Tag Archives: Chaturmaas

Chaturmaas

सत्कर्मों का महाफल देने वाला कालः चतुर्मास


पूज्य बापू जी

चतुर्मास व्रतः 15 जुलाई 2016 से 11 नवम्बर 2016)

चतुर्मास में भगवान नारायण एक रूप में तो राजा बलि के पास रहते हैं और दूसरे रूप में शेषशय्या पर शयन करते हैं, अपने योग स्वभाव में, शांत स्वभाव में, ब्रह्मानंद स्वभाव में रहते हैं। अतः इन दिनों में किया हुआ जप, संयम, दान, उपवास, मौन विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी है। भगवान शेषशय्या पर सोते हैं, अतः हमें धरती या पलंग पर सादा बिस्तर अथवा कम्बल बिछाकर शयन करना चाहिए।

चतुर्मास में दीपदान करने वाले की बुद्धि, विचार और व्यवहार में ठीक ज्ञान-प्रकाश की वृद्धि होती है और कई दीपदान करने का फल भी होता है। इन दिनों में प्रातः नक्षत्र (तारे) दिखें उसी समय उठ जाय, नक्षत्र-दर्शन करे। चौबीस घंटे में एक बार भोजन करे – ऐसे व्रत परायण व्यक्ति को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिल जाता है। (पद्म पुराण, उत्तर खण्ड)

चतुर्मास में केवल दूध पर रहने वाला अथवा केवल फल पर रहने वाले के पापों का नाश हो जाता है तथा साधन भजन में बड़ा बल मिलता है – ऐसा स्कंद पुराण में लिखा है। नमक का त्याग कर सकें तो अच्छा है। जो दही का त्याग करता है उसको गोलोक की प्राप्ति होती है।

चतुर्मास में दोनों पक्षों की एकादशी रखनी चाहिए। बाकी दिनों में गृहस्थी को शुक्ल पक्ष की ही एकादशी रखनी चाहिए। चतुर्मास में शादी-विवाह, सकाम कर्म वर्जित हैं। तिल व आँवला मिश्रित अथवा बिल्वपत्र के जल से स्नान करना पाप नाशक, प्रसन्नता दायक होगा। अगर ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय…. 5 बार जप करके फिर पानी का लोटा सिर पर डाला तो पित्त की बीमारी, कंठ का सूखना – यह कम हो जायेगा, चिड़चिड़ा स्वभाव भी कम हो जायेगा।

चतुर्मास में पाचनतंत्र दुर्बल होता है तो खानपान सादा, सुपाच्य होना चाहिए। इन दिनों पलाश की पत्तल पर भोजन करने वाले को एक-एक दिन एक-एक यज्ञ करने का फल होता है, वह धनवान, रूपवान और मानयोग्य व्यक्ति बन जायेगा। पलाश की पत्तल पर भोजन बड़े-बड़े पातकों का नाशक है, ब्रह्मभाव को प्राप्त कराने वाला होता है। नहीं तो वटवृक्ष के पत्तों या पत्तल पर भोजन करना पुण्यदायी कहा गया है।

भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाओ तो पूरे मंदिर में बिल्वपत्र का हवामान रहेगा और वही हवा श्वास के द्वारा व्यक्ति लेगा, इससे वायु-प्रकोप दूर होगा तथा वनस्पति व मंत्र का आपस में जो मेल होगा उसका भी लाभ मिलेगा। इसलिए सावन महीने में बिल्वपत्र की महिमा है।

इन 4 महीनों में अगर पति-पत्नी हैं, तब भी ब्रह्मचर्य का पालन करना आयु, आरोग्य और पुष्टि में वृद्धि करता है। भोग-विलास, शारीरिक स्पर्श ज्यादा हानि करेगा। इस समय सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं तो जीवनी शक्ति कमजोर रहती है, जिससे वीर्य, ओज कम बनता है। जो विदेशी लोग चतुर्मास के महत्त्व को नहीं जानते वे ‘यह पाऊँ, यह खाऊँ….’ में उलझते हैं, विकलांग, चिड़चिड़े, पति बदलू, पत्नी बदलू, फैशन बदलू हो जाते हैं, फिर भी दुःखी व अशांत रहते हैं। जो इसका महत्त्व जानते हैं और नियम पालते हैं वे कुछ बदलू नहीं होते फिर भी अबदल आत्मा में उनका रसमय जीवन होता है। कितनी असुविधा होती है भारतवासियों को, फिर भी शांति, आनंद और मस्ती मजे में रह रहे हैं। और कई माई-भाई ऐसे हैं कि जो वे कह देते हैं वह हो जाता है अथवा जो होनी होती है वह उनको पता चल जाती है। विदेशियों के पास ऐसा सामर्थ्य नहीं है।

