुए बारिश में भीगने लगे। वह बारिश चली तो ऐसी चली कि रातभर मूसलाधार वर्षा हुई। विक्टोरिया रानी के शासनकाल में बने यहाँ के विशाल ‘नेर’ तालाब की बड़ी-बड़ी दरारें भर गयीं। केवल दो दिनों में ही एक तिहाई तालाब भर गया। चार दिन तक ऐसी बरसात हुई कि हमारे क्षेत्र के बड़े-बड़े सूखे नालों में बाढ़ आ गयी। कईं गाँवों के सूखे कुएँ और बावड़ियाँ पानी से भर गयीं। सभी ने मंत्र-विज्ञान का प्रभाव प्रत्यक्ष देखा और कइयों ने आकर हमें धन्यवाद दिया। हमने उन सबको बताया कि धन्यवाद देने हैं तो पूज्य बापूजी को दो, जिनकी कृपा से मंत्र-विज्ञान की महिमा हम सबके सामने प्रत्यक्ष हुई है।

तुकाराम सालुंखे, विसापुर, जि. सातारा (महा.)

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई २०१३, पृष्ठ संख्या ३१, अंक १

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गुरु कृपा से मिला नया जीवन


मैं ग्वालियर आश्रम में सत्साहित्य सेवा केन्द्र में सेवा करता हूँ। 2 फरवरी 2013 को दोपहर 2.30 बजे फाइलें लेकर हिसाब कर रहा था तभी अचानक मैं कुर्सी से गिर गया। मेरा शरीर अकड़ने लगा, मुँह से झाग निकलने लगी और मैं बेहोश हो गया।

मुझे बाद में बताया गया कि आश्रम के साधकों ने मेरी हालत देखकर मुझे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया। जाँच के बाद डॉक्टर ने कहा कि “मलेरिया का बुखार दिमाग पर चढ़ गया है और कुछ भी हो सकता है। अतः इसके घरवालों को सूचित कर शीघ्र बुला लें।”

ऐसी विकट परिस्थिति में तुरंत पूज्य बापू जी तक खबर पहुँचायी गयी। करूणासिंधु बापू जी ने कहा कि “उसे सुबह-शाम तुलसी का रस दो और सतराम को कहना कि बापू जी ने कहा है कि तू ठीक हो जायेगा।” साथ ही होश में आने पर आरोग्य मंत्र का जप करने का भी निर्देश दिया। बापू जी तक खबर का पहुँचना और मेरी स्थिति में सुधार होना – ये एक ही समय हुई दो घटनाएँ मेरे गुरुभाइयों ने प्रत्यक्ष देखीं। 2-3 घंटों में ही मैं पूरी तरह होश में आ गया।

कैसी है गुरुदेव की करूणा-कृपा, जो अपने भक्तों की पुकार सुनते ही उनकी तुरंत सँभाल करते हैं। 3-4 दिनों में ही मैं स्वस्थ हो आश्रम आ गया। लौटते समय डॉक्टर ने कहा कि “आपका बहुत बुरा समय था जो कि टल गया।”

आश्चर्य की बात एक और भी है, 30 जनवरी को मेरे लिए पूज्यश्री से प्रयाग कुम्भ के सत्संग में जाने की आज्ञा माँगी गयी थी परंतु अंतर्यामी गुरुदेव मेरा नाम सुनकर मौन हो गये थे। जो उस अकाल पुरुष परमात्मा में एकाकार हुए हों, उन्हें तीनों कालों का पता चल जाये तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है ! अगर मैं आज्ञा बिना चला जाता तो पता नहीं क्या दुर्गति होती ! आज्ञा न मिलने पर रूका रहा तो सुरक्षा हो गयी, जीवनदान मिल गया।

गुरु की सेवा साधु जाने। गुरूसेवा क्या मूढ़ पिछाने।।

मैं तो इसमें जोडना चाहूँगा-

गुरुआज्ञा फल साधक जाने। गुरुआज्ञा क्या मूढ़ पिछाने।।

ऐसे अंतर्यामी, परम सुहृद पूज्य बापू जी के श्रीचरणों में शत-शत प्रणाम।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2013, पृष्ठ संख्या 31, अंक 244

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मुझे तो गुरुदेव ने बचाया


मेरठ में पूज्य बापू जी का सत्संग होने वाला था। सत्संग के फलैक्स लगाने के लिए मैं खम्भे पर चढ़ा। जिस तार से फलैक्स बाँध रहा था, वह तार बिजली के तार (जिसमें 11000 वोल्ट का करंट था) से अनजाने में छू गया। खूब स्पार्किंग हुई। मैं खम्भे से चिपक गया, मेरे पूरे कपड़े जल गये। मुझे लगा कि अब मैं नहीं बचूँगा। मन-ही-मन मैं बापू जी से कातरभाव से प्रार्थना की। उसी समय नीचे लगे ट्रांसफार्मर में जोर का विस्फोट हुआ और मैं लगभग 20 फुट ऊपर से गिरकर बेहोश हो गया। नीचे खड़े गुरुभाइयों ने बताया कि ʹकरंट ने पहले तुमको ऊपर की ओर फेंका था, फिर तुम नीचे गिरे थे।ʹ गिरने के बाद मैंने महसूस किया जैसे मेरा सूक्ष्म शरीर आकाश में सूखे पत्ते की तरह लहरा रहा है और स्थूल शरीर निर्जीव पड़ा है। पर कुछ समय जब होश आया तो देखा कि शरीर बुरी तरह जलकर घावग्रस्त हो गया है। मुझे अस्पताल पहुँचाया गया।

डॉक्टरों ने कह दिया था कि एक हाथ बेकार हो चुका है। इतने गहरे घाव, इतनी चोटें, जोरदार बिजली का झटका… किंतु पूज्य गुरुदेव की कृपा से मैं एक माह में पूर्णतः स्वस्थ हो गया। सत्संग में जो सुना था कि शिष्य जब सदगुरु से दीक्षा लेता है तब से गुरु उसके साथ होते हैं, उसके रक्षक होते हैं, वह व्यवहार में अनुभव भी कर लिया। सेवा के कारण मेरा तरतीव्र प्रारब्ध कट गया। नवजीवन देने वाले ऐसे सर्वसमर्थ सदगुरुदेव को अनंत बार प्रणाम ! मैं उऩका आजीवन ऋणी रहूँगा। जिनकी सेवा के कारण नवजीवन मिला, सारा जीवन उन्हीं की सेवा में लगाऊँगा।

शिवशंकर रघुवंशी, भवानीपटना (ओड़िशा) मो. 9777595866

स्रोतः ऋषि प्रसाद, फरवरी 2013, पृष्ठ संख्या 30, अंक 242

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