चतुर्मास में निंदा न करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, किसी भी अविवाहित या दूसरे की विवाहित स्त्री पर बुरी नजर न करे, संत-दर्शन करे, संत के वचन वाले सत्शास्त्र पढ़े, सत्संग सुने, संतों की सेवा करे और सुबह या जब समय मिले भ्रूमध्य में ॐकार का ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है।

मिथ्या आचरण का त्याग कर दे और जप अनुष्ठान करे तो उसे ब्रह्मविद्या का अधिकार मिल जाता है। जिसने चतुर्मास में संयम करके अपना साधन भजन का धन इकट्ठा नहीं किया मानो उसने अपने हाथ से अमृत का घड़ा गिरा दिया। और मासों की अपेक्षा चतुर्मास में बहुत शीघ्रता से आध्यात्मिक उन्नति होती है। जैसे चतुर्मास में दूसरे मौसम की अपेक्षा पेड़ पौधों की कलमें विशेष रूप से लग जाती हैं, ऐसे ही चतुर्मास में पुण्य, दान, यज्ञ, व्रत, सत्य आदि भी आपके गहरे मन में विशेष लग जाते हैं और महाफल देने तक आपकी मदद में रहते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2016, पृष्ठ संख्या 24,25 अंक 282

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

आध्यात्मिक खजाना भरने का सुवर्णकालः चतुर्मास


पूज्य बापू जी  (27 जुलाई 2015 से 22 नवम्बर 2015 तक)

चतुर्मास में किया हुआ  व्रत, जप, संयम, दान, स्नान बहुत अधिक फल देता है। इन दिनों में स्त्री सहवास करने से मानव का पतन होता है। यही कारण है कि चतुर्मास में शादी-विवाह आदि सकाम कर्म नहीं किये जाते हैं।

इन चार महीनों में जो ब्रह्मचर्य पालते हैं और धरती पर सोते हैं, उनकी तपस्या और उनका आध्यात्मिक विकास तोल-मोल के बाहर हो जाता है। पति-पत्नी होते हुए भी संयम रखें। किसी का अहित या बुरा सोचे नहीं, करे नहीं तथा ‘मैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं और सर्वत्र हैं’ ऐसा नजरिया बना ले तो चार महीने में उसके पाप-ताप मिट जायेंगे और भगवान की शांति, प्रेरणा और ज्ञान यूँ मिलता है !

चतुर्मास व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने का फल सहज में ही मिलता है। चतुर्मास में मौन, भगवन्नाम जप, शुभकर्म आदि का आश्रय लेकर हीन कर्म छोड़े और भगवान की स्मृति बढ़ाये हुए धरती पर (दरी या कम्बल बिछाकर) शयन करे अथवा गद्दा-तकिया हटाकर सादे पलंग पर शयन करे और ‘नमो नारायणाय’ का जप बढ़ा दे तो उसके चित्त में भगवान आ विराजते हैं।

चतुर्मास में क्या त्यागने से क्या फल ?

गुड़ के त्याग से मधुरता, तेल(लगाना, मालिश आदि) के त्याग से संतान दीर्घजीवी तथा सुगंधित तेल के त्याग से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

असत्य भाषण, क्रोध, शहद और मैथुन के त्याग से अश्वमेध यज्ञ का फल होता है। यह उत्तम फल, उत्तम गति देने में सक्षम है।

चतुर्मास में परनिन्दा का विशेष रूप से त्याग करें।

परनिन्दा महापापं परनिन्दा महाभयम्।

परनिन्दा महद्दुःखं न तस्याः पातकं परम्।।

परनिन्दा से बड़ा कोई पाप नहीं है। और पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त करने से माफ हो जाता है लेकिन परनिन्दा तो जानबूझकर की है, उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं है।

विशेष लाभदायी प्रयोग

आँवला, तिल व बिल्वपत्र आदि से स्नान करे तो वायुदोष और पापदोष दूर होता है।

वायु की तकलीफ हो तो बेल-पत्ते को धोकर एक काली मिर्च के साथ चबा के खा लें, ऊपर से थोड़ा पानी पी लें। यह बड़ा स्फूर्तिदायक भी रहेगा।

पलाश के पत्तों में भोजन करने से ब्रह्मभाव की प्राप्ति होती है।

इन दिनों में कम भोजन करना चाहिए।

जल में आँवला मिलाकर स्नान करने से पुरुष तेजवान होता है और नित्य महान पुण्य प्राप्त होता है।

एकादशी का व्रत चतुर्मास में जरूर करना चाहिए।

बुद्धिशक्ति की वृद्धि हेतु

चतुर्मास में विष्णु जी के सामने खड़े होकर ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करने वाले की बुद्धि बढ़ती है (‘पुरुष सूक्त’ के लिए पढ़ें ऋषि प्रसाद, जुलाई 2012 का अंक)। बच्चों की बुद्धि अगर कमजोर हो तो ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ भगवान नारायण के समक्ष करवाओ, बुद्धि बढ़ेगी। भ्रूमध्य में सूर्यनारायण का ध्यान करवाओ, बुद्धि बढ़ेगी।

स्वास्थ्य रक्षक प्रयोग

बारिश के दिनों में धरती पर सूर्य की किरणें कम पड़ती हैं इसलिए जठराग्नि मंद पड़ जाती है और वायु (गैस) की तकलीफ ज्यादा होती है। अतः 50 ग्राम जीरा व 50 ग्राम सौंफ सेंक लें। उसमें 20-25 काला नमक तथा थोड़ी इलायची मिला के पीसकर रख लें। वायु, अम्लपित्त (एसिडिटी), अजीर्ण, पेटदर्द, भूख की कमी हो तो 1 चम्मच मिश्रण पानी से सेवन करें। इसमें थोड़ी सोंठ मिला सकते हैं।

दीर्घजीवी व यशस्वी होने हेतु

भगवान ब्रह्मा जी कहते हैं-

सद्धर्मः सत्कथा चैव सत्सेवा दर्शनं सताम्।

विष्णुपूजा रतिर्दाने चातुर्मास्यसुदुर्लभा।।

‘सद्धर्म (सत्कर्म), सत्कथा, सत्पुरुषों की सेवा, संतों का दर्शन-सत्संग, भगवान का पूजन और दान में अनुराग – ये सब बातें चौमासे में दुर्लभ बतायी गयी हैं।

(स्कन्द पुराण, ब्रा. खण्ड, चातुर्मास्य माहात्म्यः 3.11)

ये सद्गुण तो मनुष्य को सारे इष्ट दे देते हैं, सारे दुःखों की कुंजियाँ दे देते हैं। इनसे मनुष्य दीर्घजीवी, यशस्वी होता है। जप, सेवा सत्कर्म है, भूखे को अन्नदान करना सत्कर्म है और खुद अन्न का त्याग करके शास्त्र में बताये अनुसार उपवास करना यह तो परम सत्कर्म है।

सुबह उठकर संकल्प करें

देवशयनी एकादशी को सुबह उठकर संकल्प करना चाहिए कि ‘यह चतुर्मास के आरम्भवाली एकादशी है। पापों का नाश करने वाली यह एकादशी भगवान नारायण को प्रिय है। मैं भगवान नारायण, परमेश्वर को प्रणाम करता हूँ। कई नाम हैं प्यारे प्रभु के। आज के दिन मैं मौन रहूँगा, व्रत रखूँगा। भगवान क्षीर-सागर में कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मौन, समाधिस्थ रहेंगे तो इन चार महीनों तक मैं धरती पर सोऊँगा और ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा।’

एक वचन भिक्षा में दे दो

श्रावण मास, चतुर्मास शुरु हो रहा है तो मुझे भिक्षा में एक वचन दे दो कि ‘3,6 या 12 महीने का ब्रह्मचर्य व्रत रखेंगे।’ भीष्म पितामह, लीलाशाह जी बापू, अर्यमा देव को याद करना, वे आपको विकारों से बचने में मदद करेंगे। ॐ अर्यमायै नमः। इस मंत्र से, प्राणायाम से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है।

जैसे संसार-व्यवहार से वीर्य नाश होता है, वैसे बोलने से भी वीर्य का सूक्ष्म अंश खर्च होता है, अतः संकल्प करें कि ‘हम मौन रहेंगे, कम बोलेंगे, सारगर्भित बोलेंगे।’ रूपये पैसों की आवश्यकता नहीं है, इतना भिक्षा में दे दो कि ‘अब इस चतुर्मास में हे व्यासजी ! हे गुरुदेवो ! हे महापुरुषो ! आपकी प्रसादी पाने के लिए इस विकार का, इस गंदी आदत का हम त्याग करेंगे…..।’

मैं ईश्वर की प्रीति के निमित्त व्रत रखता था, जप करता था और ईश्वर की प्रीति के निमित्त ही सेवाकार्य करता था।

अपना आध्यात्मिक खजाना बढ़ायें

जैसे किसान बुवाई करके थोड़ा आराम करता है और खेत के धन का इंतजार करता है, ऐसे ही चतुर्मास में आध्यात्मिक धन को भरने की शुरुआत होती है। हो सके तो सावन के महीने में एक समय भोजन करे, जप बढ़ा दे। हो सके तो किसी  पवित्र स्थान पर अनुष्ठान करने के लिए चला जाय अथवा अपने घर में ही पूजा-कमरे में चला जाय और दूसरी या तीसरी सुबह को निकले। मौन रहे, शरीर के अनुकूल फलाहार, अल्पाहार करे। अपना आध्यात्मिक खजाना बढ़ाये। ‘आदर हो गया, अनादर हो गया, स्तुति हो गयी, निंदा हो गयी…. कोई बात नहीं, हम तो करोड़ काम छोड़कर प्रभु को पायेंगे।’ ऐसा दृढ़ निश्चय करे। बस, फिर तो प्रभु तुम्हारे हृदय में प्रकट होने का अवसर पैदा करेंगे।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2015, पृष्ठ संख्या 16,17 अंक 271

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

साधना का खजाना बढ़ाने का सुवर्ण अवसरः चतुर्मास


(8 जुलाई से 4 नवम्बर 2014)

पूज्य बापू जी

चतुर्मास में भगवान नारायण शेषशैया पर योगनिद्रा में विश्रांतियोग करते हैं। इन दिनों में मकान-दुकान बनाना, शादी-विवाह और सकाम मांगलिक कार्य करना वर्जित है। चतुर्मास में पति-पत्नि का सांसारिक व्यवहार न करने का व्रत लें तो आपका बल, बुद्धि, ओज और तबीयत अच्छी रहेगी। ब्रह्मचर्य व संयम से आपकी कांति बढ़ेगी। चरित्र की साधना-सत्य बोलना, हिंसा से बचना, मन और वचन से नीच कर्मों का त्याग करना – इससे आपके चतुर्मास में साधन-भजन में खूब बढ़ोतरी होगी।

संकल्प लें कि मौन रखेंगे, जप करेंगे, ध्यान करेंगे, नीच कर्मों का त्याग करेंगे। छल-कपट, झूठ आदि जिससे भी अंतरात्मा की अधोगति हो, उससे बचेंगे और जिससे भी आत्मोन्नति हो वह करेंगे।

चतुर्मास में बेईमानी के कामों से बचें और क्षमा के सदगुण का विकास करें। इन्द्रियशक्ति बढ़ाने के लिए मन का संयम, कुसंग का त्याग करना और ॐकार की उपासना करके शांतमना होना। गुरुमूर्ति के सामने 15 से 25 मिनट रोज एकटक देखकर ॐ का दीर्घ गुंजन करना। इससे गुरुमूर्ति से गुरु प्रकट हो जायेंगे, बातचीत करेंगे, चाहोगे तो गुरुजी के साथ भगवान भी प्रगट हो जायेंगे।

हृदय को पवित्र करने के लिए परोपकार, दान, नम्रता, श्रद्धा, सर्वात्मभाव और भगवन्नाम सुमिरन है और मानसिक साधना है गीता का स्वाध्याय, रामायण का पाठ, सत्संग, आध्यात्मिक स्थान पर जाना आदि। गुरु से मानसिक वार्तालाप करने से, मानसिक जप करने से, श्वासोच्छवास के साथ जप और आत्मज्ञान का विचार करना। इन सरल साधनों से मन इतनी आसानी से पवित्र होता है कि और बड़ी-बड़ी तपस्याएँ भी इतनी तेजी से मन को पवित्र नहीं कर सकती हैं।

चतुर्मास में अपना दिल दिलबर की भक्ति से भरना यही मुख्य काम है। गाय की सेवा करना, उपयोग करना चतुर्मास में हितकारी है। सत्संग का आश्रय लेना, गुरु, देवता एवं अग्नि का का तर्पण करना तथा दीपदान आदि करना चाहिए। ‘स्कन्द पुराण’ में आता है कि ‘पुण्यात्माओं के लिए गोभक्ति, गोदान, गौसेवा हितकारी हैं, सत्पुरुषों की सेवा हितकारी है।’ चतुर्मास में पलाश की पत्तल में भोजन करना चान्द्रायण व्रत करने से बराबर है।

व्रत और उपवास अपने जीवन में छुपी हुई सुषुप्त शक्तियों को विकसित करते हैं। आरोग्य की साधना के लिए एक तो खानपान सात्त्विक और सुपाच्य हो, रजोतमोगुण वाले पदार्थों का त्याग हो, दूसरा व्रत उपवास, तीसरा आसन व प्राणायाम करे तो चतुर्मास की साधना का लाभ मिलेगा। प्राणशक्ति की साधना करनी हो तो श्वासोच्छवास की गिनती अथवा श्वास भीतर रोककर सवा या डेढ़ मिनट जप करे फिर बाहर रोक के 40-50 सैकेण्ड जप करे। इससे आपकी आरोग्य शक्ति, मानसिक शक्ति व बौद्धिक शक्ति विकसित होगी।

आध्यात्मिक साधना में आगे बढ़ना है तो सूर्योदय से दो घंटे पहले ब्रह्ममुहूर्त शुरु होता है तब उठो या फिर चाहे एक घंटा पहले उठो। उठने के समय भगवान का ध्यान करो कि ‘प्रातःकाल हम उस परमात्मा का ध्यान करते हैं जो अंतरात्मा में, आत्मा से स्फुरित होता है और मन, बुद्धि को चेतना देता है।’ सुबह नींद में से चटाक से मत उठो, पटाक से घड़ी मत देखो। नींद खुल गयी, आँख न खुले, थोड़ी देर पड़े रहो, ‘ॐ शांति….. प्रभु की गोद से बाहर आ रहा हूँ। मेरा मन बाहर आये उससे पहले मैं फिर से मनसहित प्रभु के चरणों में जा रहा हूँ, ॐ शांति, ॐ आनंद….’ ऐसा मन से दोहराओ। आपका हृदय बहुत पवित्र होगा। साधन बहुत सुंदर होगा। दिन में समय मिले तो कीर्तन करो। दैनंदिनी लिखो। जिससे गल्ती और पतन होता है उस बात को काटो और जिससे उन्नति होती है उधर ध्यान दो। इन्द्रियों को वश में करो, बुरी चीज को, बुरे कर्मों को करने से अपने को रोको। मन में दया, स्वभाव में मधुरता, वचनों में नम्रता-ये आपको जगत में प्रिय बना देंगे और यह संसार में जीने की कला है।

धर्म का पालन करें। ‘स्व’ है मेरा आत्मा-सच्चिदानंद, उसमें विश्रांति पायें और दूसरों के हित का काम करें। अपने धर्म के अनुरूप, अपने अधिकार के अनुरूप सेवा कर लें, झूठे झाँसे न आने दें और झूठी अपनी शेखी न बघारें। प्रसन्न रहें। नाक से लम्बा श्वास लें, भगवन्नाम जपें और मुँह से फूँक मारकर श्वास बाहर छोड़ दें, प्रसन्न रहने में सफल हो जाओगे।

भगवत्प्राप्ति जल्दी हो इसके लिए अध्यात्म-शास्त्रों का पठन और अध्यात्म चिन्तन करें, दुःख-सुख में सम रहें। दुःख आये तो ‘मैं दुःखी हूँ’ ऐसा न सोचें। ‘दुःख होता है मन को, बीमारी होती है शरीर को, चिंता होती है चित्त को, मैं तो भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं। ॐ…..ॐ…. इस प्रकार की समझ बढ़ायें।

जिसने चतुर्मास में कोई व्रत-नियम नहीं किया, मानो उसने हाथ में आया हुआ अमृत-कलश ढोलने की बेवकूफी की। जैसे किसान चतुर्मास में खेती से धन लाभ करता है, ऐसे ही आप इस चतुर्मास में भगवत्साधना करके आध्यात्मिक सुख, आध्यात्मिक ज्ञान व आध्यात्मिक सामर्थ्य का लाभ प्राप्त करो।

चतुर्मास में पुण्यदायी स्नान

एक बाल्टी में 2-3 बिल्वपत्र डालकर ‘ॐ नमः शिवाय’ जप करते हुए स्नान करें तो तीर्थों में स्नान करने का फल हो जाता है। इससे वायु प्रकोप दूर होता है, स्वास्थ्य की रक्षा होती है और आदमी दोषमुक्त, पापमुक्त होता है। थोड़े जौ और तिल मिक्सर से पीस के रख दें। इस मिश्रण से शरीर को रगड़कर स्नान करें तो यह पुण्यदायी स्नान माना जाता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2014, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 258

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